________________
उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ उन्हें सारी बात सुनायी । यह बात महाराज वसुदेवके कानोंमें पहुँची। सुनकर वे स्तब्ध रह गये । निन्दकोंके प्रति उन्हें बड़ा क्रोध आया। किन्तु महादेवीके समझानेपर वे शान्त हुए और तब यह निश्चय हुआ कि रोहिणीके शीलकी परीक्षा की जाये, उन्हें चढ़ी हुई यमुनामें छोड़ दिया जाये । यदि वे सती होंगी तो नहीं डूबेंगी, अन्यथा डूब जायेंगी।
जनतामें जब यह समाचार पहुँचा तो अनेक लोगोंने आकर महाराजको समझाया। उन्होंने महाराजको रोकना चाहा किन्तु महाराजने एक नहीं सुनी। उन्होंने रानीकी परीक्षा ली। महारानीके सतीत्वके प्रभावसे यमुना-जलका स्तम्भन हो गया और वह जल नगर की ओर बहने लगा। नगरमें हाहाकार मच गया। सब लोगोंने महारानी रोहिणीसे प्रार्थना की, प्राण-भिक्षा माँगी । सब उनकी स्तुति करने लगे-'तुम महासती हो, माँ ! हमें बचाओ।'
जनताकी आर्त पुकार सुनकर रोहिणीदेवीका हृदय करुणासे भर गया उन्होंने यमुनाको आज्ञा दी कि वह यहाँपर दक्षिणकी बजाय उत्तरकी ओर बहना प्रारम्भ कर दे। वैसा ही हुआ। लोगोंके प्राण बच गये। सबने सती महादेवीकी जय जयकार की। निन्दकोंने क्षमा माँगी। यमुनाका प्रवाह तबसे आज तक यहाँ उत्तर की ओर है।
-मुनि श्रीचन्द्रकृत 'कहाकोसु', सन्धि ३५, कडवक १-३ -यह स्थान दानी कर्णकी जन्म भूमि है।
-प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् आचार्य प्रभाचन्द्रके गुरु आचार्य लोकचन्द्र यहीं हुए थे। आचार्य प्रभाचन्द्रने जैन न्यायके सुप्रसिद्ध ग्रन्थ प्रमेयकमलमार्तण्डकी रचना यहींपर की थी, इस प्रकारकी अनुश्रुति है। ___इस प्रकार यह केवल गर्भ, जन्म और ज्ञान कल्याणक भूमि ही नहीं, बल्कि निर्वाणभूमि अर्थात् सिद्धक्षेत्र भी है। इतिहास
___ इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथके तीर्थमें हरिवंशमें एक प्रतापी राजा हुआ, जिसका नाम यदु था। इसी यदुसे यादव वंश चला । यदुका पुत्र नरपति हुआ। नरपतिके दो पुत्र हुए। शूर
और सुवीर। सुवीरको मथुराका राज्य मिला और शूरने शौरीपुर बसाया। शूरसे अन्धकवृष्णि हुए और सुवीरसे भोजकवृष्णि। शौरीपुर कुशद्य देशकी राजधानी और सर्वाधिक समृद्ध नगरी थी। यह नगरी शूरसेन जनपदसे, जिसकी राजधानी मथुरा थी, कौशाम्बी, श्रावस्ती जानेवाले जल-मार्गपर अवस्थित थी। कुशद्य छोटा सा ही जनपद था। यही बादमें भदावर कहलाने लगा।
उस कालमें यादववंशियोंके दो राज्य थे-(१) शूरसेन जनपद जिसकी राजधानी मथुरा थी और (२) कुशद्य जनपद, जिसकी राजधानी शौरीपुर या शौर्यपुर थी। शौरीरपुरके नरेश अन्धकवृष्णिकी महारानी सुभद्रासे दस पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं, जिनके नाम थे-समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव । पुत्रियोंके नाम कुन्ती और मद्री थे। इसी प्रकार मथुराके राजा भोजकवृष्णिकी पद्मावती नामक रानीसे तीन पुत्र हुए-उग्रसेन, महासेन और देवसेन। बादमें दोनों चचेरे भाइयोंने सुप्रतिष्ठ केवलीके पास जाकर मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली।