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________________ बिहार-बंगाल - उड़ीसा के दिगम्बर जैन तीर्थं १०१ सभी प्रतिमाएँ कायोत्सर्ग मुद्रामें थीं । किन्तु सन् १९७३ की इस यात्रामें वह सर्वतोभद्रका प्रतिमा मुझे नहीं मिली । ज्ञात हुआ, वह चोरी चली गयी। वह प्रतिमा लगभग तीसरी शताब्दीकी थी । इस गुफा सम्बन्ध में एक किंवदन्ती यह भी प्रचलित है कि इसी गुफा में राजा श्रेणिकका स्वर्णको छिपा हुआ है । इसीलिए इस गुफाका नाम सोनभण्डार (स्वर्ण भण्डार) चला आता है । सम्भवतः इस कोष के लिए पुरातत्त्व विभाग की ओरसे पिछली दीवाल में बने हुए दरवाजेको खोदनेका प्रयत्न हुआ था। हथौड़ोंकी चोटोंसे भी दरवाजा नहीं टूट पाया और छत टूटने की आशंका पैदा हो गयी । तब यह काम छोड़ देना पड़ा । दूसरी पूर्वी गुफा पहली गुफासे जरा नीचाईपर है । सम्भवतः गुफाके आगे बरामदा और दूसरी मंजिल भी थी जिनके चिह्न अबतक बाकी । इसकी छत गिर चुकी है । द्वार में घुसते ही दायीं ओर दीवालमें २ खड्गासन और १३ पद्मासन प्रतिमाएँ बनी हुई हैं । ये प्रतिमाएँ पाँच कोष्ठकों में हैं । बायीं ओरसे इनका विवरण इस प्रकार है १. खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा कमलासनपर आसीन है । दोनों बाजुओंमें चरणों के पास पद्मासन मूर्तियाँ हैं । खड्गासन मूर्तिकी अवगाहना २१ इंच है । मुख खण्डित है । इधर-उधर चमरवाहक हैं । मूर्तिके शिरोभाग में दोनों ओर दो आकाशचारी किन्नर हाथ जोड़े हुए हैं । २. क्रमांक एकके समान । अन्तर इतना है कि इसमें किन्नर पुष्पमाल लिये हुए हैं। ३. पद्मासन मूर्ति है । चरण चौकीपर मध्य में धर्मंचक है । उसके दोनों ओर हाथी हैं । दोनों कोनोंपर पद्मासन प्रतिमा हैं । बायीं ओर चमरवाहक है किन्तु वह खण्डित है । दूसरी ओर का मरवाहक तोड़ दिया गया है । छातीसे ऊपर मूर्तिका भाग तथा छत्र आदि खण्डित हैं । ४. क्रमांक तीन जैसा ही । केवल हाथी के स्थानपर सिंह है । मूर्तियोंके मुख खण्डित हैं । ५. इस कोष्ठक में धर्मचक्र है । इधर-उधर सम्भवतः सिंह थे जो खण्डित हैं । चमरवाहकों और मूर्तिका मुख खण्डित है । ari ओर की दीवाल में एक पद्मासन प्रतिमा है जो खण्डित है । चरणोंके नीचे धर्मचक्र, उसके इधर-उधर सिंह हैं। उनके दोनों ओर पद्मासन मूर्तियाँ हैं । एक ओर चमरवाहक खण्डित है । शेष सारा भाग खण्डित है । - ये गुफाएँ ईसाकी तीसरी शताब्दीकी बनी हुई हैं । जैन मुनि इनका उपयोग तपस्या के लिए करते थे, ऐसा पुरातत्त्व वेत्ताओं का मत है । यहाँ से लगभग डेढ़ मील पश्चिमको ओर जरासन्धका अखाड़ा है । गुफासे कुछ आगे बढ़नेपर सोन मन्दिर के अवशेष मिलते हैं । इसमें सर्पफगमण्डित एक मूर्ति निकली थी जो बलरामकी कही जाती है क्योंकि बलराम शेषनागके अवतार माने जाते हैं । वैभारगिरि सो मन्दिरसे कुछ आगे बढ़नेपर वैभार पर्वतकी चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है । शासनकी ओरसे इस पर्वत के लिए सीढ़ियाँ निर्मित हुई हैं। सीढ़ियोंकी संख्या ५६५ है । शेष पर्वतों की सीढ़ियाँ जैन समाज ने बनवायी हैं । पर्वतपर पहले श्वेताम्बर मन्दिर आता है । इसमें पार्श्वनाथकी मूर्ति विराजमान है । मूर्ति श्वेत पाषाणकी पद्मासन है। दायीं और बायीं ओर क्रमश: नेमिनाथ और शान्तिनाथके चरण हैं । बायीं ओर कुछ दूरपर शालिभद्रका मन्दिर है ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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