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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१५७ ४. श्री पुष्पदन्त जिनालय-भगवान् पुष्पदन्तकी सं. १८७८ में प्रतिष्ठित श्वेत वर्ण पद्मासन सवा तीन फुट अवगाहनावाली मूलनायक प्रतिमा है। इसके अतिरिक्त नौ पीतलकी पद्मासन, एक खड्गासन, एक सिद्ध भगवान्की प्रतिमा और संगमरमरके फलकपर चौबीस चरण हैं। यह मन्दिर मख्य मन्दिरके रूप में माना जाता है। मन्दिरके किवाड चाँदीके हैं।
५. श्री अजितनाथ जिनालय-मुख्य मन्दिरके बायीं ओर यह मन्दिर है । इसमें अजितनाथ भगवान्की श्वेतवर्ण, पद्मासन दो फुटी प्रतिमा मूलनायक है। इसके अतिरिक्त छह पद्मासन, एक खड्गासन, दो पद्मावती देवीके ऊपर पार्श्वनाथकी तथा दो सिद्ध भगवान्की प्रतिमाएँ हैं।
६. श्रीपार्श्वनाथ मन्दिर-तीन महरावोंका गर्भगृह है। इसके स्तम्भ कलापूर्ण हैं। यहाँ लगातार तीन वेदियाँ हैं । बीचकी वेदीमें चिन्तामणि पार्श्वनाथकी कृष्णवर्ण पद्मासन लगभग छह फट अवगाहना वाली अति मनोज्ञ प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा सं. १९९० में सेठ मोहनलाल किशनलाल सुजानगढ़वालोंकी ओर से की गयी है। बायीं ओर की वेदिकामें १४ और दायीं ओर की वेदिकामें ११ मूर्तियाँ विराजमान हैं। बायीं वेदीमें श्रेयान्सनाथकी तथा दायीं वेदीमें चन्द्रप्रभुको मुख्य प्रतिमाएँ हैं। दोनों वेदियोंका निर्माण क्रमशः श्रीमती चम्पीदेवी धर्मपत्नी लाला आशाराम सहारनपुर और सेठ गनपतराय जगन्नाथ जीरावालोंने कराया है।
७. इस मन्दिरसे चलकर प्रवेश मण्डप है। फिर अठकोण मण्डपमें चार चबूतरोंपर बावन जिनालय और बीचमें पंचमेरुकी रचना की गयी है। यह रचना अत्यन्त आकर्षक और अद्भुत है। चारों दिशाओंमें १३-१३ चैत्यालय हैं जिनमें ८ रतिकर, अंजनगिरि और ४ दधिमुख हैं । पाँच मेरु मन्दिरोंमें प्रतिमाओंकी कुल संख्या ८० है।
८. श्रीशान्तिनाथ जिनालय-मुख्य मन्दिरकी दायीं ओर यह मन्दिर है। मूलनायक भगवान् शान्तिनाथकी प्रतिमा पद्मासन श्वेतवर्ण तीन फुट अवगाहनाकी है। इसके अतिरिक्त पाषाण और धातुकी १३ प्रतिमाएँ तथा २ पीतलके मानस्तम्भ हैं। मन्दिरका निर्माण श्रीमती जड़ावबाई धर्मपत्नी सेठ मदनचन्द कलकत्ताने सं. १९९० में कराया है।
९. श्रीनेमिनाथ जिनालय-भगवान् नेमिनाथकी कृष्ण वर्ण पद्मासन तीन फुटी प्रतिमाके अतिरिक्त दो पाषाणोंमें चौबीसी, ६ पाषाण प्रतिमाएँ और एक पीतलको सिद्ध प्रतिमा है। जिनालयका निर्माण सेठ दयालबक्स गौरीलाल कलकत्ताने सं. १९९० में कराया है।
१०. इससे आगे एक विशाल सरस्वती भवन है।
११. श्री चन्द्रप्रभु जिनालय-समवसरण है जिसमें भगवान् चन्द्रप्रभुकी एक फुट ऊंची प्रतिमा विराजमान है । इसका निर्माण सेठ कुन्दनमल चन्दनमल सुजानगढ़ने सं. १९९० में कराया।
१२. भगवान् महावीरकी साढ़े सात फुटकी खड्गासन कृष्ण वर्ण प्रतिमा एक पाषाणपीठपर विराजमान है। वि. सं. १९९० में इसकी प्रतिष्ठा हुई। दीवालके सहारे तीन दिशाओंमें २४ तीर्थंकरोंकी खड्गासन समान अवगाहनावाली प्रतिमाएं हैं। उनके आगे पीतलकी पद्मासन प्रतिमाएँ तथा ५ श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमाएं विराजमान हैं। इस वेदीपर पाषाणकी ३२ और धातुकी ४० प्रतिमाएँ हैं।
१३. सहस्रकूट चैत्यालय-यह संगमरमरका लगभग चार फुट ऊँचा बना हुआ है। चैत्यालय दर्शनीय है। इतना मनोज्ञ सहस्रकूट चैत्यालय कदाचित् ही मिलेगा। इसका निर्माण सुजानगढ़के सेठ रूपचन्दके पुत्रोंने सं. १९९० में कराया है।
ये सभी मन्दिर तीन दिशाओंमें बने हुए हैं। मन्दिरमें विशाल प्रांगण है। मन्दिरके प्रवेशद्वारमें क्षेत्र-कार्यालय है।