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________________ बिहार - बंगाल - उड़ीसा के दिगम्बर जैन तीर्थं १०५ जाने लिए एक पगडण्डी है जिसका नाम बिम्बसार मार्ग है । यह दस कदम चौड़ा है। कहते हैं, जब बिम्बसार प्रथम बार गृध्रकूट पर्वतपर महात्मा बुद्धके दर्शन करनेके लिए गया था, तब उसने इसे बनवाया था । यहाँ कई प्राचीन स्तूपोंके अवशेष भी मिलते हैं । इस क्षेत्रपर बर्मा और जापान के दो बौद्ध मन्दिर बने हुए हैं जहाँ विदेशी बौद्ध दर्शनार्थ पहुँचते हैं । यह क्षेत्र हिन्दुओंके लिए भी बड़ा पवित्र माना गया है। ब्रह्मकुण्ड ( सरस्वती नदी ) के पासवाला क्षेत्र मार्कण्डेय-क्षेत्र कहलाता है । ब्रह्मकुण्डके पास हंसतीर्थं है । यहाँ कई देवताओंकी मूर्तियाँ हैं । एक दूसरा पंच-नद तीर्थं है । इसमें पाँच गर्म जलके कुण्ड हैं। इसके अतिरिक्त कई aus हैं जिनके नाम ऋषियोंके नामोंपर रखे गये हैं । मार्कण्डेय कुण्डके दक्षिण में कामाक्षी मन्दिर और ब्रह्मकुण्डके दक्षिणमें शिव मन्दिर है । सप्तर्षि-धाराके उत्तर तटपर एक शिव मन्दिर है । ब्रह्मकुण्डके पश्चिममें दत्तात्रेय मण्डप है । इनके अतिरिक्त सन्ध्यादेवीका मन्दिर, सोमनाथ मन्दिर, धर्मेश्वर नाटकेश्वर, महादेव मन्दिर, जरादेवीका मन्दिर आदि कई मन्दिर हैं । वैतरणी नदीके दक्षिणी तटपर पितरोंको पिण्डदान भी दिया जाता है । मुसलमान लोग भी इसको अपना तीर्थं मानते हैं । बिहार के प्रसिद्ध मुसलिम सन्त शेख मखदूम शरीफुद्दीन अहमदने यहाँ बारह वर्ष तक साधना की थी तथा ४० दिन निराहार रहकर तपस्या की थी। इस सन्तके नामपर मुसलमानोंने शृंगी ऋषि कुण्डका नाम मखदूम कुण्ड रख लिया है । इस कुण्डके पास एक शिला पड़ी हुई है, जिसपर रक्त के दाग हैं | ह्वेन्त्सांगने भी इस शिलाके सम्बन्धमें अपने धिस्थ साधुने अपने आपको घायल कर लिया था । मुसलिम सन्त मखदूम साधनाके लिए इस गुफा में रहा यात्रा - विवरणमें लिखा है कि यहाँ एक समाइसके कुछ ऊपर एक गुफा है। कहते हैं, करते थे। यहाँ यह उल्लेख करना असंगत न होगा कि हिन्दू और मुसलमानोंके तीर्थं पर्वत के नीचे हैं, ऊपर नहीं । इन पाँच पर्वतोंमें केवल पाँचवें पर्वतकी सप्तपर्णी गुफाको ही बौद्ध अपना मानते हैं, जिसपर जैनों का भी अधिकार है । इस प्रकार ये पाँचों पर्वत केवल जैनोंके ही निर्विवाद तीर्थ हैं । दर्शनीय स्थल यहाँके दर्शनीय स्थलोंमें जरासन्ध और अजातशत्रु द्वारा बनाये गये किलेकी दीवाले, पिप्पल गृह, बिम्बसार पथ, रणभूमि, बिम्बसार जेल, खून के धब्बोंवाला मन्दिर, देवदत्तकी समाधि स्थल आदि प्रमुख स्थान हैं । यहाँपर सबसे अधिक उल्लेखनीय गर्म जलके कुण्ड हैं । कहते हैं इनमें स्नान करने से त्वचा सम्बन्धी सम्पूर्ण रोग नष्ट हो जाते हैं । ये झरने ( कुण्ड ) सरस्वती नदीके दोनों किनारोंपर हैं । सात वैभार पर्वत की तलहटी में हैं और छह विपुलाचलके नीचे । वैभारगिरिके तलहटीके झरनोंके वर्तमान नाम गंगा-जमुना, अनन्त ऋषि, सप्त ऋषि, व्यास कुण्ड, मार्कण्डेय कुण्ड, ब्रह्म कुण्ड और काश्यप कुण्ड हैं । विपुलगिरिके नीचेवाले झरनोंके कुण्डोंके नाम ये हैं-सीता कुण्ड, सूर्य कुण्ड, गणेश कुण्ड, चन्द्र कुण्ड, रामकुण्ड और श्रृंगी ऋषि कुण्ड । सम्भवतः इन झरनोंका सम्बन्ध ऐसे स्थानोंसे है जहाँ गन्धक है । अतः इन झरनोंके पानीमें लोहा, गन्धक और रेडियम है । लोग यहाँ स्नान करके गठिया आदि रोगोंसे मुक्ति पा जाते हैं । झरनोंमें सर्वाधिक लोकप्रिय सप्तधारा और ब्रह्मकुण्डके झरने हैं । मलमास ( लोंद मास ) में इन कुण्डों पर एक मेला भी लगता है । भाग २ - १४
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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