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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१५३ इससे ज्ञात होता है कि भट्टारक जिनसेनने गिरनार, सम्मेदशिखर, रामटेक तथा माणिक्यस्वामीको यात्राएं संघ सहित को थों और उन्होंने संव ले जानेवाले सोयरा शाह, निम्बाशाह, माधव संघवी, गनवा संघवी और कान्हा संघवीका संघपतिके रूपमें तिलक किया था। कान्हा संघवीका यह सम्मान समारोह रामटेकमें किया गया था । सम्मेदशिखर माहात्म्यको रचनाएँ
अनेक कवियोंने विभिन्न भाषाओं में सम्मेदशिखरके माहात्म्य और पूजाओंकी रचनाएँ की हैं, उनसे एक महान् सिद्धक्षेत्र और तीर्थराजके रूपमें सम्मेदशिखरके गौरवपर प्रकाश पड़ता है और इस तीर्थक्षेत्रका नाम लेते ही श्रद्धासे स्वतः ही मस्तक उसके लिए झुक जाता है।
___ गंगादास कारंजाके मूलसंघ बलात्कारगणके भट्टारक धर्मचन्द्रके शिष्य थे। आपने मराठीमें पार्श्वनाथ भवान्तर, गुजरातीमें आदित्यवार व्रतकथा, त्रेपन क्रिया विनती व जटामुकुट, संस्कृतमें क्षेत्रपाल पूजा एवं मेरुपूजाकी रचना की है। आपका काल सत्रहवीं शताब्दी है। आपने संस्कृतमें सम्मेदाचल पूजा भी बनायी, जो सरल और रोचक है।
__कवि देवदत्त दीक्षित कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे तथा भदौरिया राजाओंके राज्यमें स्थित अटेर नगरके निवासी थे। इन्होंने शौरीपुरके भट्टारक जिनेन्द्र भूषणकी आज्ञासे 'सम्मेदशिखर माहात्म्य' और 'स्वर्णाचल माहात्म्य' की रचना की थी। दीक्षितजी सम्भवतः १९वीं शताब्दीके विद्वान् थे। उन्होंने 'सम्मेदाचल माहात्म्य'के प्रारम्भमें लिखा है
__गुरुं गणेशं वाणी च ध्यात्वा स्तुत्वा प्रणम्य च ।
सम्मेदशैलमाहात्म्यं प्रकटीक्रियते मया ॥२॥ इस माहात्म्यमें इक्कीस अध्याय हैं। यह सुबोध संस्कृतमें लिखा गया है ।
सम्मेदशिखरकी यात्रा
मार्ग
तीर्थराज सम्मेदशिखरजी, जिसका दूसरा नाम 'पारसनाथ-हिल' है, बिहार प्रदेशके हजारीबाग जिलेमें स्थित है। यहाँ पहुँचनेके लिए रेलवेके कई मार्ग हैं- (१) गया, दिल्ली अथवा कलकत्ताकी ओरसे आनेवालोंके लिए पारसनाथ स्टेशन उतरना चाहिए। (२) कलकत्ताकी ओरसे आनेवाले गिरीडीह स्टेशन भी उतर सकते हैं। गिरीडीह ईस्टर्न रेलवेके मधुपुर स्टेशनसे जाना पड़ता है किन्तु कलकत्तासे मधुपुर लाइनपर चलनेवाली ट्रेनोंमें गिरीडीहके लिए दो-एक बोगी प्रायः लगी रहती है। (३) पटनासे राँची जानेवाली ट्रेनोंसे पारसनाथ उतर सकते हैं। ये सभी ईस्टर्न रेलवेको मेन लाइन हैं।
ईसरी
पारसनाथ स्टेशनके सामने ही लगभग एक फलींग दूरीपर ईसरीमें दो दिगम्बर जैन धर्मशालाएं बनी हुई हैं। एक तेरापन्थी और दूसरी बीसपन्थी। दोनों निकट-निकट हैं। तेरापन्थी धर्मशालामें कुल ५६ कमरे हैं। एक पक्का कुआँ है। बीचमें विशाल चौक है। धर्मशालाके मुख्य .
भाग २-२०