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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसांके दिगम्बर जैन तीर्थ १३१ व्रतीके शीलकी शिलासे रानीके सभी शस्त्र टकराकर बेकार हो गये तो वह खीज और क्रोधसे भर उठी। उसे अब अपनी प्रतिष्ठा बचानेकी चिन्ता हुई। उसने अपने कपड़े फाड़ डाले, अपने नाखूनोंसे शरीर क्षत-विक्षत कर लिया, बाल बिखेर लिये और कातर वाणीमें चिल्लाने लगी"बचाओ, बचाओ, यह दुष्ट मेरा सर्वनाश करना चाहता है।' ___रानीकी चीख-पुकार सुनकर राज-सेवक, प्रतीहार आदि दौड़े आये। अपराध साधारण नहीं था। राज्यकी महारानीके साथ बलात्कारका मामला था। बात राजा तक पहुँची। राजाने क्रोधमें आकर आज्ञा दे दी-"श्मशानमें ले जाकर इस दुष्टका सिर काट दो।" राजाज्ञानुसार वधिक लोग सुदर्शन सेठको पकड़कर श्मशानमें ले गये और उन्होंने एक साथ उनका मस्तक काटने के लिए तलवारें चलायीं। किन्तु कैसा आश्चर्य कि सुदर्शन सेठके गलेमें जहाँ तलवार लगी, वहाँ घाव न होकर फूलोंको माला हो गयो। वधिकोंने इस दृश्यको बड़े आश्चर्यमें भरकर देखा। तबतक उन्हें आकाशमें देवोंकी जयजयकार सुनाई दी-"धन्य है सुदर्शनके शीलवतको।" देवोंने पुष्पवृष्टि को और सुदर्शनकी पूजा की। इस अद्भुत चमत्कारको देखकर राजा दधिवाहन प्रजाजनोंसे घिरा हुआ वहाँ आया। वह आकर बार-बार क्षमा मांगने लगा और बोला-"सुदर्शन ! मेरा आधा राज्य ले लो और आनन्दपूर्वक रहो।" किन्तु सुदर्शन बोले-"महाराज ! आपने कुछ नहीं किया। यह तो मेरे कर्मोंका दोष है।" संयोगसे तभी उधर विमलवाहन नामक मुनि आ गये। सुदर्शनने अपनी प्रतिज्ञानुसार उनसे मुनि-दीक्षा ले ली और तपस्या करने लगे। रानी अभयाने भयके मारे आत्म-हत्या कर ली। दुष्टा धाय वहाँसे भाग गयी और पाटलिपुत्रमें देवदत्ता नामक वेश्याके यहाँ रहने लगी। रानी मरकर व्यन्तरी बनी। मुनि सुदर्शन विहार करते हुए एक दिन पाटलिपुत्र पहुँचे । धायने उन्हें देख लिया और देवदत्तासे बोली-“जिसकी वजहसे मैं बर्बाद हुई, वह यह साधु है।" देवदत्ताने साधुको देखा। वह बोली-“मैं देखती हूँ, यह कितना बड़ा ब्रह्मचारी है।" उसने अपनी दासीको भेजकर मुनिराजको किसी बहानेसे अपने घरपर बला लिया। उसने उन्हें तीन दिन तक अपने घरपर ही बन्द रखा और घोर उपसर्ग किये किन्तु धीर-वीर मुनि किंचिन्मात्र भी विचलित नहीं हुए। तब देवदत्ता भयभीत होकर मुनिको श्मशानमें छोड़ आयी। मुनिराजने उपसर्गके कारण आहारका त्याग कर दिया। श्मशानमें अभया व्यन्तरीने सात दिन तक मुनिके ऊपर भयानक उपसर्ग किये । मुनिराज सुदर्शन अत्यन्त धीरतापूर्वक इन उपसर्गोको साम्यभावसे सहते हुए आत्म-साधनामें लीन रहे। उनके कर्म-जाल छिन्न-भिन्न होते गये और उपसर्गके सातवें दिन उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। देवताओंने आकर उनके केवलज्ञानकी पूजा की और गन्धकुटीकी रचना की। नर-नारी भगवान्के । दर्शनोंके लिए आये। धाय, देवदत्ता और व्यन्तरी भी भगवान्की शरणमें पहुंचे। उनके उपदेशको सुनकर सबने श्रावकके व्रत धारण किये। फिर कुछ दिनों तक विहार करके सुदर्शन केवलीने पाटलिपुत्रसे निर्वाण प्राप्त किया। -हरिषेण कथाकोष-कथा ६०
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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