SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ उपसर्ग सहित्वास्य धीरो धान्यमुनिस्तदा। मोक्षं जगाम शुद्धात्मा निहताशेषकर्मकः ॥१४११४९ मुनेर्धान्यकुमारस्य सिद्धिक्षेत्रं तदद्भुतम् । विद्यते पूज्यतेऽद्यापि भव्यलोकेरनारतम् ॥१४११५० स नृपो यमुनापङ्कः प्राप्य कुष्ठं हि तद्भवे । जगाम नरकं घोरं रौद्रध्यानपरायणः ।।१४११५१ अर्थात् विहार करते हुए वे (धान्य कुमार ) मुनि शूरपत्तन (शौरीपुर ) पधारे और नगरके उत्तर दिक-प्रदेशमें यमनातटपर प्रतिमायोग धारण कर स्थित हो गये। शौरीपुरमें यमुनापंक नामक राजा था, जो बड़ा प्रचण्ड था। उसने शत्रुओंको अपने वशमें कर रखा था। एक विशाल सेना लेकर वह शिकार खेलने चल दिया। संयोगसे वह उसी दिशामें गया, जिधर मुनि धान्यकुमार तपस्या कर रहे थे। जब वह निराश लौटा तो उसने ध्यान मुद्रामें खड़े हुए मुनिको देखा। उन्हें देखते ही उसे बड़ा क्रोध आया। वह सोचने लगा कि इस नग्नके देखनेसे ही मुझे अशकुन हो गया। उसने बाणोंसे मुनिको बींध दिया और अपने नगरको चला गया। उन धीर-वीर मुनिराज धान्यकुमारने यह उपसर्ग शान्तिसे सहन किया और सम्पूर्ण कर्मोंका नाश कर मोक्ष प्राप्त किया। मुनि धान्यकुमारका वह अद्भुत सिद्धक्षेत्र अब भी विद्यमान है और भव्य लोग उसकी पूजा करते हैं। वह यमनापंक राजा उसी जन्ममें कोढ़ी हो गया और रौद्रध्यान सहित मरकर नरकमें गया। _ -उज्जयिनी नरेश प्रजापालका रत्नपारखी सुदृष्टि नामक एक व्यक्ति था। उसकी स्त्री विमलासे अलसत्कुमार नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह युवावस्था में पहुँचा, उसे संसारसे विरक्ति हो गयी और मुनि अभिनन्दनके निकट दीक्षा ले ली। वह घोर तप करने लगा। एक दिन विहार करते हुए मुनि अलसत्कुमार शौरीपुर आये। वहाँ यमुना-तटपर तपमें लीन हो गये। उन्होंने योग-निरोध किया। कर्मोकी शृंखलाएँ टूटने लगीं। उन्हें केवलज्ञान हो गया और फिर निर्वाण प्राप्त किया। नानातपः प्रकुर्वाणो मन्दरस्थिरमानसः । वरोत्तरदिशाभागं प्राप्य शौरीपुरस्य सः ।।१८।। अथालसत्कुमारो यं स्थित्वा पश्चिमरोधसि । यमुनायाः समाधानानिर्वाणं गतवानसौ ।।१९।। अर्थात् मुनि अलसत्कुमार नाना तप करते हुए शौरीपुरके उत्तर भागमें आये। वहाँ यमुनाके पश्चिम तटपर ध्यानलीन हो गये और निर्वाण प्राप्त किया। -हरिषेण-कोश, कथा १५३ --भगवान् महावीरके समय यम नामक एक अन्तःकृत् केवली भी यहींसे मोक्ष गये हैं। -भगवान् ऋषभदेव, भगवान् नेमिनाथ, भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीरके पावन विहारसे यह भूमि पवित्र हुई थी। -शौरीपुरमें राजा वसुदेव थे। उनकी महादेवीका नाम रोहिणी था। उनके एक पुत्र था, जिसका नाम बलभद्र था। बड़ा होनेपर भी वह सदा अपनी माताके पास रहता था। किन्तु कुछ पनिहारिनोंमें ऐसी कुत्सित चर्चा चल पड़ी कि हमारी महादेवी अपने पुत्रमें ही अनुरक्त है। यह चर्चा एक गोपीने भी सुनी। वह रोती हुई रोहिणीके पास पहुँची और उसने रो-धोकर
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy