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________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ पुराणोंमें शिशुनाग वंशके राजाओंको व्रात्य कहा है। उनकी शिक्षा-दीक्षाकी भाषा प्राकृत थी। वे अर्हन्तोंको मानते और चैत्योंको पूजते थे। ___इस कालमें चार राजवंश अधिक प्रभावशाली थे-मगधमें शिशुनाग, कोशलमें इक्ष्वाकु, वत्समें पौरव और अवन्तिमें प्रद्योत । गणराज्यों में वैशाली सर्वाधिक प्रभावशाली और समद्ध रा था। इसके अतिरिक्त कपिलवस्तुके शाक्य तथा पावा और कुशीनाराके मल्ल भी गणसत्ताक राज्य थे। सभी राज्योंमें परस्पर शत्रुता थी और प्रायः आपसमें युद्ध होते रहते थे। इनमें से हर एक अपनी प्रभुता स्थापित करनेकी कोशिशमें लगा हुआ था। और मजा यह कि इन राज्योंके राजाओंके पारस्परिक वैवाहिक सम्बन्ध भी थे । ये विवाह शुद्ध राजनैतिक थे। वैशाली गणसंघके अध्यक्ष महाराज चेटककी कन्या मृगावतीका विवाह वत्सनरेश शतानीकके साथ हुआ था, जिसका पुत्र उदयन था। चेटकको बड़ी पुत्री त्रिशला (प्रियकारिणी) कुण्डग्रामके राजा सिद्धार्थसे विवाही गयीं। उनकी एक पुत्री चेलनाका विवाह मगध नरेश श्रेणिक बिम्बसारके साथ हुआ। इसी प्रकार उदयनका विवाह अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योतकी पुत्री वासवदत्ताके साथ हुआ था। कोशलनरेश प्रसेनजित्की बहनका विवाह मगधनरेश बिम्बसारके साथ हुआ था और कोशल नरेश महाकोशलने अपनी लड़कीके साथ स्नान और शृंगारचूर्णों ( नहान-चुन्न मुल्ल ) के लिए दहेजमें काशीका राज्य दे दिया, जिसे बादमें मगध राज्यमें मिला लिया गया। छठी शताब्दी ईसा पूर्वके पूर्वार्धमें कोशल, मगध, अवन्ति और वत्स ये चार राज्य ही शक्तिशाली थे। किन्तु जब बिम्बसारने अंगदेशके स्वामीको जीतकर उसकी राजधानी चम्पापर अधिकार कर लिया और उसे अपने राज्यमें मिला लिया तो मगधकी शक्ति बहत बढ गयी और वह उत्तरी भारतका सर्वोच्च राज्य बन गया। राइस डेविसके मतानुसार बिम्बसारके राज्यकी सीमाएँ इस प्रकार थीं-उत्तरमें गंगा, पश्चिममें सोन, पूर्वमें अंग देश और दक्षिणमें छोटा नागपुरका जंगल। श्रेणिक बिम्बसारका महत्त्व राजनैतिक दृष्टिकी अपेक्षा सांस्कृतिक दृष्टिसे अधिक है । शिशुनाग वंश नाग वंशकी' एक शाखा माना जाता है। नागवंशी क्षत्रिय परम्परासे वैदिक कर्मकाण्डोंके विरोधी थे। वे व त्य थे और श्रमण परम्पराके अनुयायी थे। राजगह नगरी उस समय श्रमण परम्पराकी केन्द्र थी। वह प्रख्यात तत्त्वचिन्तकों और धर्म संस्थापकों की क्रीड़ाभूमि बनी हुई थी। उस समयके धर्म-नेताओंमें तीर्थंकर महावीरके अतिरिक्त अजित केशकम्बली, मक्खली गोशालक, पूर्ण काश्यप, प्रकूथ कात्यायन, संजय बेलट्रि-पत्र और महात्मा बुद्ध प्रमुख थे। इनमें सर्वाधिक प्रभावशाली तीर्थंकर महावीर (निग्गण्ठ नाथपुत्त ) और तथागत बुद्ध ही थे। शेष पाँच धर्मनेताओंके सम्प्रदाय अधिक दिनों तक नहीं चल पाये। मक्खली गोशालकका आजीवक सम्प्रदाय अवश्य ही कुछ शताब्दियों तक खूब फला-फूला।। ये सभी धर्मनेता वैदिक कर्मकाण्ड, वर्णाश्रम व्यवस्था और हिंसा-मूलक यज्ञोंके घोर विरोधी थे। वैदिक यज्ञवादका एक दुष्परिणाम दास-प्रथा था। यज्ञोंमें ब्राह्मणोंको दक्षिणाके रूपमें प्रचुर दास और दासियाँ दिये जाते थे। इस कारण उन राज्यों में, जहाँ वैदिक-कर्मकाण्डके अनुयायियोंकी संख्या अधिक थी, हाट-बाजारों में दास और दासियाँ पशुओंकी तरह बिकते थे। वैशालीके अधिपति राजा चेटककी पुत्री राजकुमारी चन्दनबाला कौशाम्बीके बाजारोंमें किस प्रकार बिकने आयी, उसके दुर्भाग्यपूर्ण कथानकसे ही इस भयानक प्रथाका पता चलता है। इन धर्मनेताओंने धर्मके नामपर प्रचारित कुप्रथाओंका प्रबल विरोध किया। इन सबमें सर्वाधिक सफलता महावीर और १. मगध-श्री बैजनाथसिंह विनोद, पृ. १० । भाग २-१२
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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