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- बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१४१ किला बनवाया। जिस प्रकार श्रेणिककी मृत्यु होनेपर पितृशोकके कारण अजातशत्रुने अपनी राजधानी राजगृहसे हटाकर चम्पाको बना लिया था, इसी प्रकार अजातशत्रुका देहान्त होनेपर उसके पुत्र' उदयन (उदयाश्व) ने पाटलिपुत्र नगरका निर्माण करके उसे अपनी राजधानी बनाया।
ई. सन ७५० में गंगा और सोनकी भीषण बाढके फलस्वरूप प्राचीन पाटलिपुत्रका अधिकांश भाग नष्ट हो गया । बहुत थोड़ा भाग ही बच पाया था।
नन्द और मौर्य वंशके प्रतापी सम्राटोंने इसे अपनी राजधानी बनाकर भारतपर शासन किया। यूनानी राजदूत मैगस्थनीज मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त (ई. पू. ३२१ से २९७) के दरबारमें आया था। उसके अनुसार उस समय इस नगरका विस्तार दस मील लम्बा तथा दो मील चौड़ा था। शहरके चारों ओर चहारदीवारी थी जिसके ऊपर ५७० रक्षाकक्ष और चौसठ दरवाजे थे। अर्थात् शहरका कूल घेरा साढ़े तेईस मील था। जब चीनी यात्री ह्वेन्त्सांग (ई.६३७) यहाँ आया, उस समय प्राचीन नगर खण्डहर बन चुका था और इसके निकट नया नगर बन गया था। जब फाह्यान आया, तब पाटलिपुत्र दक्षिणकी ओर गंगासे सात मील दूर था।
गुप्त वंशने भी पाटलिपुत्रको ही अपनी राजधानी रखा । गुप्त वंशके अन्तिम सम्राट् कुमारगुप्त द्वितीयको हराकर उसका सेनापति विष्णुवर्धन (यशोधर्मन) राजा बन गया। उसने सन् ९३० में पाटलिपुत्रसे हटाकर कन्नौजको अपनी राजधानी बनाया। इसके पश्चात् पाटलिपुत्रका महत्त्व और वैभव कम होता गया। ह्वेन्त्सांगके समयमें तो यह साधारण गाँव रह गया था।
अशोकके सम्बन्धमें कहा जाता है कि उसने एक अगम कुआँ बनवाया जिसमें मारकर अपने भाइयोंको डाल दिया था। वह कमलडीह.या कमलदहके पास लगभग दो फलांगपर अब भी विद्यमान है। अपने शासनके सत्रहवें वर्ष अशोकने यहाँ बौद्ध संगीति करायी थी। सिखोंके दसवें गुरु गोविन्द सिंहका जन्म-स्थान यहींपर है। पटना सिटीमें जन्म-स्थानपर दर्शनीय विशाल गुरुद्वारा बना हुआ है।
___ इस प्रकार पाटलिपुत्र राजनैतिक और धार्मिक सभी दृष्टियोंसे महान् केन्द्र रहा है। पटना संग्रहालय
पटनामें कई संग्रहालय हैं—(१) स्टेट म्यूजियम, (२) जालान संग्रहालय, तथा (३) कानोडिया संग्रहालय। इनमें प्रथम सरकारी है तथा अन्य दो व्यक्तिगत हैं । तीनों संग्रहालयोंका विवरण इस प्रकार है(१) स्टेट म्यूजियम
स्टेट म्यूजियम पटनाकी गणना भारतके अत्यन्त महत्त्वपूर्ण संग्रहालयोंमें की जाती है । यहाँ अत्यन्त दुर्लभ कलाकृतियाँ संग्रहीत हैं। इन कलाकृतियोंमें भी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं मौर्ययुगकी पाषाण मूर्तियाँ तथा चौसासे प्राप्त धातु मूर्तियाँ । पुरातत्त्ववेताओंके मतानुसार ये मूर्तियाँ भारतमें उपलब्ध मूर्तियोंमें प्राचीनतम हैं । यद्यपि इस संग्रहालयमें मूर्तियोंका विशाल संग्रह किया गया है, किन्तु उनमें जैन मूर्तियाँ संख्यामें अत्यल्प हैं। दूसरी ओर जैन मूर्तियाँ ही भारतमें ज्ञात मूर्तियोंमें सर्वाधिक प्राचीन हैं । बौद्ध और हिन्दू मूर्तियाँ पश्चात्कालकी हैं तथा वे जैन मूर्तियोंके अनुकरण
१. सम्पन्न फालसुत्तके अनुसार पुत्र । विष्णु पुराण ४।२४ के अनुसार पौत्र । जर्नल आफ एशियाटिक सोसायटी बंगाल १९१३, पृ. २५० के अनुसार वह दर्शकका पुत्र और अजातशत्रुका पौत्र था।