________________
बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१२३ और मल्ल संघोंका शत्रु था। फिर महावीर-निर्वाणके समय नौ मल्ल और नौ लिच्छवि राजा पावापुरीमें किस प्रकार आ सकते थे।
५. पावापुरीमें कुछ भी पुरातत्त्व सामग्री नहीं है, जबकि सठियांवमें चारों ओर प्राचीन नगरों, भवनों और स्तूपोंके अवशेष फैले हुए हैं। और राजगृहीके निकट हस्तिपाल नामक राजा कैसे हो सकता था।
६. १३वीं-१४वीं शताब्दीमें उत्तर बिहारसे जैन धर्म हटकर दक्षिण बिहारमें केन्द्रित हो गया था। उन्हीं दिनों पावापुरीको महावीरकी निर्वाण-भूमि मान लिया गया, जिस प्रकार कुण्डलपुर या लिच्छुआड़को महावीरकी जन्मभूमि मान लिया गया था।
एक दूसरा पक्ष है जो इस नवीन मान्यताके विरुद्ध है और जो परम्परागत रूपसे मान्य पावापुरीको ही महावीरकी निर्वाणस्थली मानता है। इस पक्षके तर्क इस प्रकार हैं
१. मल्लोंको पावामें महावीरका निर्वाण हुआ, इस प्रकारका कोई उल्लेख किसी जैन या बौद्ध शास्त्रमें उपलब्ध नहीं होता। जबकि बुद्धके प्रसंगमें मल्लोंकी पावाका उल्लेख किया गया है, किन्तु निगण्ठनातपुत्रके मृत्यु प्रसंगमें सर्वत्र बौद्ध ग्रन्थोंमें केवल पावाका ही नामोल्लेख किया गया है। इसीसे सिद्ध है कि महावीरका निर्वाण मल्लोंकी पावामें नहीं, उससे भिन्न पावामें हुआ था।
२. जैन ग्रन्थोंमें मल्लोंकी पावामें नहीं बल्कि मध्यमा पावामें महावीरका निर्वाण माना है। इससे प्रतीत होता है कि उस समय तीन नगर पावा नामके थे। महावीरका निर्वाण मध्यम पावामें हआ। स्थल कोषोंसे भी सिद्ध है कि उस कालमें पावा नामक तीन नगर थे-१. मल्लोंकी पावा, २. नालन्दाकी निकटवर्ती पावा-वर्तमान पावापुरी और ३. भंगि जनपदकी राजधानी पावा । पावापुरी इन दोनोंके मध्यमें अवस्थित थी। अतः वही महावीरकी निर्वाण-भूमि है।
३. जिन विद्वानोंने पावापरीको महावीरका निर्वाण-स्थान न मानकर सठियाँवको निर्वाणस्थान माना है, उनके समक्ष केवल बौद्ध ग्रन्थ रहे हैं और जहाँ बुद्धको सूकरमद्दव खानेसे रोग हुआ, वह पावा रही, किन्तु जैन ग्रन्थ सम्भवतः उनके सामने नहीं थे। इसलिए बौद्ध ग्रन्थोंके आधारपर उन्होंने पावाके बारेमें निर्णय कर लिया। जैन ग्रन्थोंकी मध्यमा पावा शब्दपर सम्भवतः उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया।
४. निगण्ठ नातपुत्त (महावीर) के निर्वाणके प्रसंगमें बौद्ध ग्रन्थोंमें जो कुछ लिखा गया, वह सद्भावके साथ नहीं लिखा गया। वह मिथ्या तो है ही, शरारतपूर्ण भी है। जैसे उपालि द्वारा बुद्धकी प्रशंसामें दस गाथा कहनेपर निगण्ठ नातपुत्तके मुखसे उष्ण रक्तका वमन होना और उसीसे उनकी मृत्यु, निगण्टनातपुत्तके कालकवलित होते ही निगण्ठों और श्वेत पटधारियोंमें कलह होना, सारिपुत्रकी मृत्यु एक वर्ष पूर्व होनेपर भी उनके द्वारा निगण्ठ नातपुत्तकी मृत्युका समाचार बुद्धको देना, चुन्द द्वारा निगण्ठ नातपुत्तको मृत्यु और उनके अनुयायियोंमें कलहका समाचार सुनकर आनन्द द्वारा इस समाचारको तथागतके लिए भेंटस्वरूप कहना आदि । इसलिए महावीरके निर्वाणके सम्बन्धमें बौद्ध ग्रन्थोंकी कोई बात विश्वसनीय नहीं है।
५. मल्ल और लिच्छवि राजा पावापुरी अर्थात् शत्रु-प्रदेशमें आये, इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है। शोकके अवसरोंपर राजनैतिक शत्रु भी प्रायः एक स्थानपर पहुंचते हैं। मल्ल और लिच्छवियोंके समान अजातशत्रु भी भगवान् महावीरका भक्त था। भगवान् महावीरके निर्वाणोत्सवमें सम्मिलित हुए इन गणतन्त्री राजाओंके विरुद्ध अजातशत्रु यदि कोई द्वेषपूर्ण कार्य करता तो सम्पूर्ण लोकमत उसके विरुद्ध हो जाता। दूसरी बात यह थी कि अजातशत्रुको अपनी स्थिति