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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ -शौरीपुरमें गन्धमादन नामक पर्वतपर रात्रिके समय सुप्रतिष्ठ नामक मुनिराज ध्यान मुद्रामें विराजमान थे। सुदर्शन नामक एक यक्षने पूर्व जन्मके विरोधके कारण मुनिराजपर घोर उपसर्ग किया। मुनिराज अविचल रहे। अनन्तर उन्हें लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञानकी प्राप्ति हो गयी। वे सर्वज्ञ-सर्वदर्शी बन गये। इन्द्रों और देवोंने आकर भगवान्की पूजा की और उत्सव मनाया। जातु शौर्यपुरोद्याने गन्धमादननामनि ॥२९॥ रात्रौ प्रतिमया तस्थौ सुप्रतिष्ठः प्रतिष्ठितः । पूर्ववैराद्यतेस्तस्य चक्रे यक्षः सुदर्शनः ॥३०॥ अग्निपातं महावातं मेघवृष्ट्यादि दुःसहम् । उपसर्ग स जित्वाप केवलं घातिघातकृत् ॥३१॥ . कुछ समय पश्चात् शौरीपुर नरेश यादववंशी अन्धकवृष्णि और मथुरा नरेश भोजकवृष्णि ने, जो दोनों भाई-भाई थे, इन्हीं केवली भगवान्के निकट मुनि-दीक्षा ले ली। -हरिवंश पुराण, सर्ग १८ -अमलकण्ठपुरके राजा निष्ठसेनके पुत्र धन्य ने भगवान् नेमिनाथके उपदेशसे मुनि दीक्षा धारण कर ली। एक दिन बिहार करते हए मनि धन्य शौरीपुर पधारे। वहाँ यमना-तटपर वे ध्यानारूढ़ हो गये । शौरीपुरका राजा शिकारसे लौटा। शिकार न मिलनेके कारण वह मनमें बड़ा खिन्न हो रहा था। मुनिराजको देखते ही उसे लगा-'हो न हो, इस नग्न मुनिके कारण ही मुझे सारे दिन भटकनेपर भी शिकार नहीं मिल पाया।' यह सोचकर अपने निराशाजन्य क्रोधके कारण उस मूर्खने उन वीतराग मुनिको तीक्ष्ण बाणोंसे बांध दिया। मुनि धन्य शुक्ल ध्यान द्वारा कर्मोको नष्ट कर सिद्ध पदको प्राप्त हुए। उस समय इन्द्रों और देवोंने आकर उनका निर्वाण महोत्सव मनाया। -श्री नेमिदत्त विरचित आराधना कथाकोष, कथा ७१ -हरिषेण कथाकोष-१४१ में भी यह कथा इसी रूपमें निम्न प्रकार से दी गयी है और शौरीपुरको सिद्धक्षेत्र स्वीकार किया गया है विहरन् स मुनिः प्राप तदानीं शूरपत्तनम् ॥१४१।४३।। तत्पुरोत्तरदिग्भागे यमुना पूर्वरोधसि । तस्थौ प्रतिमया धीरः स मुनिः कर्महानये ॥१४१।४४।। अथ सौरिपुरे राजा साधितारातिमण्डलः । बभूव यमुनापङ्को यमुनापतिरुग्रधीः ।।१४१।४५।। मृगयार्थं महासैन्यः कोपारुणनिरीक्षणः । जगाम यमुनापङ्कस्तां दिशं दैवयोगतः ॥१४१।४६।। ततो निवर्तमानः सन् प्रतिमास्थं तकं मुनिम् । विलोक्य स नराधीशः सहसायं रुषं ययौ ॥१४१४४७।। दर्शनेनास्य नग्नस्य शकुनोऽपि न मेऽभवत् । जगाम स्वपुरं राजा पूरयित्वा शरैरिमम् ॥१४१।४८।।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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