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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ संवत् १९३६ में हुई थी। यह बड़ा मन्दिर कहलाता है। इसमें मुनिसुव्रतनाथकी कृष्ण वर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इसकी अवगाहना चार फुट है । बायीं ओर आलेमें पाश्वनाथके चरण स्थापित हैं। मन्दिरमें गर्भगृह और बाहर मण्डप है। मन्दिरके निकट टोंक है जो केवली धनदत्त, समन्दर और मेघरथका निर्वाण-स्थल माना जाता है।
मन्दिरके बाहर दायीं ओर एक गुमटीमें क्षेत्रपाल हैं । बायीं ओर एक कमरा बना हुआ है।
कुछ आगे चलकर एक गुमटीमें भगवान् चन्द्रप्रभके चरण हैं। इसके निकट ही एक मन्दिर श्वेताम्बर सम्प्रदायका है। इस मन्दिरमें चन्द्रप्रभ और शान्तिनाथकी मूर्तियाँ हैं तथा नेमिनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ और वासुपूज्य भगवान्के चरण हैं। इस पर्वतसे उतरनेके लिए १३०० सीढ़ियाँ बनी हुई हैं।
रत्नागिरि पर्वतसे गृध्रकूट पर्वत तकके लिए सरकारने १८ लाख रुपयोंसे एक रज्जुमार्ग बनवाया है । इसपर १६० व्यक्ति एक साथ आकाश-मार्गसे आ-जा सकते हैं।
उदयगिरि
दूसरे पर्वतसे उतरकर लगभग डेढ़ मीलपर गया-पटना रोड मिलता है। फिर लगभग आधा मील चलकर तीसरे पर्वत (उदयगिरि) की चढ़ाई प्रारम्भ होती है। यह चढ़ाई प्रायः एक मीलकी है और इसके लिए ७८६ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। ऊपर एक मन्दिर है जिसमें भगवान् महावीरको एक खड़गासन प्रतिमा है। वर्ण हलका बादामी और अवगाहना छह फूट है। इस मन्दिरका निर्माण कलकत्ता निवासी बाबू दुर्गाप्रसादजी सरावगीने वीर संवत् २४८९ में कराया और मूर्तिकी प्रतिष्ठा करायी।
- इसके निकट ही एक श्वेताम्बर मन्दिर है। वेदी खाली है। बायीं ओर चन्द्रप्रभ और दायीं ओर पार्श्वनाथके चरण हैं। इसके आगे चलकर एक गुमटी है। इसमें भगवान् आदिनाथके चरण हैं।
पहाड़से नीचे उतरनेपर एक जलपान गृह समाजकी ओरसे बना हुआ है।
यहाँ निकट ही एक प्राचीन मन्दिरके भग्नावशेष पड़े हुए हैं। ये अवशेष एक ऊँचे टीलेपर हैं । यहाँ कुछ प्रतिमाएँ निकली थीं जो नीचे लाल मन्दिरमें रख दी गयीं।
- इसके निकट एक और प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर निकला है। कहते हैं, २२ वर्ष पहले शाह राजालाल देहलीवालों को स्वप्न हुआ। उसके अनुसार यहाँ खुदाई करायी गयी। फलतः यह मन्दिर निकला। इसमें श्वेत पाषाणके चरण और एक चौबीसी निकली। ये नीचे मन्दिरमें पहुँचा दी गयीं। अब यहाँ एक चबूतरे पर श्याम पाषाणके चरण विराजमान हैं। इन्हें संवत् २०१३ में विराजमान किया गया है। मन्दिरके ऊपर छत नहीं है। मन्दिरके बाहर डबल कम्पाउण्ड बना हुआ है।
इस.पर्वतसे उतरते हुए बायीं ओर पर्वतके चरणोंको धोती हुई फल्गु नदी बहती है।
पर्वतसे उतरकर जलपान गृह (श्वेताम्बर और दिगम्बर) बने हुए हैं। दिगम्बर जलपान गहमें दिगम्बर जैन कार्यालयकी ओरसे जलपानका प्रबन्ध है। पर्वतसे चढ़ने और उतरनेका मार्ग एक ही है।