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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
१२१ अर्थात् एक बार भगवान् (बुद्ध ) शाक्य देशमें सामगाममें विहार कर रहे थे। निगण्ठ नातपुत्तकी कुछ समय पूर्व ही पावामें मृत्यु हुई थी। उनकी मृत्युके अनन्तर ही निगण्ठोंमें फूट हो गयी, दो पक्ष हो गये, वे कलह करते एक दूसरेको मुखरूपी शक्तिसे छेदते विहर रहे थे"तू इस धर्मविनयको नहीं जानता, मैं इस धर्मविनयको जानता हूँ। तू भला इस धर्मविनयको क्या जानेगा ? तू मिथ्यारूढ़ है, मैं सत्यारूढ़ हूँ।"
____निगण्ठ नातपुत्तके श्वेत वस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य भी नातपुत्रीय निगण्ठोंमें वैसे ही विरक्त चित्त हैं, जैसे कि वे नातपुत्तके दुराख्यात ( ठीकसे न कहे गये ), दुष्प्रवेदित ( ठीकसे साक्षात्कार न किये गये ). अनैर्याणिक ( पार न लगानेवाले), अनुपशम संवर्तनिक (न शान्तिगामी), असम्यक् सम्बुद्ध प्रवेदित ( किसी बुद्धसे न जाने गये ), भिन्न रूप, आश्रय रहित धर्मविनयमें थे।
चुन्द समणुद्देस पावामें वर्षावास समाप्त कर सामगाममें आयुष्मान् आनन्दके पास आये और उन्हें निगण्ठ नातपुत्तकी मृत्यु तथा निगण्ठोंमें हो रहे विग्रहकी सूचना दी। आयुष्मान् आनन्द बोले-"आवुस चुन्द ! भगवान्के दर्शनके लिए यह बात भेंट रूप है। आओ, आवुस चुन्द ! जहाँ भगवान् हैं, वहाँ चलें। चलकर यह बात भगवान्को कहें।"
'अच्छा भन्ते !' चुन्द समणुद्देसने कहकर आयुष्मान् आनन्दका समर्थन किया। निर्वाण संवाद-२
एवं मे सुतं । एक समयं भगवा सक्केसु विहरतो वेधचा नाम सक्या तेसं अम्बवने पासादे।.......( शेष सामगाम सत्तन्तके समान)
-दीघनिकाय, पासादिक सत्त, : मान बद्ध शाक्य देशमें शाक्योंके वेधचा नामक आम्रवन-प्रासादमें बिहार कर रहे थे।.... .. निर्वाण संवाद-३
‘एवं मे सुतं । एकं समयं भगवा मल्लेसु चारिकं चरमानो महता भिक्खुसङ्घन सद्धि पञ्चमत्तेहि भिक्खुसतेहि येन पावा नाम मल्लानं नगरं तदवसरि। तत्र सुदं भगवा पावायं विहरति चुन्दस्स कम्मारपुत्तस्स अम्बवने ।.......
तेन खो पन समयेन निगंठो नातपुत्तो पावायं अधुना कालङ्कतो होति । ( शेष सामगाम सुत्तके समान )-दीघनिकाय, संगीति परियाय सुत्त ३।१०।२ ___अर्थात् एक समय पाँच सौ भिक्षुओंके महासंघके साथ भगवान् मल्ल देशमें चारिका करते, जहाँ पावा नामक मल्लोंका नगर है, वहाँ पहुँचे। वहाँ पावामें भगवान् चुन्द कारपुत्रके आम्रवनमें विहार करते थे। ( मल्लोंका उन्नत व नवीन संस्थागार उन्हीं दिनों बना था। पावावासी भगवान बद्धसे संस्थागारमें पधारनेकी प्रार्थना करने आये । भगवान्ने मौन रहकर अपनी स्वीकृति दे दी। तब भगवान अपने भिक्षु-संघ सहित संस्थागारमें पधारे और धर्मकथा कहकर पावावासियोंको सम्प्रहर्षित किया। जब पावावासी चले गये, तब भगवान् ने शान्त भिक्षु-संघको देख आयुष्मान् सारिपुत्तको आमन्त्रित किया और उनसे भिक्षुओंको धर्मकथा सुनानेके लिए कहा।) उस समय निगंठ नातपुत्त अभी-अभी पावामें कालको प्राप्त हुए थे।
भाग २-१६