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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सिंह लांछन है। सिंहासनसे नीचे एक स्त्री लेटो हुई है। अलंकार धारण किये हुए हैं। एक हाथ सिरके नीचे टिकाया हुआ है। पैरोंमें पायल हैं। कटिमें मेखला, गलेमें हार, भुजाओंमें बाजूबन्द, सिरपर जूड़ा है। सिरके नीचे तकिया लगा हुआ है। १८. पद्मप्रभुको पद्मासन मूर्ति । एक गजकी अवगाहना, सलेटी वर्ण। इधर-उधर तीनतीन पद्मासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। सिरपर छत्र सुशोभित है। इधर-उधर पुष्पमाल लिये आकाशचारी देवियाँ हैं। मध्य भागमें चमरवाहक खड़े हैं । पादपीठपर कमलका चिह्न अंकित हैं । कोनोंपर सिंह बने हुए हैं। उपर्युक्त मूर्तियोंमें-से नं. १६ की मूर्तिका लेख इस प्रकार पढ़ा गया है "आचार्य वसन्तनन्दिर-दे धर्मो-यः।" अर्थात् आचार्य वसन्त नन्दिन्का धर्मार्थ दान । सप्तपर्णी गुफा दिगम्बर मन्दिरके आगे श्वेताम्बरोंके दो मन्दिर और हैं। उनसे आगे जानेपर सप्तपर्णी गुफा है । यह गुफा पहाड़में अकृत्रिम बनी हुई है। जैन साहित्यमें इस गुफाका एहिनिया चोरकी गुफाके नामसे उल्लेख मिलता है । यह छह गुफाओंका समूह है। कहते हैं, बुद्धके परिनिर्वाणके बाद प्रथम बौद्ध संगीति यहीं हई थी। जरासन्ध की वैठक ___ पहाड़की पूर्वी ढलानपर पहाड़से लौटते हुए प्रथम श्वेताम्बर मन्दिरसे आगे एक गुफा है, जिसे मचान या जरासन्ध की बैठक कहा जाता है। यह २२ से २८ फुट तक ऊँची है । तथा ऊपर छतपर इसकी लम्बाई, चौड़ाई ८१।। ४ ७८ फुट है। इस चबूतरेको चिनाईमें किसी प्रकारका मसाला काममें नहीं लिया गया है। यह वस्तुतः निरीक्षण-गृह था। इसे बौद्ध लोग 'पिप्पल गुहा' कहते हैं। इसमें प्रथम बौद्ध संगीतिके अध्यक्ष भिक्ष महाकाश्यप भी कुछ दिन रहे थे। प्राचीन महावीर-चरण पर्वतसे उतरनेपर गरम जलके कुण्ड मिलते हैं। वहाँसे कुछ दूर चलकर जापानी मन्दिरके सामने सड़क किनारे बायीं ओर भगवान महावीरके प्राचीन चरण मिलते हैं। इनकी स्थापना फिरोजपुरवासी लाला डालचन्द्र तुलसीरामने वी. सं. २४५७ में करायी थी। चरणोंका माप १६ अंगुल है। - यहाँसे धर्मशाला एक मील है। मार्गमें राजा श्रेणिक द्वारा निर्मित कोट भी मिलता है। कहीं-कहीं इसमें बुर्ज भी हैं । इसी कोटके भीतर उस समय राजगृह नगर बसा हुआ था। इस प्रकार यह स्थान जैनों का सदासे एक पवित्र तीर्थ रहा है। प्रत्येक पर्वतपर जो जैन मन्दिर आदि बने हुए हैं उनमें कई मूर्तियाँ तो ईसाकी प्रारम्भिक शताब्दियोंकी हैं। सातवीं शताब्दीमें चीनके इतिहास-प्रसिद्ध यात्री ह्वेन्त्सांगने वैभारगिरिपर अनेक निगंठों (जैन मुनियों) को तपस्या करते हुए देखा था। सर्वमान्य तीर्थ ___ यह बौद्धोंका तीर्थधाम है। महात्मा बुद्ध यहाँ गृध्रकूट पर्वतपर कई बार पधारे और उनकी देशना हुई थी। द्वेन्त्सांगके वर्णनमें जिस वेणुवन और करण्ड सरोवरका उल्लेख आता है, सम्भवतः वे गर्म जल कुण्डोंसे बने हुए आधुनिक कब्रिस्तान और तालाब हैं। गृध्रकूट पर्वतपर
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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