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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१६३ इस मन्दिरमें दिगम्बर वीतराग प्रतिमाएं विराजमान थीं, जिनकी संख्या ९ थी और दोनोंदिगम्बर-श्वेताम्बर सम्प्रदाय यहाँ दर्शन-पूजन करते थे। किन्त धीरे-धीरे श्वेताम्बरोंने इस मन्दिरपर अपना अधिकार कर लिया और उन प्रतिमाओंको हटा दिया। यहाँ श्वेताम्बरोंकी दो धर्मशालाएँ भी बनी हुई हैं।
यहाँसे गौतम स्वामीकी टोंकपर पहुँचते हैं। इस स्थानसे चारों ओर रास्ते जाते हैं। बायीं ओर कुन्थुनाथ टोंकको, दायीं ओर पार्श्वनाथ मन्दिरको, सामने जल-मन्दिर और पीछे मधुवनको । अतः यहाँ पश्चिम दिशाकी ओर जाकर नौ टोंकोंकी वन्दना करनी चाहिए। इन नौ टोंकों या कूटोंमें–१. धर्मनाथकी सुदत्तवर कूट, २. सुमतिनाथकी अविचल कूट, ३. शान्तिनाथकी शान्तिप्रभ कूट, ४. महावोरकी कूट, ५. सुपार्श्वनाथकी प्रभासकूट, ६. विमलनाथकी सुवीर कूट, ७. अजितनाथको सिद्धवर कूट, ८. नमिनाथकी मित्रधर कूट, ९. पार्श्वनाथकी सुवर्णभद्र कूट है।
१. धर्मनाथ टोंक-इसमें कृष्ण पाषाणके साढ़े सात इंच लम्बे चरण विराजमान हैं। संवत् १८२५ का लेख चरणोंपर उत्कीर्ण है।
२. सुमतिनाथ टोंक-विवरण यथोक्त ।
इनके निकट वारिषेणकी टोंक, पार्श्वनाथके गणधर यशोविजयके चरण एक चबूतरेपर बने हुए हैं । तथा वर्धमान टोंक बनी हुई है। यह सब नवीन निर्माण है।
३. शान्तिनाथ टोंक-विवरण यथोक्त ।
४. महावीर स्वामी टोंक-इसमें श्वेत चरण विराजमान हैं। शेष विवरण वैसा ही जैसा अन्य टोंकोंका।
५. सुपार्श्वनाथ टोंक-चरणोंका वर्ण कृष्ण है। लम्बाई साढ़े सात इंच है तथा संवत् १८२५ का लेख अंकित है।
६. विमलनाथ टोंक-विवरण पूर्वोक्त । ७. अजितनाथ टोंक-श्वेत चरण, लम्बाई साढ़े सात इंच और सं. १८२५ का लेख । ८. नमिनाथ टोंक-इसमें ३ श्वेतचरण-युगल हैं, जिनकी अवगाहना ६ अंगुल है।
९. पाश्वनाथ टोक-यह अन्तिम और प्रमुख टोंक है। टोंकके स्थानपर अब एक सुन्दर जिनालय बन गया है जिसमें मण्डप और गर्भगृह हैं । गर्भगृहमें एक वेदीपर पार्श्वनाथ भगवान्के कृष्ण वर्णके चरण विराजमान हैं । चरण नौ अंगुलके हैं। इन चरणोंपर निम्नलिखित लेख अंकित कर दिया गया है
"संवत् १९४९ मिति माघ मासे शुक्ल पक्षे पंचमी तिथौ बुधवारे श्री पार्श्वनाथ जिनस्य चरणन्यासः श्री संघा (यहाँ एक पंक्ति घिस दी गयो है) महेण श्री बृहत् खरतरगच्छीय जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितः श्रीरस्तु।'
इन टोंकोंमें भगवान् पाश्वनाथकी यह टोंक सबसे ऊँची है। इस टोंकपर खड़े होकर चारों ओरका मनोहर दृश्य देखते ही बनता है। मनमें एक अनिर्वचनीय प्रफुल्लता भर उठती है। यहाँसे उत्तरकी ओर अजय नदी दीख पड़ती है तो दक्षिणको ओर दामोदर नदी। ऐसी आह्लादपूर्ण प्राकृतिक दृश्यावलीमें मन ध्यान, सामायिक और पूजा-स्तोत्रमें स्वतः निमग्न हो जाता है। यहाँ आकर सब यात्री पूजन करते हैं ।
ये सभी टोंकें ऊँचाईमें आठ फुट और चौड़ाईमें भी इससे अधिक नहीं । इन टोंकोंके निर्माणका प्रारम्भ काल जानना कठिन है, उसी प्रकार चरणोंकी स्थापना इस क्षेत्रपर सबसे पहले किसने