SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ सम्मेदाचल शृंग बीस जिनवर शिव पाया। संख्या रहित मुनीश मोक्ष तिस थान सिधाया। यात्रा जेह करंत तास पातक सबि जाये। मनवांछित फल पूर सद्य सुखसंपति थाये ॥ सारद अथवा सूरगरु जो तस गण वर्णन करे। ब्रह्म ज्ञानसागर वदति जन्म जन्म पातक हरे ॥१॥ बीस तीर्थंकरोंके अतिरिक्त अनेक मुनिजन यहाँ तपस्या करके और कर्मोंका नाश करके मुक्ति पधारे हैं । ऐसे कुछ मुनियोंका वर्णन पुराण और कथा-ग्रन्थोंमें उपलब्ध होता है। ___ 'उत्तरपुराण' (४८।१२९-१३७ ) में सगर चक्रवर्तीका प्रेरक जीवन-चरित्र दिया गया है। जब मणिकेतु देवने अपने पूर्वभवकी मित्रताको ध्यानमें रखकर सगर चक्रवर्तीको आत्म-कल्याणकी प्रेरणा देनेके लिए उसके साठ हजार पुत्रोंके अकाल मरणका शोक-समाचार सुनाया तो चक्रवर्तीको सुनते ही संसारसे वैराग्य हो गया और भगीरथको राज्य देकर उसने मुनि-दीक्षा ले ली। उधर देवने उन साठ हजार पुत्रोंको उनके पिता द्वारा मुनि-दीक्षा लेनेका समाचार जा सुनाया। उस समाचारको सुनकर उन सबने भी मुनि व्रत धारण कर लिया और तपस्या करने लगे। अन्तमें सम्मेदशिखरसे उन्होंने मुक्ति प्राप्त की। ... "सर्वं ते सुचिरं कृत्वा सत्तपो विधिवद् बुधाः। शुक्लध्यानेन संमेदे संप्रापन् परमं पदम् ॥" सम्मेदशिखरपर मन्दिरोंके निर्माणको ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ___ भट्टारक ज्ञानकोतिने 'यशोधर चरित'की रचना की है। यह ग्रन्थ उन्होंने संवत् १६५९ में लिखा था। इस ग्रन्थकी प्रशस्तिमें राजा मानसिंहके मन्त्री नानूका नामोल्लेख करते हुए सम्मेदशिखरपर बीस मन्दिरोंके निर्माणका उल्लेख है । ग्रन्थकारने पहले अपना परिचय दिया है। उसके बाद मन्दिरोंके निर्माणका उल्लेख किया है। प्रशस्तिका उक्त अंश यहाँ दिया जा रहा है। राजाधिराजोऽत्र तदा विभाति श्रीमानसिंहो जितवैरिवर्गः । अनेकराजेन्द्रविनम्यपादः स्वदानसंतर्पितविश्वलोकः ॥६२।। तस्यैव राज्ञोऽस्ति महानमात्यो नानूसुदामा विदितो धरित्र्याम् । संमेदशृगे च जिनेन्द्रगेहमष्टापदे वादिमचक्रधारी ॥६४।। योऽकारयद् यत्र च तीर्थनाथाः सिद्धिंगता विंशतिमानयुक्ताः । अर्थात् यहाँ ( चम्पानगरीके निकटवर्ती अकबरपुर गाँवमें ) महाराज मानसिंह हैं, जिन्होंने वैरियोंका दमन किया है और बड़े-बड़े राजाओंसे अपने चरणोंमें मस्तक झुकवाया है। उनके महामन्त्रीका नाम नानू है। उन्होंने सम्मेदशिखरके ऊपर वहाँसे सिद्धगतिको प्राप्त करनेवाले बीस तीर्थंकरोंके मन्दिरोंका निर्माण कराया, जैसे प्रथम चक्रवर्ती भरतने अष्टापदके ऊपर मन्दिरोंका निर्माण कराया था और उनकी कई बार यात्राएँ की थीं। इसी ग्रन्थमें अन्यत्र महामन्त्री नानूका परिचय इस प्रकार दिया है तस्य क्षितीश्वरपतेरधिकारि श्रीजैनवेश्मकृत (दुर्लभ) पुण्यधारी। यात्रादिधर्मशुभकर्मपथानुचारी जैनो बभूव वनिजां वर इभ्यमुख्यः ॥१७॥ खण्डेलवालान्वय एव गोत्रे गोधाभिधे रूपसुचन्द्रपुत्रः। दाता गुणज्ञो जिनपूजनेन्द्रो सिवारिधौतारिकदम्बपङ्कः ॥१८॥
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy