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________________ १०० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ रखा था। यहाँकी खुदाईमें पत्थरकी कोठरियाँ भी निकली थीं। एक कोठरीमें लोहेकी जंजीर मिली थी, जिसके एक सिरेपर कुण्डा लगा हुआ था। यह शायद हथकड़ीका काम देता था। श्रमणगिरि धर्मशालासे यह पर्वत ३ मील है। इस पर्वतपर १०६१ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। चढ़ाई लगभग २ मील है। इस पर्वतपर पास-पास तीन दिगम्बर मन्दिर और १ श्वेताम्बर मन्दिर बना हुआ है। प्रथम दिगम्बर मन्दिरमें भगवान् शान्तिनाथकी श्याम वर्ण पद्मासन दो फुटी प्रतिमा विराजमान है। यह मन्दिर फीरोजपुर निवासी सेठ डालचन्द तुलसीरामने वीर सं. २४५४ में बनवाया था। दायीं ओर भगवान् महावीरके चरण हैं तथा बायीं ओर भगवान् शान्तिनाथके । मन्दिरमें गर्भगृह तथा बाहर मण्डप है। . दूसरे मन्दिरमें एक वेदीमें भगवान् आदिनाथके कृष्ण पाषाणके चरण विराजमान हैं । बायीं ओरकी वेदीमें भगवान् नेमिनाथके तथा दायीं ओरकी वेदीमें भगवान् पार्श्वनाथके चरण बने हुए हैं। तीनों ही कृष्ण वर्णके और वीर संवत् २४९२ के हैं। ___तीसरी टोंकमें भगवान् शान्तिनाथके श्वेत चरण विराजमान हैं। कहते हैं, यह गुमटी ही इस पर्वतपर सबसे प्राचीन है और इसमें भगवान् शान्तिनाथकी प्रतिमा विराजमान थी। इसके आगे एक चबूतरेपर क्षेत्रपाल है।। . श्वेताम्बर मन्दिरमे महावीर स्वामी और आदिनाथके चरण हैं । मूल वेदी खाली है। इस पर्वतको श्रमणगिरि या सोनागिर कहते हैं। सोनभण्डार गुफा इस पर्वतके दक्षिणी ढलानपर दो गुफाएँ हैं-एक पश्चिमकी ओर और दूसरी पूर्वकी ओर । पश्चिमी गुफामें ६ फुटका द्वार है। एक खिड़की है जो सरकारने बनवायी है। इसकी दीवाले ६ फुट ऊंची हैं। छत झुकावदार है। इस गुफाकी दीवालोंपर लेख भी हैं, किन्तु वे प्रायः अस्पष्ट और अपाठ्य हैं। द्वारके बायीं ओरको दीवालपर एक शिलालेखेकी केवल दो पंक्तियाँ पुरातत्त्ववेत्ताओंने पढ़ पायी हैं जो इस प्रकार हैं "निर्वाणलाभाय तपस्वियोग्ये शुभे ग्रहेऽर्हत्प्रतिमाप्रतिष्ठे। आचार्यरत्नं मुनिवरदेवः विमुक्तयेऽकारयदूर्ध्वतेजः ।। अर्थात् अत्यन्त तेजस्वी आचार्य प्रवर वैरदेवने मुक्ति-प्राप्तिके लिए तपस्वियोंके योग्य दो शुभ गुफाओंका निर्माण कराया। यह लेख लिपि-शैलीके आधारपर तीसरी-चौथी शताब्दीका बताया जाता है। सन् १९५८ में अपनी प्रथम शोध-यात्राके प्रसंगमें जब यहाँ आया था उस समय इस गुफामें एक समवसरण-स्तम्भमें चतुर्मुखी प्रतिमाएँ (सर्वतोभद्रिका प्रतिमा) थीं। उनमें प्रत्येकका मुख खण्डित था। किन्तु आसनपीठोंपर वृषभ, गज, अश्व और बन्दरोंके जोड़े और उनके बीच में धर्मचक्र बने हुए थे। इनसे ज्ञात होता था कि ये प्रतिमाएँ क्रमशः तीर्थंकर ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भवनाथ और अभिनन्दननाथकी थीं। इन सभी प्रतिमाओंके दोनों बगल चँवरधारी खड़े थे। 8. Annual Report--Archeological Survey of India, 1905-6, p. 98
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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