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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
निगंठ नातपुतको मृत्युका कारण
'ननु अयं नातपुत्तो नालन्दावासिको। सो कस्मा पावायां कालकतो। ति । सो किर उपालिना गाहापतिना पटिवद्ध सच्चेन दसहि गाथाहि भाषिते बुद्धगुणे सुत्वा उण्हं लोहितं छड्डेसि । . ' अथ नं अफासुकं गहेत्वा पावां अगमंसु । सो तत्थ कालं अकासि ।'
-मज्झिम निकाय-अटकथा, सामगाम सुत्त वण्णना, खण्ड ४, प. ३४ अर्थात् वह नातपुत्त तो नालन्दावासी था, वह पावामें कैसे कालगत हुआ ? सत्यलाभी उपालि गृहपतिके दस गाथाओंसे भाषित बुद्धके गुणोंको सुनकर उसने उष्ण रक्त उगल दिया। तब अस्वस्थ ही उसे पावा ले गये और वह वहीं कालगत हुआ। पावा-समीक्षा
जैन शास्त्रों और बौद्ध ग्रन्थों में पावा सम्बन्धी उपर्युक्त उल्लेखोंको पढ़कर ऐसा लगता है कि महावीर और बुद्धके कालमें पावा नामक कई नगर थे। जैन शास्त्रोंमें पावाके लिए मज्झिमा पावा अथवा मध्यमा पावा नामका प्रायः उपयोग किया गया है। उससे प्रतीत होता है कि पावा नामक तीन नगर थे। भगवान् महावीरका निर्वाण मध्यवर्ती पावा नगरके बाह्य भागमें हुआ। बौद्ध ग्रन्थोंके उपर्युक्त उल्लेखोंका सूक्ष्म निरीक्षण करनेपर प्रतीत होता है कि उस कालमें पावा नामक नगर एकसे अधिक थे। एक पावा मल्लोंकी थी। वहाँ कर्मारपुत्र चुन्दने तथागत बुद्धको भोजनमें सूकर मद्दव खानेको दिया। सूकर मद्दव खाते ही बुद्धको खून गिरने लगा, जिससे उन्हें मरणान्तक वेदना हुई और कुशीनारामें पहुंचकर इसी रोगसे उनकी मृत्यु हो गयी। तथागतके निर्वाणके प्रसंगसे मल्लोंकी पावाको बड़ी प्रसिद्धि मिली। किन्तु इसके अतिरिक्त एक अन्य पावाका भी उल्लेख बौद्ध ग्रन्थोंमें इसी सन्दर्भ में मिलता है, जहाँ निगण्ठ नातपुत्त ( महावीर ) कालकवलित .. हुए। बुद्धके प्रसंगमें जहाँ पावाका उल्लेख आया है, वहाँ सर्वत्र 'मल्लोंकी पावा' इस रूपमें वर्णन किया गया है और जहाँ निगण्ठ नातपुत्तके प्रसंगमें पावाका नामोल्लेख हुआ है, वहाँ उसके साथ कोई विशेषण नहीं दिया गया, केवल पावा ही दिया है।
जैन-बौद्ध ग्रन्थोंके उल्लेखोंसे स्पष्ट ज्ञात होता है कि उस युगमें पावा नामके कई नगर थे। इस कारण महावीरका निर्वाण किस पावामें हुआ, इस विषयमें इतिहासकारों और विद्वानोंमें कुछ मतभेद हो गया है। एक पक्ष मल्लोंकी पावाको महावीरकी निर्वाण-भूमि स्वीकार करने लगा है, जबकि दूसरा पक्ष परम्परागत और पटना जिलेवाली वर्तमान पावापुरीको ही महावीरकी निर्वाणभूमि मानता है। दोनों ही पक्षों के पास कुछ युक्तियाँ हैं, आधार हैं। अतः दोनोंको युक्तियोंपर विचार करके ही किसी निर्णयपर पहुँचा जा सकता है।
प्रथम पक्षका कहना है कि
१. महावीर और बुद्धके कालमें पावा नामकी एक ही नगरी थी। वह मल्लोंकी पावा थी। वहींसे महावीरका निर्वाण हुआ, वहीं बुद्धको सूकर मद्दव खानेसे रोग हुआ।
२. मल्लोंकी पावाके ध्वंसावशेष सठियांव-फाजिलनगरमें बिखरे पड़े हैं। पावाके खण्डहर ही अब सठियाँवडीह कहलाते हैं ।
३. निर्वाणकाण्ड आदिके अनुसार पावामें बहत-से सरोवर थे। सठियांवमें चारों ओर विपुल संख्यामें अब भी सरोवर हैं, जबकि पावापुरीमें केवल एक ही सरोवर है।
४. वर्तमान पावापुरीका क्षेत्र मगध सम्राट् अजातशत्रुके आधिपत्यमें था। वह लिच्छवि