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________________ १६२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ (३) नेमिनाथ टोंक-इसमें काले पाषाणके बारह अंगुल लम्बे चरण विराजमान हैं। इनपर जो लेख उत्कीर्ण है, उसके अनुसार संवत् १८२५ में ये चरण विराजमान किये गये और संवत् १९३१ में इनका जोर्णोद्धार किया गया। -इससे कुछ दूरपर एक चबूतरेपर पार्श्वनाथ भगवान्के गणधर वीरभद्रके चरण विराजमान हैं जो चौदह अंगुल के हैं। (४) अरनाथ टोंक-इसमें कृष्ण पाषाणके दस अंगुल लम्बे चरण विराजमान हैं। संवत् १८२५ का लेख है जैसा कि ऊपर दिया गया है। (५) मल्लिनाथ टोंक-इसमें काले पाषाणके दस अंगुल लम्बे चरण विराजमान हैं। संवत् १८२५ का लेख दिया हुआ है। (६) श्रेयान्सनाथ टोंक-इसमें काले पाषाणके साढ़े सात इंचके चरण विराजमान हैं । संवत् १८२५ का लेख है। (७) सुविधिनाथ टोंक-इसमें श्वेत वर्णके साढ़े सात इंचके चरण विराजमान हैं। संवत् १८२५ का लेख है। (८) पद्मप्रभ टोंक-इसमें कृष्ण वर्णके साढ़े सात इंचके चरण विराजमान हैं । संवत् १८२५ का लेख है। (९) मुनिसुव्रतनाथ टोंक-इसमें कृण्ण वर्णके साढ़े सात इंच लम्बे चरण विराजमान हैं । संवत् १८२५ का लेख है। __ (१०) चन्द्रप्रभ टोंक-नौवीं टोंकसे यह टोंक काफी दूर पड़ती है तथा यह सबसे ऊँचाईपर स्थित है। इसमें कृष्ण पाषाणके साढ़े सात इंच लम्बे चरण विराजमान हैं। संवत् १८२५ का लेख अंकित है। (११) आदिनाथ टोंक-चन्द्रप्रभ टोंकके लिए जिस मार्गसे गये थे, उसीसे लौटकर रास्तेमें जलमन्दिरको जानेका मार्ग मिलता है। उस मार्गसे जाकर आदिनाथ टोंक आती है। इसमें साढ़े सात इंच लम्बे श्वेत वर्णके चरण विराजमान हैं तथा संवत् १९४१ का लेख अंकित है। (१२) शीतलनाथ टोंक-इसमें कृष्ण वर्णके साढ़े सात इंची चरण विराजमान हैं। संवत् १८२५ का लेख उत्कीर्ण है। (१३) यह भी शीतलनाथ टोंक है। शेष विवरण पहलेकी भाँति है। (१४) सम्भवनाथ टोंक-श्वेत चरण हैं, साढ़े सात इंच लम्बे हैं। उनपर संवत् १८२५ का लेख उत्कीर्ण है। (१५) वासुपूज्य टोंक-इसमें पांच श्वेत चरण हैं। लम्बाई सात इंच है तथा संवत् १९२६ का लेख है। (१६) अभिनन्दननाथ टोंक-इसमें कृष्ण पाषाणके साढ़े सात इंच चरण विराजमान कर दिये गये हैं। संवत् १८२५ का लेख उत्कीर्ण है। __ ये टोंकें वस्तुतः पन्द्रह ही हैं। शीतलनाथ स्वामीकी दो टोंकें बना दी गयी हैं। भगवान् अभिनन्दन नाथकी टोंकसे उतरकर जल-मन्दिर में जाते हैं। यहाँ एक विशाल मन्दिर बना हुआ है। उसके चारों ओर जल भरा हुआ है। इसमें भगवान् पार्श्वनाथकी पद्मासन लगभग साढ़े तीन फुट अवगाहनावाली कृष्ण पाषाणकी प्रतिमा विराजमान है। इसके अगल-बगल में ढाई फूट श्वेत पाषाणकी चार प्रतिमाएँ हैं। पाँचों प्रतिमाओंके सिंहासन पीठपर एक-से शिलालेख हैं, जिनका आशय यह है कि सेठ शुगलचन्द्र जगत्सेठने सन् १७६५ में ये प्रतिष्ठित करायीं। पहले
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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