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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ इस निष्क्रमणके समय नेमिनाथ भगवान् बालक ही थे। यादवोंने पश्चिम समुद्र तटपर जाकर द्वारका नगरी बसायी। भोजवंशी उग्रसेनको गिरनगरका राज्य दे दिया। गये हुए यादव पुनः शौरीपुर या मथुरा नहीं लौटे। महाभारतके पश्चात् ये नगर पाण्डवोंके ताबेमें आ गये। पश्चात्कालीन इतिहासमें मथुरा समय-समयपर इतिहासपर अपना प्रभाव अंकित करता रहा, किन्तु शौरीपुर सम्भवतः इतिहासकी कोई निर्णायक भूमिका अदा करनेकी स्थितिमें नहीं रह गया। वर्तमान मन्दिर
प्राचीन शौरीपूर धीरे-धीरे उजड़ गया और अब केवल उसके ध्वंसावशेष ही बचे हए हैं। शौरीपुर क्षेत्रकी प्राचीनताके स्मारक केवल जैनमन्दिर रह गये हैं। इनमें सर्व-प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर है। इसका जीर्णोद्धार समय-समयपर होता रहा है। एक मन्दिरका, जिसे आदि मन्दिर कहते हैं, उसका निर्माण संवत् १७२४ ( ई. सन् १६६७ ) में हुआ था। दिगम्बर जैन मन्दिरके भीतर पीठिका की दीवालपर एक शिलालेख है जो इस प्रकार है
"श्री मूलसंचे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये श्री जगतभूषण श्री भ. विश्वभूषण देवाः स्वरीपुर ( शौरीपुर ) में ( क्षेत्रे ) जिन मन्दिर प्रतिष्ठा संवत् १७२४ वैशाख वदी १३ को कारापिता।" इस प्रकार इस मन्दिरका निमोण भट्टारक विश्वभूषणके उपदेशसे हआ है।
बरुवामठ-यह मन्दिर कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर है। एक बड़ा चबूतरा है। उससे आगे यह मन्दिर है। यहाँका यह सबसे प्राचीन मन्दिर कहलाता है। यहाँकी कुछ प्रतिमाएं चोरी चली गयीं और कुछ मध्य मन्दिरमें विराजमान कर दी गयीं। तब आगराके स्व. सेठ सुमेरचन्द जी बरोल्याके सुपुत्र सेठ प्रतापचन्द्र जी, पौत्र आनन्दकुमार-विमलकुमार-शशिकुमार जी ने वीर सं. २४८० मार्गशीर्ष कृष्णा ८ को यहाँ भगवान् नेमिनाथकी अत्यन्त भव्य प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करायी। यह काले पाषाणकी कायोत्सर्गासनमें है। इसकी अवगाहना पीठासन सहित आठ फट है। इसके सिरपर पाषाणका छत्र है। पाषाणमें ही कलापूर्ण भामण्डल है। चरण-पीठपर आमनेसामने दो सिंह बने हुए हैं। बीचमें शंखका लांछन है। ___ यादववंशियोंमें जो जैन हैं, उनमें किसीकी मृत्यु होनेपर कार्तिक सुदी १४ को दीपक चढ़ानेकी प्रथा है, जो यहीं चढ़ाया जाता है। वैष्णव यदुवंशियोंका दीपक वटेश्वरमें यमुनामें चढ़ता है। शंखध्वज मन्दिर
यह मन्दिर दूसरी मंजिलपर है। सामनेवाले गर्भगृहमें चार वेदियाँ हैं। मूलनायक भगवान् नेमिनाथ मध्यकी वेदीमें विराजमान हैं। उसके पीछे बायीं ओरकी वेदीमें एक खड्गासन प्रतिमा बलुआई पाषाण की है । अवगाहना ३ फुट है। चरणोंके निकट दोनों ओर चमरवाहक खड़े हैं । सिरके दोनों ओर देवियाँ हाथोंमें पारिजात पुष्पोंकी मालाएँ लिये हुए अंकित हैं। इस मूर्तिपर कोई लांछन या लेख नहीं है।
इस मूर्तिके निकट एक शिलाफलकमें उत्कीर्ण मूर्ति है । यह पद्मासन पाँच इंची है। मूर्ति तो अखण्डित है, किन्तु वह शिलाफलक ऊपर की ओरसे खण्डित है।
.. ये दोनों ही प्रतिमाएँ अनुमानतः ११-१२वीं शताब्दी की हैं।