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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१२७ भविष्यवाणी को-"यह बालक बड़ा होने पर समस्त विद्याओंका स्वामी होगा। और सारे संसारमें इसका यश फैलेगा।"
बालक अत्यन्त रूपवान् था। उसके मुख पर अलौकिक तेज था। उसे जो देखता था, वह देखता ही रह जाता था। वह प्रियदर्शन था। माता पिताने उसका नाम इन्द्रभति रखा। __. बालक इन्द्रभूति अभी तीन वर्षका ही था, जब माता स्थण्डिलाने द्वितीय पुत्रको जन्म दिया। यह जीव भी पाँचवें स्वर्गसे आया था। वैसा ही पुण्यात्मा और प्रभावशाली। इसका नाम गायं रखा गया, जो बादमें अग्निभूतिके नामसे प्रसिद्ध हुए।
इसके कुछ समय पश्चात् द्वितीय ब्राह्मण-पत्नी केसरीके भी वैसा ही तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हआ, जिसका नाम भार्गव रखा गया। यह भी पांचवें स्वर्गसे आया था। यह पत्र बादमें वायुभूतिके नामसे विख्यात हआ।
तीनों भाइयोंने सम्पूर्ण वेद और वेदांगोंका अध्ययन किया। और वे उसमें पारंगत हो गये। विद्वान् बननेके बाद उन्होंने अपने-अपने गुरुकुल खोल लिये और छात्रोंको विद्याध्यापन कराने लगे। इन्द्रभूतिके पास पाँच सौ शिष्य पढ़ते थे। किन्तु इतना विद्वान् होकर भी उनके चरित्रमें एक बड़ा दोष था। उन्हें अपनी विद्याका बड़ा अभिमान था। वे समझते थे कि उनके समान विद्वान इस संसार में अन्य कोई नहीं है।
भगवान् महावीर एक दिन छद्मस्थ अवस्थामें विहार करते हुए ऋजुकूला नदीके तट पर एक शालवृक्षके नीचे किसी शिला पर तेलाका नियम लेकर ध्यान लगाकर बैठ गये। उन्होंने वैशाख शुक्ला दशमीको चारों घातिया कर्मोंका विनाश कर दिया। फलतः उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। चारों प्रकारके देवों और इन्द्रोंने आकर भगवान्को नमस्कार किया। सौधर्म इन्द्रने कुबेरको तत्काल समवसरण निर्माण करने की आज्ञा दी। देवताओंने आनन-फानन में समवसरणकी रचना कर दी। उसमें बारह कक्ष थे। देव, मनुष्य, तिर्यंच आदि यथानिश्चित कक्षोंमें आकर बैठ गये। भगवान् गन्धकुटीमें सिंहासन पर विराजमान हो गये किन्तु उनकी दिव्य ध्वनि नहीं खिरी।
यह देखकर सौधर्म इन्द्रने अपने अवधिज्ञानसे विचार किया कि यदि इन्द्रभूति गौतम आ जायें तो भगवान् की दिव्य ध्वनि खिरने लगेगी। यह विचार कर इन्द्र एक वृद्ध ब्राह्मणका रूप धारण कर इन्द्रभूति गौतमके गुरुकुलमें पहुंचा और छात्रोंसे बोला-मुझे एक श्लोकका अर्थ समझना है। यहाँ सबसे बड़ा विद्वान कौन है जो मुझे इसका अर्थ समझा सके। मेरे गुरु इस समय धर्म-कार्यमें लगे हुए हैं । इसलिए वे इस समय मुझे कुछ बता नहीं रहे हैं।
___ छात्रोंने वृद्धको अपने गुरु गौतमके पास पहुँचा दिया। वृद्धने उनसे भी यही बात कही। गौतम अभिमानकी मुद्रामें बोले-ब्राह्मण देवता ! तुम्हें जो पूछना हो पूछ सकते हो।
वृद्ध बोला-विप्रवर्य ! यदि आप मेरे काव्यका अर्थ बता देंगे तो मैं आपका शिष्य बन जाऊँगा। यदि न बता सके तो आपको मेरे गुरुका शिष्यत्व स्वीकार करना होगा।
गौतम इस शर्तसे सहमत हो गये । तब वृद्धने श्लोक बोला-'काल्यं द्रव्यषट्कं' इत्यादि श्लोक सुनकर इन्द्रभूति उसका अर्थ विचारने लगे, किन्तु अर्थ नहीं कर पाये-छह द्रव्य, नौ पदार्थ, छह लेश्या, पाँच अस्तिकाय कौनसे हैं। किन्तु अभिमान वश वृद्ध ब्राह्मणके समक्ष यह बात कह भी नहीं सके। उन्होंने बात छिपाते हुए कहा-"मैं तुम्हें क्या बताऊँ, चलो, तुम्हारे गुरुके समक्ष ही अर्थ बताऊँगा।'
इन्द्र यही तो चाहता था। वह इन्द्रभूतिको उनके शिष्य परिकरके सहित लेकर चल दिया। जब समवसरणके द्वारके भीतर घुसते ही सामने मानस्तम्भ देखा तो इन्द्रभूतिके मनका अभिमान