SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं ओरकी आबादी पावामें और दूसरी ओर की आबादी पुरीमें मानी जाने लगी और दोनों पृथक् गाँव बन गये । शास्त्रोंके उल्लेखानुसार महावीर अपने अन्तिम समय में पावा नगरके बाह्य भाग में मनोहर नामक उद्यानमें पधारे और वहाँ के उन्नत भूमि भाग में योग निरोध करके ध्यानारूढ़ हो गये । वहींसे उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया । इस उल्लेख से यह तो स्पष्ट ही है कि महावीरका निर्वाण पावानगरके मध्यमें नहीं हुआ, अपितु पावानगर के बाह्य भागमें हुआ । भगवान् के निर्वाणके पश्चात् जब उस स्थान पर सरोवर अथवा पोखर बन गया ( जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है ) और उसके निकट वस्ती बस गयी तो उस बस्तीको पोखर के नाम पर पोखरपुर कहने लगे । जल मन्दिरसे पोखरपुर १ मील, पुरी १ मील और पावा २ मील दूर है। यहाँ तथा आसपास में पुरातन अवशेष और पुरातत्त्व सामग्री विपुल मात्रा में मिलती है । दिगम्बर जैन कार्यालय मन्दिर में विराजमान चार प्रतिमाएँ इसी क्षेत्रकी हैं। गाँवका मन्दिर भी काफी प्राचीन है । इस मन्दिरका जीर्णोद्धार वि. संवत् १६९८ में हुआ था । उस समय यहाँ भगवान्के चरण विराजमान किये गये थे। इन चरणोंकी स्थापना महत्तियाण वंशके श्रावकों ने की थी। खरतरगच्छकी 'युग प्रधानाचार्यं गुर्वावली' के अनुसार विहारशरीफ, नालन्दा और राजगृही में इस जातिके लोग बहुत संख्या में रहते थे । और जैनधर्म का पालन करते थे । इस जातिके श्रावकों ने कई जैनाचार्योंके चतुर्मास यहाँ कराये, यात्रा संघ निकाले । यह जाति भी सराकों की तरह जैनों से सम्पर्क टूट जानेसे हिन्दू बन गयी । बस्तीके मन्दिरका अभी जीर्णोद्धार हुआ है । उस समय जब यहाँ खुदाई करायी गयी थी, प्राचीन मन्दिरका भाग निकला था । उससे लगा कि वर्तमान मन्दिर किसी प्राचीन मन्दिर के ऊपर ATT हुआ है । अथवा किसी प्राचीन मन्दिरका जीर्णोद्धार होकर मन्दिरको वर्तमान रूप मिला है | • कुछ वर्षों पूर्व तक बस्ती के मन्दिर के आसपास अनेक प्राचीन मूर्तियाँ मिलती थीं । पावा गाँव में जाने पर अब भी वहाँ अत्यन्त प्राचीन हिन्दू मन्दिर और जैन मन्दिरोंके भग्नावशेष मिलते हैं । इन अवशेषों को देखकर यह अनुमान लगाया जाता है कि यही वह पावा है, जिसका नाम जैन शास्त्रोंमें अपापापुरी, मज्झिमा पावा अथवा पावापुर मिलता है । पावाकी वास्तविक स्थिति भगवान् महावीरकी निर्वाण भूमि अबतक विहार शरीफसे सात मील दक्षिण - पूर्वमें और गिरियकसे दो मील उत्तरमें मानी जाती थी । किन्तु जब कुछ पुरातत्त्व - वेत्ताओं और इतिहासकारों ने यह लिख दिया कि पावा, जहाँ महावीरका निर्वाण हुआ, नालन्दाकी निकटवाली पावा नहीं, आपितु कुशीनाराकी निकटवर्ती पावा है, तब विद्वानोंमें इस सम्बन्ध में अनुकूल-प्रतिकूल चर्चा चल पड़ी। पावा कहाँ थी, सही पावा कौन-सी थी, इसका निर्णय करनेके लिए हमें जैन और बौद्ध वाङ्मयके उन साक्ष्योंका अन्तःपरीक्षण करना आवश्यक हो गया, जिनमें पावाका उल्लेख मिलता है । श्वेताम्बर साहित्य में पावा श्वेताम्बर सूत्रों और ग्रन्थों — कल्पसूत्र, आवश्यक निर्युक्ति, परिशिष्ट पर्व, और विविध तीर्थंकल्पका अपापा बृहत्कल्प आदिमें पावाके स्थान पर मध्यमा पावा और अपापा इन दो नामोंका प्रयोग मिलता है । भगवान् महावीर इस नगरीमें दो बार आये । सम्भव है, वे यहाँ अनेक बार पधारे हों । किन्तु दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ इस नगरी में घटित हुई थीं, इसलिए इस नगर में भगवान्के दो बार आगमनको चर्चा विशेष उल्लेखनीय है ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy