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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
बारह वर्ष तक वस्त्र पहनने और अपने निवास स्थानपर लाकर भोजन करनेकी सुविधाका भोग करते हुए वे उन सुविधाओंके अभ्यस्त बन गये थे। इसलिए दक्षिणसे जब मुनिसंघ लौटा और उसने इन साधुओंको समझाया तो उनको वे सुविधाएँ त्यागना कष्टकर प्रतीत हुआ और आपत्कालके पश्चात् भी उन साधुओंओंके अभोग्य सुख-सुविधाओंका भोग करते हुए जनतासे साधुत्वको स्वीकृति पाना भी आवश्यक था। अतः ( श्वेताम्बरोंकी मान्यतानुसार ) श्रुतकेवली भद्रबाहुके जीवित रहनेपर भी साधु सम्मेलन करना और उसमें उन्हें न बुलाना तथा महावीरकी द्वादशांगवाणी का संकलन करनेका अभिनय करना अपने सुखशील साधु-वर्गके साधुत्वको जनतासे मनवानेका प्रयत्न-भर था। इन साधुओंने बौद्ध-सम्मेलनोंके समान ही अपने सम्मेलन बुलाकर वाचनाएँ कीं। त्रिपिटकोंकी शैलीके अनुकरणपर ही आगमोंकी रचना की। फिर छठी शताब्दीमें, जब सर्वप्रथम 'आवश्यक चूर्णि' में श्वेताम्बर मतका स्पष्ट उल्लेख हुआ, तबसे तो श्वेताम्बर आचार्योंने जैनोंकी मूल निर्ग्रन्थ ( दिगम्बर ) परम्पराका विरोध करना और अपने सुविधाशील मतको सीधे महावीर और उनसे पूर्वके तीर्थंकरों के साथ जोड़नेका प्रयत्न करना मानो अपना आवश्यक कर्तव्य बना लिया। क्षेत्रको वर्तमान स्थिति
सुदर्शन मुनिकी टेकरी-पटना शहरमें गुलजारबाग स्टेशनके निकट ही दिगम्बर जैन मन्दिर और धर्मशाला है । मन्दिर छोटा है किन्तु सुन्दर है और धर्मशालाके बीचोंबीच बना हुआ है । इसमें भगवान् नेमिनाथकी तीन फुटकी कृष्ण वर्ण पद्मासन प्रतिमा है जो सं. १९४०में प्रतिष्ठित हुई है । मूलनायकके अतिरिक्त छह धातु-प्रतिमाएँ हैं। इनमें एक चौबीसी है और एक खड्गासन प्रतिमा सुदर्शन स्वामीकी है। इन प्रतिमाओंमें एक सं. १६२९ तथा दूसरी सं. १७०० की है। बीचमें सुदर्शन मुनिके चरण विराजमान हैं। मन्दिर शिखरबद्ध है। धर्मशालामें कुल १४ कमरे हैं, १० नीचे ४ ऊपर। इसका प्रबन्ध पहले छपराके दिगम्बर जैन बन्धु करते थे। बादमें पटनाके श्री कन्हैयालालजीके सुपुर्द यहाँकी व्यवस्था कर दी गयी । सन् १९२० में इसका प्रबन्ध भा. दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, बम्बईके सुपुर्द कर दिया गया। तबसे मन्दिर और धर्मशाला दोनोंका ही विकास हुआ है।
इस समय पटनामें कुल मिलाकर ५ मन्दिर और १ चैत्यालय है।
इस मन्दिरके निकट ही सड़कके दूसरी ओर तथा रेलवे लाइनके दक्षिणकी ओर बेरके पेड़ोंके बीचमें (सड़कसे लगभग १ फलांग दूर) सुदर्शन मुनिकी टेकरी है, जिसमें उनके चरण विराजमान हैं । जो श्याम पाषाणके ८ अंगुल प्रमाण हैं। टेकरीके चारों ओर चार तालाब हैं । उद्यानके दूसरे सिरेपर तालाबके किनारे ऊपर छतपर स्थूलभद्र मुनिके श्वेत चरण एक कमरेमें विराजमान हैं। इनके दोनों ओर सं. १८४८ का प्रतिष्ठा-लेख अंकित है। दोनों टेकरियोंके बीचमें कमलदह तालाब है । इसमें कमल खिले रहते हैं, अतः तालाबका नाम कमलदह कहलाता है। पाटलिपुत्रका ऐतिहासिक महत्त्व
मगधनरेश बिम्बसार श्रेणिकके पुत्र अजातशत्रने वैशालीके वज्जियोंके आक्रमणसे बचावके लिए गंगा और सोनके संगमपर ई. पूर्व ४८० में अपने मन्त्री सुनीथ और वर्षकारको' भेजकर
१. महावग्ग, भाग ६, अध्याय २८ ।