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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ १०३ है । उसके बीचमें नेमिनाथ विराजमान हैं । चरणोंके नीचे पांच भक्त लेटे हुए हैं । एक हाथ जमीनपर टिका है, दूसरा हाथ छातीपर रखा हुआ है । अहंन्त प्रतिमाका मुख खण्डित है। इससे आगे बायीं ओरसे क्रमशः मतियोंका परिचय इस प्रकार है ९. खण्डित पद्मासन प्रतिमा भगवान् आदिनाथकी है। पादपीठपर दोनों कोनोंपर वृषभ बने हुए हैं । मध्यमें एक पद्मासन प्रतिमा है । बायीं ओर एक भक्त हाथ जोड़े बैठा है। प्रतिमाके एक ओर चमरवाहक खड़ा है जो छातीसे खण्डित है। प्रतिमा पेटके ऊपरसे खण्डित है। इसपर निम्न प्रकार लेख पढ़ा गया है-'देव (य) धर्मो-यं थीरोक (?) स्य अर्थात् थीरोकका दान। १०. ढाई फुटके शिलापट्टमें पद्मासन प्रतिमा उत्कीर्ण है। प्रतिमा भगवान् महावीरकी है। पादपीठपर सिंह लांछन अंकित है। एक ओर हाथ जोड़े हुए भक्त बैठा है, दूसरी ओर दो स्त्रियाँ हाथ जोड़े हुए बैठी हैं । प्रतिमाके दोनों ओर दो चमरवाहक खड़े हैं । सिरके दोनों ओर दो गजारूढ़ देव हैं, ऊपर छत्रत्रयी है। ११. लगभग साढ़े तीन फुटके शिलाफलकमें पद्मासन प्रतिमा है किन्तु यह खण्डित है। पीठासनपर मध्यमें धर्मचक्र, उसके दोनों ओर शंख और कोनोंपर सिंह हैं । इनके नीचेके भागमें दो पद्मासन मूर्तियाँ हैं । मूर्तिके एक ओर पाँच भक्त एक दूसरेके ऊपर खड़े हैं। दूसरी ओर केवल दो शेष रह गये हैं। सिरपर सुन्दर छत्रत्रयी और दोनों ओर आकाशचारी गन्धर्व हैं। १२. दस इंची पाषाण-फलकमें पंच बालयति कायोत्सर्ग मुद्रामें विराजमान हैं। ऊपर छत्र है । मुख खण्डित हैं । दो मूर्तियोंके पैर भी खण्डित हैं। छत्र भी बिलकुल अस्पष्ट हैं । १३. ढाई फुटके शिलाफलकमें लाल पाषाणकी पद्मासन मूर्ति है। सिरपर सर्पफण और छत्रत्रयी है। दोनों ओर चौरीवाहक हैं। चौरीवाहकोंके ऊपर चार-चार मूर्तियाँ हैं। ऊपर आकाशचारी गन्धर्व हैं। १४. पार्श्वनाथ प्रतिमा। अवगाहना ढाई फुट, वर्ण श्याम, पद्मासन । सिरके ऊपर सर्पफण, उसके ऊपर छत्रत्रय। दोनों ओर मध्य भागमें चमरवाहक। पादपीठपर मध्य में सिंह। कोनोंमें दोनों ओर धरणीन्द्र यक्ष और पद्मावती यक्षी। १५. एक पद्मासन प्रतिमा। अवगाहना सवा दो फूट, श्याम वर्ण। सिर पर छत्रत्रयी, उसके दोनों ओर गजारूढ़ देव । हाथोंमें दुन्दुभि । मध्य भागमें चमरवाहक। पादपीठपर सिंह लांछन । उसके दोनों ओर हाथ जोड़े हुए एक-एक भक्त। ____१६. सब कोठरियोंके मध्यमें यह मुख्य गर्भगृह बना हुआ है। शिलाफलक तीन फुट है । भगवान् आदिनाथकी पद्मासन मूर्ति । सिरपर भव्य जटाजूट। केश-राशि कन्धों तक लहरा रही है। सिरपर छत्रत्रयी है। इधर-उधर एक-एक देव और देवी पष्पमाल लिये हुए हैं। धोत साड़ीकी चुन्नटें कलापूर्ण हैं। ये भुजबन्ध और गलहार धारण किये हुए हैं। छत्रत्रयीके इधर-उधर एक-एक हाथ निकला हुआ है । प्रतिमाके सिरके पीछे भामण्डल है। पादपीठपर बीचमें धर्मचक्र और उसके दोनों ओर दो वृषभ लांछन है। चमरवाहक कर्णकुण्डल, केयूर, भुजबन्ध और हार धारण किये हुए हैं। मूर्तिपर लेख अंकित है। . १७. चार फुटके एक शिलाफलकमें भगवान् महावीर पद्मासनमें कमलासनपर विराजमान हैं। वर्ण सलेटी है। सिरके पीछे अलंकृत भामण्डल, सिरके ऊपर छत्रत्रय, इधर-उधर पुष्पमाल लिये हुए आकाशचारी देव । एक हाथमें दुन्दुभि, एक हाथमें झाँझ, ऊपर शीर्ष भागमें दोनों कोनोंपर अंकित हैं । प्रतिमाके दोनों ओर चमरवाहक खड़े हैं । पादपीठपर धर्मचक्र है। उसके दोनों ओर
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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