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________________ १५६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ बइजलास ज्यूडिशियल कमिश्नर राँचीकी डिग्रीके अनुसार ) ट्रस्ट कमेटीके सुपुर्द हुआ और ट्रस्ट कमेटी बादमें भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीके अन्तर्गत कार्य करने लगी।' बीसपन्थी कोठीके बहुत दिनों पश्चात् (लगभग २५० वर्ष बाद) श्वेताम्बर कोठीका निर्माण हआ। उसके लगभग १०० वर्ष बाद तेरापन्थी कोठी बनी। तेरापन्थी कोठी इस कोठीमें पाँच अहाते और पाँच धर्मशालाएँ हैं। धर्मशालाओंमें कुल २०५ कमरे हैं । इस कोठीमें कई विशाल द्वार बने हए हैं। धर्मशालाके दूसरे चौकमें लाला सोहनलालजी कलकत्तावालों ( मै. मुन्नालाल द्वारकादास ) की ओरसे एक विशाल और अति भव्य चन्द्रप्रभु जिनालयका निर्माण हुआ है। इसका गर्भगृह चार स्तम्भोंपर खुला हुआ अत्यन्त कलापूर्ण बनाया गया है। उसके बीचमें संगमरमरकी उन्नत वेदीमें चन्द्रप्रभु भगवान्की पद्मासन श्वेत वर्ण लगभग पाँच फुट अवगाहनाकी भव्य प्रतिमा विराजमान है। गर्भगृहके आगे सभामण्डप है। मन्दिरके चारों ओर कम्पाउण्ड है। तीन ओरसे मार्ग है। तीनों ओरके द्वार साँचीके द्वारोंके अनुरूप बनाये गये हैं। मन्दिरके चारों ओर मनोरम पुष्पवाटिका है । ___ इस जिनालयसे चलकर और सुल्तानसिंह प्रवेशद्वारसे निकलकर कटक मन्दिर मिलता है। इसमें चार वेदियाँ हैं । मण्डपमें सब कहीं स्तोत्र और सुभाषित श्लोक लिखे हुए हैं। तीसरे चौकमें ५१ फुट ऊँचा श्वेत मानस्तम्भ बना हुआ है जो चबूतरोंकी तीन उन्नत कटनियोंपर अवस्थित है। ऊपर छतरीमें १७ इंची चार प्रतिमाएं विराजमान हैं। इसी प्रकार नीचे चारों दिशाओंमें चार लघु वेदिकाओंमें चन्द्रप्रभुकी श्वेत वर्ण मनोज्ञ मूर्तियाँ विराजमान हैं। मानस्तम्भका निर्माण लाडनूं निवासी सेठ सुखदेवजी गंगवालके पुत्रोंने कराया है। मानस्तम्भके चारों ओर रेलिंग है। रात्रिमें विद्युत् प्रकाशसे इसकी शोभा द्विगुणित हो जाती है। ___ इसी चौकमें दायीं ओर मुख्य मन्दिर है, जिसमें तेरह वेदियाँ हैं । ये सभी स्वतन्त्र जिनालय हैं और इनके ऊपर शिखर हैं । ये जिनालय क्रमशः निम्न प्रकार हैं १. श्री शान्तिनाथ जिनालय-तीन दरकी वेदीमें सवा फुटी पीतलको शान्तिनाथ भगवान्की मुलनायक प्रतिमाके अतिरिक्त एक पाषाणकी तथा ४ धातूकी प्रतिमाएँ हैं। पीतलके एक-एक फूट ऊँचे दो मानस्तम्भ हैं जिनमें प्रतिमाएं विराजमान हैं। वेदोका निर्माण श्रीमन्त सेठ शिखरचन्दजी सिवनीवालोंकी ओरसे वि. सं. १९६६ में हुआ। २. श्री समवसरण मन्दिर-तीन उन्नत कटनियोंपर गन्धकुटी है। उसमें भगवान् पार्श्वनाथकी दस इंच अवगाहनावाली चार प्रतिमाएँ चारों दिशाओंमें हैं। इसके निर्माता बा. गिरधारीलाल चण्डीप्रसाद कलकत्ता हैं। इस मन्दिरका निर्माण संवत् १९९० में हुआ है। ३. श्री नेमिनाथ चैत्यालय-मूलनायक भगवान् नेमिनाथकी कृष्ण वर्ण पद्मासन तीन फुटी पाषाण प्रतिमा है। इसके अतिरिक्त दो श्वेत पाषाणकी खड्गासन, दो पद्मासन तथा एक सिद्ध प्रतिमा है। इसका निर्माण पं. बलदेवदास शिवदेव फतहपुर ( सीकरी ) ने सं. १९९० में कराया। १. जैन मित्र, वर्ष ५, अंक २, कार्तिक संवत् १९६० में प्रकाशित इकरारनामा। तथा जन मित्र, वर्ष ५, अंक ७, चैत्र संवत् १९६० ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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