SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ १. सवा दो फुट लम्बे एक शिलाफलकमें एक खड्गासन प्रतिमा है तथा ऊपरी भागमें दो पद्मासन प्रतिमाएँ अंकित हैं । लांछन कोई नहीं है, किन्तु ये शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथकी प्रतीत होती हैं। २. एक श्याम शिलापट्टपर भगवान् पार्श्वनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। सर्पकुण्डली पैरोंसे सिर तक बड़े कलात्मक ढंगसे बनी हुई है। सिरपर सर्पफण मण्डप है। फण भी अत्यन्त कलापूर्ण बना हुआ है। ऊपरके भागमें आकाशचारी देवियाँ पुष्प-वर्षा कर रही हैं। नीचेके भागमें दोनों ओर चमरवाहक खड़े हैं तथा दोनों ओर चार-चार पद्मासन जिन-प्रतिमाएं बनी हुई हैं। ३. एक प्रतिमा तीर्थंकरको माताकी है। माता लेटी हुई है। बाल भगवान् उनके पास लेटे हुए हैं। मध्य भागमें एक पद्मासन जिनप्रतिमाका अंकन है। इसके बाद अम्बिकादेवी अपने दोनों बालकोंको लिये बैठी है । सबसे अन्तमें चमरवाहिनी चमर डोल रही है। धर्मशालाका मन्दिर ___इस मन्दिरमें मूलनायक भगवान् महावीरको श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है। इसके अतिरिक्त १० धातु प्रतिमाएँ और दो धातुके मानस्तम्भ हैं। गर्भगृह की बाहरी दीवालके आलेमें बायीं ओर पद्मावतीकी पाषाणकी मूर्ति है। इसके शिरोभागपर पार्श्वनाथ विराजमान हैं। इसके पास ही धातु निर्मित दसभुजी चक्रेश्वरी और पद्मावती विराजमान हैं। दायीं ओरके आलेमें क्षेत्रपाल स्थित हैं। इस मन्दिरका निर्माण गिरीडी निवासी सेठ हजारीमल किशोरीलालने कराया था और प्रतिष्ठा वी. सं. २४५० में हुई। श्वेताम्बर मन्दिर ___ यहाँ एक श्वेताम्बर मन्दिर और धर्मशाला है। सारा मन्दिर मार्बलका बना हुआ है। मन्दिरका द्वार और छत देलवाड़ाके अनुकरणपर अत्यन्त भव्य और कलापूर्ण बनाया गया है। मन्दिरका बाह्य दृश्य भी रुचिकर है। मन्दिरके सामनेके कमरेमें एक संग्रहालय है। इसमें १७ चरण और २० जिनप्रतिमाएँ रखी हुई हैं। ये सब पहाड़के मन्दिरोंसे लायी हुई हैं। इनमें कई तो गुप्तकाल तथा उससे पूर्वकी भी लगती हैं। अशोक वृक्ष और धर्मचक्र भी हैं जो अत्यन्त कलापूर्ण हैं। विपुलाचल ... धर्मशालासे चलकर कुछ दूरपर सरकारी बँगले मिलते हैं जो रेस्ट हाउसकी तरह प्रयुक्त होते हैं । फिर गर्म जलके छह कुण्ड मिलते हैं। यहाँसे कुछ आगे चलनेपर पहाड़की चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है। इस पर्वतपर जानेके लिए १५० सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। आधा मील चलने पर एक दिगम्बर जैन टेकरी मिलती है। जहाँ कमलासनपर भगवान् महावीरके चरण विराजमान हैं। इन चरणोंकी लम्बाई १६ अंगुल है। इस मन्दिरका जीर्णोद्धार सौ. चाँदबाई धर्मपत्नी सेठ कन्हैयालाल पहाड्या कुचामन हाल मद्रासने बी. सं. २४९५ में कराया था। इसके बाद एक मील और चलना पड़ता है। यात्रा सुगम है। पर्वतपर सर्वप्रथम दिगम्बरोंकी टेकरी मिलती है, जिसमें भगवान चन्द्रप्रभके प्राचीन चरण विराजमान हैं। चरण १६ अंगुलके हैं। इस टेकरीका जीर्णोद्धार सेठ कन्हैयालाल पहाड्या कुचामनने वी, सं. २४२७ में कराया। फिर दिगम्बर जैन मन्दिर मिलता है। इसमें वेदी तथा प्रतिमाका निर्माण श्री भंवरलाल सेठी सुजानगढ़ निवासीने कराया और वि. सं. १९९८ में पाँचवें
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy