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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ सावण बहुल पडिवदे रुद्द मुहुत्ते सुहोदार रविणो। अभिजिस्स पढम जोए जत्थ जुगादी मुणेयव्वो ।।५७।।
-षट्खण्डागम, भाग १, पृष्ठ ६२-६३ अर्थात् इस अवसर्पिणी कल्प कालके दुःषमा-सुषमा नामके चौथे कालके पिछले भागमें कुछ कम चौंतीस वर्ष बाकी रहनेपर वर्षके प्रथम मास अर्थात् श्रावण मासमें प्रथम पक्ष अर्थात् कृष्ण पक्षमें, प्रतिपदाके दिन प्रातःकालमें, आकाशमें अभिजित् नक्षत्रके उदित रहनेपर धर्म-तीर्थकी उत्पत्ति हुई।
श्रावण कृष्णा प्रतिपदाके दिन रुद्र मुहूर्तमें सूर्यका शुभ उदय होनेपर और अभिजित् नक्षत्रके प्रथम योगमें जब युगका आरम्भ हुआ, तभी तीर्थकी उत्पत्ति समझनी चाहिए।
धर्मतीर्थकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें षट्खण्डागमके उपर्युक्त कथनसे मिलता-जुलता विवरण 'तिलोयपण्णत्ति' में भी मिलता है जो इस प्रकार है
सुरखेयरमणहरणे गुणणामे पंचसेलणयरम्म ।
विपुलम्मि पव्वदवरे वीरजिणो अटूकत्तारो ॥ तिलोयप. ११६५ अर्थात् देव और विद्याधरोंके मनको मोहित करनेवाले और सार्थक नामवाले पंचशैल नगर (राजगृह) में पर्वतोंमें श्रेष्ठ विपुलाचल पर्वतपर श्री वीर जिनेन्द्र अर्थशास्त्रके कर्ता हुए। और भो
एत्थावसप्पिणीए चउत्थकालस्स चरिम भागम्मि । तेत्तीसवासअडमासपण्णरस दिवससेसम्मि ति. प. ११६८ वासस्स पढममासे सावणणामम्मि बहुलपडिवाए।
अभिजीणक्खत्तम्मि य उप्पत्ती धम्मतित्थस्स ॥ति. प. १६९ अर्थात् यहाँ अवसर्पिणीके चतुर्थ कालके अन्तिम भागमें तेंतीस वर्ष आठ माह और पन्द्रह दिन शेष रहनेपर वर्षके प्रथम मास श्रावणमें कृष्ण पक्षकी प्रतिपदाके दिन अभिजित् नक्षत्रके उदित रहनेपर धर्मतीर्थकी उत्पत्ति हुई।
___ श्रावण कृष्णा प्रतिपदाको ही युगका प्रारम्भ' हुआ था। यह भी प्रकृतिका अद्भुत संयोग ही है कि युगकी प्रथम तिथि श्रावण कृष्णा प्रतिपदाको अन्तिम तीर्थंकर महावीरकी प्रथम दिव्य ध्वनि खिरी।
तीर्थंकर महावीरने जिस दिन धर्मतीर्थका प्रवर्तन किया, वह दिन 'वीर शासन-दिवस' के रूपमें पर्व बन गया तथा जिस विपुलाचलपर प्रथम उपदेश हुआ, वह लोकपूज्य तीर्थ बन गया। अन्य पौराणिक घटनाएँ
__ भगवान् महावोर अनेक बार राजगृह पधारे और उनका समवसरण विपुलाचल या वैभार गिरिपर अनेक बार लगा । इसलिए उनके अनेक भक्तोंकी कथाएँ जैन पुराणोंमें मिलती हैं । ऐसी घटनाओंका भी उल्लेख पुराणोंमें उपलब्ध होता है, जिनका राजगृहके साथ सम्बन्ध रहा है। ऊपर प्रायः ऐसे व्यक्तियोंका ही उल्लेख किया गया है, जिनको यहाँ केवलज्ञान १. सावण बहुले पाडिव रुद्दमुहुत्ते सुहोदये रविणो। अभिजस्स पढम जोए जुगस्स आदी इमस्स पुढं । ति. प. ११७० श्रावण कृष्णा प्रतिपदाके दिन रुद्र मुहूर्तके रहते हुए सूर्यका शुभ उदय होनेपर अभिजित् नक्षत्रके प्रथम योगमें इस युगका प्रारम्भ हुआ, यह स्पष्ट है।