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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ योग निरोध कर घातियाकर्मरूपी ईंधनके समान अघातियाकर्मोको भी नष्ट कर बन्धन रहित हो संसारके प्राणियोंको सुख उपजाते हुए निरन्तराय तथा विशाल सुखसे सहित निर्बन्ध-मोक्ष-स्थानको प्राप्त हुए । गर्भादि पाँच कल्याणकोंके महान् अधिपति, सिद्धशासन भगवान् महावीरके निर्वाणमहोत्सवके समय चारों निकायके देवोंने विधिपूर्वक उनके शरीरकी पूजा की। उस समय सुर और असुरोंके द्वारा जलायी हुई देदीप्यमान दीपकोंकी पंक्तिसे पावानगरीका आकाश सब ओरसे जगमगा उठा । उस समयसे लेकर भगवान्के निर्वाण कल्याणकी भक्तिसे युक्त संसारके प्राणी इस भरतक्षेत्रमें प्रतिवर्ष आदरपूर्वक प्रसिद्ध दीपमालिकाके द्वारा भगवान् महावीरकी पूजा करनेके लिए उद्यत रहने लगे अर्थात् उन्हींको स्मृतिमें दीपावलीका उत्सव मनाने लगे।
आचार्य वीरसेन विरचित 'जयधवला' टीकामें भगवान् महावीरके निर्वाणके प्रसंगमें निर्वाण-स्थानके साथ उनकी मुनि-अवस्थाकी काल-गणना भी दी है
'वासा णूणत्तीसं पंच य मासे य वीस दिवसे य। चउविह अणगारेहि य बारह दिणेहि ( गणेहि ) विहरित्ता ॥३०॥ पच्छा पावाणयरे कत्तियमासस्स किण्ह चोद्दसिए । सादीये रत्तीये सेसरयं छेत्तु णिव्वाओ ॥३१।।
-जयधवला, भाग १, पृ० ८१ अर्थात् २२ वर्ष ५ मास और २० दिन तक ऋषि, मुनि, यति और अनगार इन चार प्रकारके मुनियों और १२ गणों अर्थात् सभाओं के साथ विहार करके पश्चात् भगवान् महावीरने पावानगरमें कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के दिन स्वाति नक्षत्रके रहते हुए रात्रिके समय शेष अघातिकर्मरूपी रजको छेदकर निर्वाण प्राप्त किया।
आचार्य गुणभद्रकृत 'उत्तरपुराण में महावीर-निर्वाणके सन्दर्भको प्रायः अन्य आचार्योंके समान ही निबद्ध किया है, किन्तु इसमें अन्योंसे साधारण अन्तर है। अन्य आचार्योंके अनुसार भगवान् महावीर एकाकी मुक्त हुए थे किन्तु उत्तर पुराणकारके अनुसार भगवान्के साथ एक हजार मुनि मुक्त हुए थे। वह इस प्रकार है
"इहान्त्यतीर्थनाथोऽपि विहृत्य विषयान् बहून् ॥७६।५०८।। क्रमात्पावापुरं प्राप्य मनोहरवनान्तरे । बहूनां सरसां मध्ये महामणिशिलातले ॥७६।५०९।। स्थित्वा दिनद्वयं वीतविहारो वद्धनिर्जरः। कृष्णकार्तिकपक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये ॥७६।५१०॥ स्वातियोगे तृतीयेद्धशुक्लध्यानपरायणः । कृतत्रियोगसंरोधः समुच्छिन्नक्रियं श्रितः ॥७६।५११॥ हताघातिचतुष्कः सन्नशरीरो गुणात्मकः ।
गन्ता मुनिसहस्रेण निर्वाणं सर्ववाञ्छितम् ॥७६।५१२।। अर्थ-इन्द्रभूति गणधर राजा श्रेणिकको भविष्यके सम्बन्धमें बताते हुए कहते हैं किभगवान् महावीर भी बहुतसे देशोंमें विहार करेंगे। अन्तमें वे पावापुर नगरमें पहुँचेंगे। वहाँके मनोहर नामक वनके भीतर अनेक सरोवरोंके बीचमें मणिमयी शिलापर विराजमान होंगे। विहार छोड़कर निर्जराको बढ़ाते हुए वे दो दिन तक वहाँ विराजमान रहेंगे और फिर कार्तिक कृष्ण चतुर्दशीके दिन रात्रिके अन्तिम समय स्वाति नक्षत्रमें अतिशय देदीप्यमान तोसरे शुक्लध्यानमें तत्पर होंगे। तदनन्तर तीनों योगोंका निरोधकर समुच्छिन्न क्रिया प्रतिपाती नामक चतुर्थ