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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ प्राप्त हुआ अथवा जिनको यहाँ निर्वाण प्राप्त हुआ। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य घटनाएँ भी यहाँ घटित हुई हैं जिनका अपना विशेष महत्त्व है।
एक घटना इस प्रकार है
अयोध्या में सिद्धार्थ नामक एक श्रेष्ठी था। उसके ३२ स्त्रियाँ थीं किन्तु सन्तान नहीं थी। पुण्योदयसे जयावती सेठानीके पुत्र हुआ, जिसका नाम सुकौशल रखा गया। पुत्र होनेपर पिताने मुनि-दीक्षा ले ली। इससे जयाको बहुत क्रोध आया। उसने अपने घरपर मुनियोंका आना-जाना बन्द कर दिया। जब सुकौशल विवाह योग्य हुआ तो ३२ कन्याओंके साथ उसका विवाह कर दिया।
एक दिन महलकी छतसे उसने एक मुनिको देखा। ये उसके पिता थे। सुकोशलने अपनी मातासे मुनिके सम्बन्धमें जानकारी करनी चाही, किन्तु माताने सही उत्तर न देकर टाल दिया।
। उसने सब बातें सच-सच बता दीं। सुनते ही सुकौशल सिद्धार्थ मनिराजके पीछे-पीछे गया और उनसे मुनि-दीक्षा ले ली।
पुत्रके दीक्षित होनेपर जयावती बहुत दुखित हुई। वह उसी दुखमें मर गयी और मरकर राजगृहके पर्वतमें व्याघ्री बनी। एक बार दोनों मुनि राजगृहके पर्वतसे नगरकी ओर पारणाके लिए जा रहे थे। मार्ग में वह व्याघ्री मिलो। उसने दोनोंको मार डाला। दोनों मुनि शुद्ध परिणामोंसे मरे और सर्वार्थसिद्धि विमानमें अहमिन्द्र हुए।'
जब व्याघ्री सुकोशलके हाथोंको खा रही थी, उस समय उसकी दृष्टि हाथोंके लांछनोंपर जा पड़ी। उन्हें देखते ही उसे पूर्वजन्मका स्मरण (जाति-स्मरण ज्ञान) हो गया। अपने पति और पुत्रको हत्या करनेका दुख अनुभव करके वह बार-बार पश्चात्ताप करने लगी। वह शुभ भावोंसे मरकर पहले स्वर्गमें देव हुई।
एक अन्य घटनाका उल्लेख इस प्रकार मिलता है
राजगृह नगरमें नागदत्त सेठ था। उसकी स्त्रीका नाम भवदत्ता था। नागदत्त मायाचारी था। वह मरकर मेंढक हआ, वह भी अपने घरकी बावड़ी में। एक दिन भगवान महावीर वैभारगिरिपर पधारे। राजा श्रेणिक और प्रजाजन भगवान्के दर्शनोंके लिए गये। इन्द्र और देव भी वैभारगिरिपर दर्शनोंके लिए आये। भीड़भाड़ देखकर और बाजोंकी आवाज सुनकर मेंढक बावड़ीमें से निकल आया। उसे जाति स्मरण हो गया। उसे पता चल गया कि सब लोग महावीर भगवान्के दर्शनोंके लिए जा रहे हैं। वह बावड़ीमें पहुंचा और कमलकी एक कली मुँहमें दबाकर भक्तिवश भगवान्की पूजाके लिए चल पड़ा। रास्तेमें एक हाथीके पैरके नीचे आ गया और मर गया। वह शुभ भावोंसे मरकर सौधर्म स्वर्गमें देव बना।
राजा श्रेणिक और महारानी चेलना
__श्रेणिक और चेलनाका कथानक जैन वाङ्मयमें अत्यन्त विश्रुत है। श्रेणिक तो आगामी भवमें तीर्थंकर होनेवाले हैं। चेलना सम्यग्दृष्टि सती थी, जिसने अपने पतिको जैन धर्मका दढ श्रद्धानी बना दिया। इस राजदम्पति और उनके परिवारीजनोंकी धर्म-श्रद्धा, त्याग-तपस्याकी अनेकों घटनाएं राजगृहमें घटित हुई हैं। उन सबको यहाँ देना सम्भव नहीं है । मात्र २-४ घटनाएँ संक्षेपमें दी जा रही हैं।
१. हरिषेण कथाकोष, कथा १२७ । २. आराधना कथाकोष, कथा ११४ ।