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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ टोंकसे कुछ नीचे उतरकर महकमा जंगलातकी कोठी है । यहाँसे मधुवन ठीक पाँच मील है। ___ पहाडका सारा वन महकमा जंगलातके अधीन है। इस सुरक्षित वनका क्षेत्रफल १६८५.९७ एकड़ है। इस स्थानसे कुछ आगे चलकर दो मार्ग मिलते हैं-एक मार्ग मधुवनको और दूसरा नीमिया घाटको। तीन मील उतरनेपर आने और जानेके मार्ग मिलते हैं। इससे आगे केवल एक ही मार्ग है। इस यात्रामें प्रायः मध्याह्न हो जाता है। भूख और प्यासकी भी बाधा होने लगती है। अतः गन्धर्व नालेके पास तेरहपन्थी और बीसपन्थी कोठोमें नाश्तेकी कुछ व्यवस्था है। वहाँ जलपान करके वापस धर्मशाला लौटना चाहिए। जो यात्री शिखरजीकी यात्राको जाते हैं, उनमें-से अधिकांश लोग कमसे कम तीन वन्दना करते हैं। पर जिनके विशेष शारीरिक शक्ति नहीं है अथवा अन्य मजबूरी है, वे केवल एक ही वन्दनामें सन्तोष कर लेते हैं। कुछ लोग इस पर्वतकी परिक्रमा भी देते हैं । इसमें प्रायः तीस मीलकी यात्रा पड़ती है। यहाँको वन्दना करनेवालोंको पालगंज और गिरीडीहके मन्दिरोंके दर्शन भी करने चाहिए। पालगंज यहाँसे लगभग १० मील है। वहाँ किले में प्राचीन मन्दिर है। उसमें भूगर्भसे निकली हुई भगवान् महावीरकी अत्यन्त प्राचीन मूर्ति है। इसी प्रकार गिरीडीहमें दो मन्दिर हैं, एक तो बोसपन्थी कोठी मधुवनकी ओरसे बनवाया हुआ है और दूसरा तेरापन्थी पंचायती मन्दिरसे लगी हुई धर्मशाला भी है। भद्रिकापुरी और कुलुहापहाड़ कल्याणक क्षेत्र भद्रिकापुरी अथवा भद्दलपुरमें दसवें तीर्थंकर शीतलनाथके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए थे। अतः वह कल्याणक क्षेत्र है । भगवान् माता सुनन्दाके गर्भ में चैत्र कृष्णा अष्टमीको पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रमें अवतरित हुए। ___ श्री 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थमें भगवान् शीतलनाथके जन्म और उनके माता-पिताके सम्बन्धमें निम्नलिखित सूचनाएँ उपलब्ध होती हैं ____ माघस्स वारसीए पुव्वासाढासु किण्हपक्खम्मि। __ सीयलसामी दिढरह णंदाहिं भदिले जादो ॥४५३५।। अर्थात् शीतलनाथ स्वामी भद्दलपुर ( भद्रिकापुरी ) में पिता दृढ़रथ और माता नन्दासे माघ कृष्णा द्वादशीके दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रमें उत्पन्न हुए। ये इक्ष्वाकुवंशी थे। जब ये यौवन अवस्थाको प्राप्त हुए तो इनका विवाह हो गया और पिताने दीक्षाधारण करनेसे पूर्व इनका राज्याभिषेक कर दिया। वे प्रजाका न्याय-नीतिपूर्वक पालन करने लगे । इस प्रकार राज्य करते हुए जब काफी समय व्यतीत हो गया, तब एक दिन वे वन-विहारके लिए गये । वहाँ उन्होंने देखा कि सब जगह पाला छा रहा है। किन्तु कुछ समय पश्चात् देखा कि पाला समाप्त हो गया है। इससे उनके मनमें यह भावना जागृत हुई कि, “प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण १. उत्तर पुराण ५६।२६-२७ ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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