SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सुदृढ़ करने और कूटनैतिक गतिविधियोंमें व्यस्त रहनेके कारण आने तकका अवकाश नहीं मिल पाया, युद्ध-जैसे विद्वेषपूर्ण प्रतिशोधकी बात तो बहुत दूरकी थी। रही हस्तिपाल राजाकी बातउस कालमें एक गांवके स्वामी जमींदारको भी राजा कहा जाता था। हस्तिपाल ऐसा ही कोई छोटा करद राजा होगा। . ६. सठियाँव, पड़रौना और पपउर सभी स्थानोंपर पुरातत्त्ववेत्ता श्री कनिंघम, वैगलर, कारलाइल आदि अनेक विद्वानोंने शोध-यात्रा की, किन्तु आजतक एक भी जैनमूर्ति, लेख, जैनस्तूप अथवा जैनमन्दिरके अवशेष आदि नहीं मिले, जबकि पावापुरीका जलमन्दिर और गाँवका मन्दिर काफी प्राचीन हैं, यहाँ अनेक प्राचीन जैनमूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं और कई मूर्तियाँ दिगम्बर जैन मन्दिरमें अबतक रखी हुई हैं। सठियांवमें जो थोड़ी-सी पुरातत्त्व सामग्री मिली है, उसमें भी जैनोंसे सम्बन्धित कोई सामग्री नहीं है। पावापुरीको १३-१४वीं शताब्दीमें भूल या भ्रमसे महावीरको निर्वाण-भूमि मान लिया गया है, इस मान्यताके पक्षमें कोई आधार या प्रमाण नहीं दिया गया। ७. उपर्युक्त कारणोंसे पावापुरी ही वस्तुतः भगवान् महावीरकी निर्वाण-भूमि है। सठियाँव मल्लोंको प्राचीन पावा भले ही हो, किन्तु महावीरका निर्वाण मल्लोंकी पावामें नहीं हुआ, इतना निश्चित है। सठियांवके पक्षमें एक ही बातपर जोर दिया जा रहा है कि सठियाँव ही मल्लोंकी पावा है । हम भी इसे मानते हैं । किन्तु महावीरका निर्वाण मल्लोंकी पावासे नहीं, मध्यमा पावासे हुआ, इसे भुला दिया जाता है । एक नामके तो अनेक गाँव हो सकते हैं। समीक्षा 'दोनों पक्षोंके उपर्युक्त तर्कोपर गम्भीरतापूर्वक विचार करनेकी आवश्यकता है। दोनों ही ओरके तोंमें बल है। किन्तु प्रथम पक्षको अभी यह सिद्ध करना शेष है कि महावीरका निर्वाण मल्लोंकी पावासे हुआ। यदि वह पक्ष इस बातको सिद्ध कर सका तो जैन शास्त्रोंमें उल्लिखित मध्यमा पावाके साथ मल्लोंकी पावाका समन्वय किस प्रकार किया जाये, यह भी सिद्ध करना होगा। अतः हमारी विनम्र सम्मति है कि जबतक सठियांवके पक्षमें ठोस और सर्वसम्मत शास्त्रीय, ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक साक्ष्य प्राप्त न हो जायें, तबतक शताब्दियोसे निर्वाण-क्षेत्रके रूपमें मान्य पावापुरीको हो भगवान् महावीरकी निर्वाण-भूमि मानना तर्कसंगत और बुद्धिमत्तापूर्ण होगा। मार्ग पावापुरी बिहार प्रान्तमें पटना जिलेके बिहारशरीफसे दक्षिणकी ओर १४ कि. मी. दूर जैनोंका एक महान् सिद्धक्षेत्र है। यह पटना-राँची सड़कसे एक मील है । पूर्व दिशासे आनेवाले यात्रियोंको ई. आर. के नवादा स्टेशनसे २२ कि. मी. और पश्चिम दिशासे आनेवालोंको बख्त्यारपुरसे १३ कि. मी. पड़ता है। स्टेशनपर टैक्सी आदि हर समय मिलते हैं । इसके आसपासमें गुणावा (नवादासे दो मील) २१ कि. मी., राजगृही १८ कि. मी. और कुण्डलपुर तीर्थ हैं। सड़कके मोड़पर टमटम, ताँगे मिलते हैं। मोटर-स्टैण्डसे गुणावा, नवादा, चम्पापुर (भागलपुर), राजगिर, पटना, आरा, नालन्दा आदिके लिए भी बस और टैक्सियाँ मिलती हैं। बख्त्यारपुर-राजगिर रेलवे लाइनपर पावापुर रोड नामका एक स्टेशन भी है जो बख्त्यारपुरसे १० कि. मी. दूर है। वहाँपर कोई सवारी नहीं मिलती। अतः पावापुरीके यात्रियोंको वहाँ नहीं उतरना चाहिए।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy