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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ फिर इस वंशमें अनेक राजाओंके बाद बृहद्रथ हुआ। इस प्रकार राजगृहपर शताब्दियों तक हरिवंशी नरेशोंका शासन रहा । बृहद्रथका पुत्र जरासन्ध हुआ। यह बड़ा प्रतापी राजा था। इसने आधे भारतको जीतकर अर्धचक्रीका गौरव प्राप्त किया। मथुराका राजा कंस इसका माण्डलिक राजा था। राजा कंसके लिए उसने अपनी पत्री जीवद्यशा दी। कंसने अपने श्वसुरके भरोसे प्रजापर घोर अत्याचार किये। किन्तु श्रीकृष्णने उसे मारकर प्रजाको अन्याय-अत्याचारोंसे मुक्त किया। इस घटनासे जरासन्ध यादवोंसे रुष्ट हो गया। उसने श्रीकृष्णको मारने तथा यादवोंका दर्प चूर्ण करनेके लिए मथुरा पर कई बार आक्रमण किये। इन आक्रमणोंसे परेशान होकर श्रीकृष्णके नेतृत्वमें मथुरा, शौरीपुर और कीर्तिपुरके समस्त यादव चले गये और पश्चिम दिशामें समुद्रके मध्यमें द्वारिका नगरी बसाकर रहने लगे। इस समय राजगृहका नाम गिरिव्रज था। जरासन्धने सैनिक दृष्टिसे इसे अत्यन्त सुदृढ़ बनाया था। यह पाँच पहाड़ोंसे घिरा हुआ था। जब यादव लोग द्वारिकामें जम गये तो उन्होंने अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाना प्रारम्भ किया। श्रीकृष्णका प्रभाव भारतके प्रायः सभी राजवंशोंपर छा गया। श्रीकृष्णके इस बढ़ते हुए प्रभावको देखकर जरासन्ध चिन्तित हो उठा। उसने यादवोंके पास दूत भेजा और उनसे कहा कि वे सम्राट् जरासन्धकी अधीनता स्वीकार करें अन्यथा युद्धके पार हो जायें। यादवोंने परस्पर परामर्श किया और जरासन्धकी चुनौतीको स्वीकार युद्धकी घोषणा कर दी। दोनों ओरसे युद्धकी तैयारियाँ होने लगीं। देश और विदेशके सम्पूर्ण राजा इस या उस पक्षमें अपनी सेनाओं सहित आ मिले। दोनों ओरकी फौजें युद्ध के लिए चल पड़ी। दोनोंका आमना-सामना हस्तिनापुरके निकट कुरुक्षेत्रके विस्तृत मैदानोंमें हुआ। श्रीकृष्णके पक्षमें समुद्रविजय, नेमिनाथ, वसुदेव, बलदेव, पाण्डव तथा सिंहल, वर्वर, यवन, आभीर, कम्बोज, केरल, कोशल, राष्ट्रवर्धन, द्रमिलके राजा और समस्त यादव थे। जरासन्धके पक्षमें दुर्योधन आदि कौरव, कर्ण, शल्य, शकुनि तथा सिन्ध, अवन्ति, अयोध्या, प्राग्ज्योतिष, मद्र, पांचाल, चीन, किरात, गान्धार, माहिष्मती आदिके राजा थे। दोनों ओरसे भयानक युद्ध हुआ और अन्तमें श्रीकृष्णकी विजय हुई। जरासन्ध, कौरव आदि मारे गये। गिरिव्रजपर नियमानुसार श्रीकृष्णका अधिकार हो गया। वे अर्ध भरतक्षेत्रके स्वामी हो गये और अर्धचक्री नारायणके रूप में उनका अभिषेक किया गया। श्रीकृष्णने उस समय जरासन्धके द्वितीय पुत्र सहदेवको गिरिव्रजका राज्य और मगध देशका चौथाई भाग दिया। सहदेव . गिरिव्रजका राजा बन गया किन्तु गिरिव्रजका वैभव, प्रभाव और आतंक पहले-जैसा नहीं रहा। इसके पश्चात् राजगृहमें श्रेणिक बिम्बसारके रूपमें एक सबल व्यक्तित्व उभरा, जिसने अपने बाहबलसे साम्राज्यका विस्तार किया और प्राचीन गिरिव्रजसे उत्तरकी ओर एक मील हटकर राजगृहका पुननिर्माण किया । पुराना किला भी भग्न हो चुका था। अतः नये किले का निर्माण किया। शिशुनाग वंशको इतिहासको किन्हीं पुस्तकोंमें हर्यक वंश भी कहा है। श्रेणिकका शासन-काल ई. पू. ६०१ से ५५२ तक अनुमानतः माना जाता है। हिन्दू १. प्राचीन भारत, श्री रमेशचन्द मजूमदार (हिन्दी अनुवाद ), प्रथम संस्करण, पृ. ७५ । २. भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, भाग १, जयचन्द्र विद्यालंकार, प्रथम संस्करण, पृ. ४६३ । स्मिथ अपनी आक्सफोर्ड हिस्ट्री आफ इण्डियामें इसका राज्यारोहण ई. सं. से ५८२ वर्ष पूर्व मानते हैं।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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