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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इसी आशयका समर्थन करनेवाले उल्लेख 'तिलोयपण्णत्ति' में भी उपलब्ध होते हैं। गिरिव्रजपुरके चार द्वार थे। पहला वैभार और विपुलगिरिके मध्य सूर्यद्वार। दूसरा गिरिव्रजगिरि और रत्नाचलके मध्य में। यह गजद्वार कहलाता था। तीसरा रत्नागिरि और उदयगिरिके बीच में। चौथा रत्नाचल और चक्रके बीचमें। नगरके बीचमें सरस्वती नदी बहती थी। और उत्तरी द्वारके बगलसे निकलती थी। बानगंगा राजगिरके दक्षिणमें थी। जरासन्धका महल वैभारगिरि और रत्नाचलके बीचकी घाटीके पश्चिमकी तरफ बना हुआ था। जरासन्धकी रंगभूमि या अखाड़ा वैभारको तलहटीमें, सोन भण्डार गुफाके पश्चिममें एक मील दूर है। भीमसेनका अखाड़ा या मल्लभूमि सोनागिरकी तलहटीमें है । किंवदन्ती है कि भीम और जरासन्ध यहाँ १३ दिन लड़े थे। राजगिरसे छह मील गिरियक पहाड़ी है । वहाँ एक बुर्ज है जो जरासन्धकी बैठक कहलाता है। जैन अनुश्रुतिके अनुसार जरासन्ध प्रतिनारायण था और श्रीकृष्ण नारायण थे। प्रतिनारायणको मृत्यु नारायणके हाथसे ही होती है, यह प्राकृतिक नियम है । अतः श्रीकृष्णके हाथों ही जरासन्धकी मृत्यु हुई थी। तीर्थ-दर्शन राजगृहका राजनैतिक महत्त्व यद्यपि नष्ट हो चुका है किन्तु उसकी धार्मिक महत्ता अबतक अक्षुण्ण है। यहाँ प्रतिवर्ष हजारों जैन यात्री दर्शनार्थ आते हैं। वास्तवमें राजगृह अपनी धार्मिक महत्ताके कारण ही ईसासे अनेक शताब्दियों पूर्वसे ही प्रसिद्ध रहा है। यह नगरी पाँच पहाड़ियोंके बीचमें बसी होनेके कारण बोलचालमें इसका नाम पंच पहाड़ी पड़ गया। इन पाँचों पहाड़ोंमें विपुलाचल, रत्नगिरि, उदयगिरि, स्वर्णगिरि ( भ्रमणगिरि ) और वैभारगिरि सम्मिलित हैं । आधुनिक राजगृही नगरीमें राजगिर स्टेशनसे पश्चिममें दो फलांग दूर दिगम्बर जैन धर्मशाला और दो विशाल दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। ये मन्दिर तलहटीके मन्दिर कहलाते हैं। बड़े मन्दिरमें पाँच शिखरयुक्त वेदियाँ हैं। इसका निर्माण दिल्ली निवासी लाला धर्मदास न्यादरमलने करवाकर वीर सं. २४५१ में इसकी प्रतिष्ठा करायी। यह लालमन्दिर कहलाता है। इस मन्दिर की वेदियों और मूर्तियोंका परिचय इस प्रकार है बायीं ओरसे पहली वेदी-मुख्य प्रतिमा भगवान् महावीरकी श्वेत पाषाण, पद्मासन । इस वेदीमें इस प्रतिमाके अतिरिक्त २ धातु-प्रतिमा तथा धातुकी १ चौबीसी है। ___ दूसरी वेदी-मुख्य प्रतिमा भगवान् पुष्पदन्तकी है। श्वेत पाषाण, पद्मासन है । इसके अतिरिक्त २ पाषाण प्रतिमाएँ और हैं। तीसरी वेदी-इस मन्दिरमें मुख्य वेदी यही है और इस वेदीमें मूलनायक भगवान् मुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमा है । श्याम वर्ण, अवगाहना २२ इंच, पद्मासन। इस प्रतिमापर निम्नलिखित लेख अंकित है। "श्री वीर संवत् २४४९ वि. सं. १९७९ माघ शुक्ला १२ चन्द्रवासरे कुन्दकुन्दाम्नाये दिल्लीनगरे प्रतिष्ठितम् ।" इस प्रतिमाके अतिरिक्त इस वेदीमें ७ पाषाण प्रतिमाएँ और हैं। इनमें ४ श्वेत वर्ण, २ मूंगा वर्ण तथा १ श्याम वर्ण है। वेदी बड़ी भव्य है। इसके ऊपर सोनेकी चित्रकारी की हुई है। लघु शिखर और दीवालोंपर भी चित्रकारी की हुई है जो दर्शनीय है।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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