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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ शुक्लध्यानको धारण कर चारों अघातिया कर्मोका क्षय कर देंगे और शरीर रहित केवल गुणरूप होकर एक हजार मुनियोंके साथ सबके द्वारा वांछनीय मोक्षपदको प्राप्त करेंगे। असग कवि द्वारा विरचित 'महावीर-चरित्र' में भगवान्के निर्वाण-समयका जो वर्णन दिया गया है, उसका आशय यह है "भगवान् विहार करके पावापुरके फूले हुए वृक्षोंकी शोभासे सम्पन्न उपवनमें पधारे। जिनका समवसरण विसजित हो गया है, ऐसे भगवान योग-निरोध कर मक्त हए।" प्रतिक्रमण-पाठमें पावाके साथ मध्यमा भी दिया गया है तथा हस्तिपाल राजाका भी नामोल्लेख किया गया है। मूलपाठ इस प्रकार है 'ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्लोके सिद्धायतनानि नमस्करोमि, सिद्धनिषिद्धिका अष्टापदपर्वते, सम्मेदे ऊर्जयन्ते चम्पायां पावायां मध्यमायां हस्तिवालिका मण्डपे (नमस्यामि)' श्वेताम्बर आगम और महावीर-निर्वाण श्वेताम्बर आगमोंमें भी महावीर-निर्वाणके सम्बन्धमें दिगम्बर परम्पराकी मान्यताका ही प्रायः समर्थन मिलता है । जो अन्तर है, वह अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है। दिगम्बर परम्परानुसार भगवानका निर्वाण कार्तिक कृष्ण चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तिम प्रहरमें हुआ और अमावस्याको उनके मुख्य गणधरको केवलज्ञान हुआ। श्वेताम्बर परम्परामें भगवान्का निर्वाण और गौतम गणधरको केवलज्ञान दोनों घटनाएँ अमावस्याको हुईं। 'कल्पसूत्र' में महावीरके निर्वाणका विस्तृत वर्णन मिलता है। उससे पावापुरके सम्बन्धमें भी विशेष जानकारी प्राप्त होती है। वह उद्धरण यहाँ दिया जा रहा है_ "तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्स रन्नो रज्जुगसभाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए तस्स णं अंतरावासस्स जे से वासाणं च उत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तियबहले तस्स णं कत्तियबहुलस्स पन्नरसीपक्खेणं जा सा चरिमारयणि तं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए विइक्कंते समुज्जाए छिन्नजाइजरामरणबंधणे सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्व दुक्ख पहीणे चंदे नाम से दोच्चे संवच्छरे पीतिवद्धणे पक्खे सुव्वयग्गी नाम से दिवसे उवसमि त्ति पवुच्चइ देवाणंदा नामं सा रयणी निरइ ति पवुच्चइ अच्चे लवे मुहुत्ते पाणू थोवे सिद्धे नागे करणे सव्वट्ठासिद्धे मुहुत्ते साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं कालगए विइक्कंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥१२३॥ अर्थ-भगवान् अन्तिम वर्षावास करनेके लिए मध्यम पावा नगरीके राजा हस्तिपालकी रज्जुक सभामें रहे हुए थे। चातुर्मासका चतुर्थ मास और वर्षा ऋतुका सातवाँ पक्ष चल रहा था अर्थात् कार्तिक कृष्णा अमावस्या आयी। अन्तिम रात्रिका समय था । उस रात्रिको श्रमण भगवान् महावीर कालधर्मको प्राप्त हुए। संसारको त्याग कर चले गये । जन्म-ग्रहणकी परम्पराका उच्छेद और मरणके सभी बन्धन नष्ट हो गये। भगवान् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गये, सब दुखोंका अन्त कर परिनिर्वाणको प्राप्त हुए। महावीर जिस समय काल धर्मको प्राप्त हुए, उस समय चन्द्र नामक द्वितीय संवत्सर चल रहा था। प्रीतिवर्धन मास, नन्दिवर्धन पक्ष, अग्निवेश दिवस (जिसका दूसरा नाम 'उवसम' भी १. श्री अमर जैन आगम शोध संस्थान सिवाना (राज.) से प्रकाशित, पृ. १९९ ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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