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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ १२९ श्वेताम्बर परम्परामें गौतम स्वामीका चरित्र इस प्रकार उपलब्ध होता है इन्द्रभूति गौतम मगधकी राजधानी राजगृहके निकट गोर्वर ( गोवर गाँव ) ग्रामके रहनेवाले थे। वे गौतम गोत्रीय वसुभूति ब्राह्मणके पुत्र थे। इनकी माताका नाम पृथ्वी था। उनका नाम यद्यपि इन्द्रभूति था, पर अपने गोत्राभिधान 'गौतम' इस नामसे ही अधिक विश्रुत थे। पचास वर्षकी आयुमें आपने पाँच सौ छात्रोंके साथ प्रव्रज्या ग्रहण की। तीस वर्ष तक छद्मस्थ रहे और बारह वर्ष पर्यन्त केवली रहे। बानबे वर्षकी आयु में गुणशील चैत्यमें मासिक अनशन करके निर्वाण प्राप्त किया। क्षेत्र-दर्शन पावापुरीकी तरह यहाँ भी एक सुन्दर सरोवरमें भव्य जिनमन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिरमें एक वेदीमें गौतम स्वामीके चरण विराजमान हैं। तथा दूसरी वेदीमें भगवान् पार्श्वनाथ की श्याम वर्ण पाँच इंची प्रतिमा है। चरणचौकीपर सर्पलांछन है। ऊपरका सर्प-फण टूट गया है। मन्दिर तक जानेके लिए दो सौ फुट लम्बा एक पुल बना हुआ है। पुलके पास दक्षिणमें जो धर्मशाला बनी हुई है, वह श्वेताम्बर भाइयोंके अधिकारमें है। दिगम्बर समाजका एक शिखरबन्द मन्दिर नवीन धर्मशालाके वीचमें बना हुआ है जो राव राजा सर सेठ सरूपचन्द हुकमचन्द इन्दौरवालोंकी ओरसे सं. १९८२ में निर्मित हुआ है। इस मन्दिरमें मूलनायक प्रतिमा भगवान् कुन्थुनाथकी है, जो पद्मासन, श्वेतवर्ण है तथा लगभग सवा चार फुट अवगाहनाकी है। इसकी प्रतिष्ठा वीर सं. २४६४ में हुई थी। मूलनायकके आगे पाँच प्रतिमाएँ श्वेत पाषाणकी हैं, जिनमें दो पार्श्वनाथ प्रतिमाएँ क्रमशः संवत् १४४८ और संवत् १५४८ की हैं। इन प्रतिमाओंके आगे भगवान महावीरकी श्वेत वर्ण पद्मासन एक फट सवा इंच अवगाहनाकी विराजमान है । एक ओर वीर सं. २४५३ के प्रतिष्ठित चरण विराजमान हैं। इनके अतिरिक्त धातुकी ४ प्रतिमाएँ हैं। मन्दिरमें गर्भगृहके अतिरिक्त सभामण्डप तथा बाहर काफी बड़ा दालान है। मन्दिरके सामने धर्मशालाके भीतर ही एक मानस्तम्भ श्री केशरीमल लल्लूमलजी गया द्वारा संवत् २४७४ में प्रतिष्ठित कराया गया है। मानस्तम्भकी वेदीमें चतुर्मुखी प्रतिमा विराजमान है। धर्मशालामें कुल पन्द्रह कमरे हैं। धर्मशालाके भीतर एक और बाहर एक इस प्रकार कुल दो कुएँ हैं।। धर्मशाला सड़कके बिलकुल किनारेपर है, जबकि जलमन्दिर धर्मशालाके पीछे उससे लगभग एक फर्लाग दूर है। यहाँ वर्षमें कोई मेला नहीं भरता। यहाँका प्रबन्ध भा. दि. जैन तीर्थ-क्षेत्र कमेटी की ओरसे बिहार प्रान्तीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी आरा करती है। १. आवश्यक नियुक्ति, गाथा ६४३ से ६५५, आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, ३३८-३३९ । भाग २-१७
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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