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________________ ११६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ऊपर पुष्पमाल लिये हुए देवियाँ बनी हुई हैं। फलकके दोनों ओर ऊपरी भागोंमें क्रमशः दुन्दुभि और झाँझ अंकित हैं । प्रतिमाके पाद-पीठपर दो सिंह बने हुए हैं और उनके मध्यमें धर्मचक्र सुशोभित है। दूसरी प्रतिमा भगवान् शान्तिनाथकी है जिसके ऊपरी भागमें चौबीस तीर्थंकरोंकी भी प्रतिमा उत्कीर्ण हैं। इसकी रचना बायीं ओरकी दीवार-वेदीमें विराजमान शान्तिनाथ-प्रतिमाके समान है। ऐसा सुननेमें आया है कि पहले यहाँ आसपासमें बहुत-सी जैन प्रतिमाएँ पड़ी हुई थीं। सम्भवतः ये यहाँ बने हुए किसी प्राचीन जैन मन्दिर की थीं। बादमें इन चार प्रतिमाओंको उठाकर यहाँ विराजमान कर दिया गया। शेष प्रतिमाओंके विषयमें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती। इन प्रतिमाओंकी रचना-शैलीको देखकर इन्हें पूर्व गुप्त-कालकी माना जाता है। मन्दिरके चौकमें एक दीवार-वेदीमें आचार्य शान्तिसागरजी महाराजकी एक पाषाण-मूर्ति की स्थापना हुई है। __ चार मन्दिर ऊपर हैं। ऊपर जानेपर जीनेके बायीं ओर एक कमरे में तीन वेदियाँ बनी हुई हैं। मध्यकी वेदीपर भगवान् महावीरकी श्वेत पाषाणको दो फुट अवगाहनावाली पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके अतिरिक्त दो और भी पाषाण-प्रतिमाएँ हैं और एक धातु-प्रतिमा भी है। बायीं ओरकी वेदीमें भगवान् महावीरकी श्वेत पाषाण-प्रतिमा अवस्थित है। इसी प्रकार दायीं ओरको वेदीमें भी महावीर स्वामीकी प्रतिमा है। दोनों पद्मासन हैं तथा दोनोंकी अवगाहना एक-एक फुटकी है। ये सभी प्रतिमाएँ संवत् १९५० में प्रतिष्ठित हुई थीं। इस मन्दिरसे आगे बढ़नेपर, मन्दिरके मुख्य द्वारके ऊपर तीन मन्दिर बने हुए हैं। प्रथम मन्दिरमें भगवान् महावीरकी श्वेत पाषाणकी दो फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इसके अतिरिक्त दो पाषाणकी तथा छह धातुकी प्रतिमाएँ हैं। मूलनायकका प्रतिष्ठा-काल वि. संवत् १९९१ है। मध्यके मन्दिरमें पाँच वेदियाँ बनी हुई हैं-दो दीवारमें तथा तीन जमीनपर दीवारके सहारे । बायों ओर दीवार-वेदीमें ३ पाषाणकी, ४ धातुकी और १ चाँदीकी मूर्ति हैं। इससे आगे दीवारके सहारे जमीनपर बनी प्रथम वेदीमें २४ चरण-चिह्न विराजमान हैं। मध्यकी वेदीपर मध्यमें भगवान् महावीरकी मूंगा वर्णकी पद्मासन और सवा फुट अवगाहनावाली प्रतिमा है। बायीं ओर चन्द्रप्रभकी श्वेत और दायीं ओर महावीर स्वामीकी मूंगा वर्णकी प्रतिमा है। इनका प्रतिष्ठा काल भी वि. सं. १९९१ है। तीसरी वेदीमें भगवान्के चरण-चिह्न हैं। दायीं ओरकी दीवार-वेदीमें ४ पाषाणकी तथा ५ धातुकी प्रतिमाएं हैं। तीसरे मन्दिरमें एक वेदी बनी हुई है। मूलनायक भगवान् महावीरकी डेढ़ फुट ऊँची श्वेत पद्मासन प्रतिमा है । इसके अतिरिक्त ५ श्वेत पाषाणकी और ३ धातुकी प्रतिमाएँ हैं । धर्मशालाएं यहाँ दिगम्बर जैनोंकी बनवायी गई दो धर्मशालाएँ हैं। दोनों ही दो-मंजिली हैं। पहली धर्मशाला, जिसमें दिगम्बर जैन कार्यालय है, उसमें ८२ कमरे हैं तथा दूसरी धर्मशाला, जो मन्दिरके पीछे है, उसमें ३३ कमरे हैं । इनमें नल, कुआँ, बिजली आदि सभी प्रकारकी सुविधाएँ हैं।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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