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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१६१ इस प्रकार हम देखते हैं कि इस क्षेत्रसे असंख्य मुनिजन अनादिकालसे समय-समयपर मुक्त हुए हैं। इसलिए यह क्षेत्र अत्यन्त पवित्र है, उसका कण-कण पवित्र है। यही कारण है कि इस तीर्थपर सिंह, व्याघ्र, हिरण आदि अनेकों जाति विरोधी और हिंसक प्राणी बिचरते देखे गये हैं किन्तु कभी किसीने एक दूसरेपर आक्रमण किया हो या किसी यात्रीके साथ कभी कोई दुर्घटना घटी हो ऐसा कभी सुना नहीं गया। ऐसे अवसर कई बार आये हैं, जब रात्रिमें यात्राके लिए जानेवाले भाइयोंसे कोई यात्री पिछड़ गया और अकेला पड़ गया और राहमें उसे शेर मिल गया। किन्तु न यात्रीके मनमें भय और न शेरके मनमें क्रूरता। शेर एक ओर चला गया और यात्री अपनी राहपर आगे बढ़ गया। यह सब इस तीर्थराजका प्रभाव है। यहाँके वातावरणमें पवित्रता और शुचिताकी भावना सदैव बनी हुई रहती है ।
तीर्थ-दर्शन
.. पहाड़पर ऊपर चढ़नेपर सर्वप्रथम गौतम स्वामीकी टोंक मिलती है। वहाँ एक कमरा भी बना हुआ है जो यात्रियोंके विश्रामके काम आता है। टोंकसे बायें हाथकी ओर मुड़कर पूर्व दिशाकी पन्द्रह टोंकोंकी वन्दना करनी चाहिए। ये टोंकें ही कूट कहलाती हैं। इन टोंकोंके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं
(१) कुन्थुनाथका ज्ञानधर कूट। (२) नमिनाथका मित्रधर कूट । (३) अरहनाथका नाटक कूट। (४) मल्लिनाथका सम्बल कूट। (५) श्रेयान्सनाथका संकुल कूट। (६) पुष्पदन्तका सुप्रभ कूट। (७) पद्मप्रभुका मोहन कूट। (८) मुनिसुव्रतनाथका निर्जर कूट। (९) चन्द्रप्रभुका ललित कूट। (१०) आदिनाथ.......... ....। (११) शीतलनाथका विद्युत् कूट । (१२) अनन्तनाथका स्वयम्भू कूट । (१३) सम्भवनाथका धवलदत्त कूट। (१४) वासुपूज्यका........ ...। यहाँपर पाँच चरण भी बने हुए हैं। (१५) अभिनन्दननाथका आनन्द कूट।
इन टोंकोंमें भगवान् चन्द्रप्रभुकी टोंक बहुत ऊँची है। ये सभी टोंके पूर्व दिशामें हैं। इनमें तीर्थंकरोंके चरण विराजमान हैं। इन टोंकोंपर जानेके लिए मार्ग बने हए हैं। तीर्थंकर-चरणोंपर जो लेख खुदे हुए हैं, उनके अनुसार ये सब सं. १८२५ में प्रतिष्ठित किये गये हैं।
(१) गौतम स्वामीकी टोंक-इसमें सफेद मार्बलके बत्तीस चरण विराजमान हैं। वेदीके बाहर श्याम पाषाणके चरण बने हुए हैं।
(२) कुन्थुनाथकी टोंक-इसमें काले पाषाणके पाँच इंच लम्बे चरण बने हुए हैं। इसके ऊपर निम्नलिखित लेख उत्कीर्ण करा दिया गया है
"संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदी ३ गुरौ विराती गोत्रीय साह खुशालचन्द्रेन श्री कुन्थुनाथ पादुका कारापिता प्रतीप श्री तपागच्छ''
यहाँ एक कमरा ( धर्मशाला ) बना हुआ है। श्री चन्द्रानन टोंक-इसमें श्वेत पाषाणके तीन अंगुलके चरण विराजमान हैं। यहाँसे नेमिनाथ टोंकको जाते हुए एक चबूतरेपर सुधर्मा स्वामीके चरण बना दिये गये हैं। श्री ऋषभानन टोंक-यहाँ काले पाषाणके चार अंगुल लम्बे चरण विराजमान हैं।
ये दोनों टोंक और सुधर्मा स्वामीके चरण अत्यन्त आधुनिक हैं और श्वेताम्बरोंने इन्हें स्थापित किया है।
भाग २-२१