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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
११५ जल-मन्दिरके निकट ही 'पावापुरी सिद्धक्षेत्र दिगम्बर जैन कार्यालय' है। यहाँपर सात दिगम्बर जैन मन्दिरोंका समूह है । इसमें बड़ा मन्दिर सेठ मोतीचन्द खेमचन्दजी शोलापुरवालोंकी ओरसे निर्मित हुआ और उसकी प्रतिष्ठा वि. सं. १९५० में हुई। इसमें भगवान् महावीरकी मूलनायक प्रतिमा है जो श्वेत वर्णकी साढ़े तीन फुट अवगाहनाकी है।
इस मन्दिरके अतिरिक्त शेष ६ मन्दिरोंमें-से दो मन्दिरोंका निर्माण सेठ मोतीचन्द खेमचन्दजी शोलापुरने तथा चारका निर्माण (१) श्रीमती जगपत बीबी धर्मपत्नी स्व. लाला हरप्रसादजी आरा (२) बा हरप्रसादजी (३) लाला जम्बूप्रसाद प्रद्युम्नकुमारजी सहारनपुर तथा (४) श्रीमती अनूपमाला देवी मातेश्वरी बा. निर्मलकुमार चन्द्रशेखर कुमारजी आरावालोंने कराया। बड़े मन्दिरकी मूलनायक प्रतिमाके पीठपर निम्नलिखित लेख अंकित है
“ॐ नमः सिद्धेभ्यः । श्री संवत् १९५० फाल्गुन सुदो ७ बुधवारे श्री मूलसंघ सरस्वती गच्छ तदाम्नाय कून्दकून्दाचार्य भट्रारक सकलकोत उपदेशात् कनककीति तदाम्नाय श्री भट्रारक राजेन्द्रभूषण देवास्तत्पट्टे शैलेन्द्रभूषणजी तत्पट्टे भट्टारक सत्येन्द्रभूषण प्रतिष्ठा कारापिता श्री रामचन्द्र शीकला भार्या तत्पुत्र गुलाबचन्द्र भार्या मैनाबाई तत्पुत्र मोतीचन्द्र भार्या माणिकचन्द्र तत्भ्रातलघु फूलचन्द्र पावापुरीजीमें पंच सहायतासे श्री वर्धमान स्वामी प्रतिष्ठा कारापितं ।"
मुख्य वेदीमें २ पाषाण की तथा ८ धातु की प्रतिमाएँ हैं। .
दूसरी वेदी भगवान् शान्तिनाथकी है। प्रतिमाका वर्ण श्याम, अवगाहना ढाई फुट, पद्मासन । मध्यमें हिरणका लांछन है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९५० में की गयी। इस वेदीमें २ पाषाणकी तथा ५ धातुकी प्रतिमाएँ हैं । धातुकी एक प्रतिमा तीन चौबीसी की है।
बायीं ओर एक आलेमें प्राचीन चरण विराजमान हैं।
तीसरी वेदीमें मूलनायक भगवान् महावीरकी ७ फुट अवगाहनावाली खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। इसका वर्ण मूंगे-जैसा है। यह प्रतिमा वीर संवत् २४६५ में प्रतिष्ठित हुई। प्रतिमाके पाद-पीठपर सिंह लांछन है।
इस गर्भग्रहके बायीं ओर भगवान पार्श्वनाथकी वेदी है। इसमें मलनायक भगवान पार्श्वनाथ पद्मासनमें विराजमान हैं । वर्ण मूगेका है। प्रतिष्ठा संवत् वि. सं. १९५० है।
इनके अलावा ४ श्वेत पाषाण, १ कृष्ण वर्ण पार्श्वनाथ और १ धातु प्रतिमा विराजमान है।
इस गर्भगृहमें बायीं ओर एक दीवार-वेदोमें एक शिलाफलकमें चौबीस तीर्थंकर प्रतिमाएँ बनी हुई हैं । मध्यमें भगवान् शान्तिनाथ विराजमान हैं। शान्तिनाथ भगवान्के सिरके ऊपर छत्र सुशोभित है। छत्रके दोनों ओर दो गज सूंड उठाये हुए अंकित हैं। उनके मध्यमें यक्ष अथवा देव हाथ जोड़े हुए बैठा है। चौबीस तीर्थंकरोंमें दो खड्गासन तथा शेष पद्मासनमें विराजमान हैं। शान्तिनाथके चरणतले उनके चिह्नस्वरूप दो हिरण बने हुए हैं। प्रतिमापर लेख नहीं है।
इसी दीवार-वेदीमें एक अन्य शिलाफलकमें पार्श्वनाथ पद्मासनमें विराजमान हैं। प्रतिमाके ऊपर सर्प-फण है। प्रतिमाके दोनों ओर चमरवाहक खड़े हुए हैं। प्रतिमाके फणके दोनों ओर आकाशचारी देव हाथोंमें पुष्पमाल लिये दिखाई देते हैं। उनके ऊपर एक ओर देव-दुन्दुभि तथा दूसरी ओर झाँझ बने हुए हैं।
इसी गर्भगृहमें दायीं ओर दीवार-वेदीमें दो प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। ये प्रतिमाएँ भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् शान्तिनाथकी हैं। पार्श्वनाथके सिरपर सर्प-फण और उसके ऊपर छत्र सुशोभित हैं । मूर्ति पद्मासन एवं ध्यानस्थ मुद्रामें है। उनके दोनों ओर चमरवाहक हैं । उनसे