________________
१५८
भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ . इन मन्दिरोंमें मूर्तियोंकी कुल संख्या ३४९ है, जिनमें २५२ पाषाणकी, ९२ धातुकी, ३ चाँदीकी, १ सोनेकी और १ सहस्रकूट चैत्यालय है। तेरहपन्थी कोठीकी ओरसे प्राइमरी स्कूल और औषधालय भी चल रहा है। यहाँ वार्षिक मेला कोई नहीं होता। माह सुदी ५ और फागुन सुदी पूर्णिमाको रथयात्रा होती है किन्तु यात्रियोंके अनुरोधपर समय-समयपर रथयात्रा निकलती रहती है। रथमें भगवान् पाश्र्वनाथकी प्रतिमा विराजमान होती है। इस कोठीमें ३००० यात्रियोंके लायक बर्तन रहते हैं। बीसपन्थी कोठी
_इस कोठीमें ३ अहाते और धर्मशालाओंमें कुल १६६ कमरे हैं। इसके मुख्य मन्दिरमें आठ शिखरबन्द जिनालय हैं, जो इस प्रकार हैं
__ (१) एक गर्भगृहमें दो वेदियाँ हैं। पहली वेदीमें भगवान् पार्श्वनाथकी मुख्य प्रतिमाके अतिरिक्त ८ पाषाण प्रतिमाएँ हैं। दूसरी वेदीमें भगवान् अजितनाथकी मुख्य प्रतिमाके अतिरिक्त ६ धातु पाषाणकी प्रतिमाएँ हैं।
(२) पार्श्वनाथ जिनालय-इसका निर्माण सेठ हरिभाई देवकरण शोलापुरने सं. १९३४ में कराया है। इसमें पार्श्वनाथ प्रतिमाके अतिरिक्त पीतलकी एक चौबीसी है।
(३) पुष्पदन्त जिनालय-इसमें मूलनायकके अतिरिक्त दो खड्गासन, तीन पद्मासन प्रतिमाएँ और अष्ट मंगल द्रव्य हैं।
(४) पार्श्वनाथ जिनालय-इसमें कृष्ण वर्णकी पार्श्वनाथ प्रतिमाके अतिरिक्त दो पाषाणकी, पीतलकी ४८ प्रतिमाएँ तथा पीतलके दो नन्दीश्वर जिनालय हैं।
(५) इसमें पाँच पाषाण प्रतिमाएँ हैं। १ मेरु और १ चरणयुगल है। (६) विशाल सरस्वती भवन है।
(७) चाँदीकी वेदीमें ऊपरकी कटनीमें पीतलकी तीन, नीचे पीतलकी ४ प्रतिमाएँ और १ चौबीसी विराजमान है।
(८) आदिनाथकी कृष्ण वर्ण प्रतिमा तथा दो श्वेत वर्ण पाषाण प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
धर्मशालाके पीछेकी ओर उपवनमें दो जिनालय हैं, मुनियोंका समाधिस्थान बनाया जा रहा है । पाँच मुनियोंकी छतरी बनवाकर उनमें चरण विराजमान कर दिये गये हैं।
कोठीके सामने बाहुबली टेकड़ीपर एक विशाल मन्दिरका निर्माण हुआ है। यहाँ चौबीस मन्दरियाँ बनी हैं, जिनमें चौबीस तीर्थंकर विराजमान हैं। प्रांगणके बीचमें बाहुबली स्वामीकी श्वेत खड़गासन पचीस फूट अवगाहनावाली प्रतिमा विराजमान है। बाहबली जिनालयके दायें और बायें गौतम स्वामी और पार्श्वनाथ भगवान्के जिनालय हैं तथा सामने उन्नत मानस्तम्भ है जो इक्कावन फुट ऊँचा है।
बाहुबली टेकरीसे आगे समवसरणकी नवीन भव्य रचना हो रही है। एक ७०४७२ फुटके हॉलमें मध्यमें गन्धकुटी, १२ कोठों आदिकी रचना हो चुकी है। अनुमानतः इस रचनापर २० लाख रुपये व्यय होनेकी सम्भावना है। इसके आगे सड़कके दूसरी ओर मुनियोंका समाधिस्थान बनाया गया है। पर्वत-यात्राके मार्ग
सम्मेदशिखरकी यात्राके लिए ऊपर जानेके दो मार्ग हैं-एक तो नीमिया घाट होकर और दूसरा मधुवनकी ओरसे । नीमिया घाट पर्वतके दक्षिणकी ओर है। यहाँ एक डाक बँगला, जैन