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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ६५ देउ ॥११॥' अर्थात् करकण्डु नरेश द्वारा निर्मित आगलदेवकी मैं वन्दना करता हूँ। इसमें तेरापूरकी उस पार्श्वनाथ प्रतिमाको आगलदेव कहा है, जिसका निर्माण करकण्ड राजाने कराया था। . इन्हींका अनुकरण भट्टारक गुणकीतिने मराठी 'तीर्थ-वन्दना' में 'धाराशिव नगरि आगलदेवासि नमस्कार माझा' अर्थात् धाराशिवके आगलदेव कहकर किया है। इसी प्रकार भट्टारक ज्ञानसागरने गुजराती 'तीर्थजयमाला' में धाराशिवके आगलदेव मानकर वन्दना की है। कुछ विद्वानोंके मतमें अर्गलदेव आगराकी कोई प्रसिद्ध प्रतिमा थी। स्थानोंके नामपर मूर्तियोंका नाम रखनेकी परम्परा अति प्राचीन कालसे चली आ रही है। इतिहासमें 'कलिंग जिन' प्रतिमा बहुत प्रसिद्ध रही है, जिसे राजा नन्द कलिंग अभियानमें सफल होनेपर पाटलिपुत्र ले आया था और बादमें खारवेलने मगधपर आक्रमण करके उसे पुनः कलिंगमें ले जाकर प्रतिष्ठित किया था । सम्भव है, अर्गलदेवकी जिस सातिशय प्रतिमाका उल्लेख निर्वाण-भक्ति में किया गया है, वह अर्गलपुर ( आगरा ) के नामपर कोई प्रसिद्ध प्रतिमा रही हो। आगरामें जैन पुरातत्त्व आगरासे १४ मील दूर एक प्रसिद्ध 'बुढ़ियाका ताल' है, जिसके सिघाड़े बहुत मशहूर हैं। उसमें से कुछ मूर्तियाँ सौ वर्ष पहले प्राप्त हुई थीं। उनमें एक मूर्ति सिद्धार्थ वृक्षके नीचे बैठे यक्ष-यक्षिणी की है। पीठासनके नीचेके भागमें विभिन्न देवी-देवता वृक्षकी पूजाके लिए विभिन्न वाहनोंपर आरूढ़ होकर आते हुए दिखाई देते हैं। एक पद्मासन मूर्ति ध्यानावस्थित अवस्थाकी भी प्राप्त हुई थी। इसी प्रकारकी एक और भी जैन मूर्ति मिली थी। एक मूर्ति चक्र लिये हुए यक्षकी मिली थी जो सम्भवतः सर्वाण्ह' यक्ष है। इसी वर्ष आगराके लाल किलेके जलद्वार और यमुनाके बीचमें एक प्राचीन जैन मन्दिरके पाषाण-स्तम्भ और कुछ अवशेष मिले थे तथा काले पाषाणकी जैन तीर्थकरकी एक सुन्दर प्रतिमा भी मिली थी। कनिंघमने इस सम्बन्ध में अपनी रिपोर्टमें इस प्रकार विवरण दिया है "मुस्लिम कालसे पूर्वके प्राचीन अवशेष आगरामें बहुत थोड़े हैं। आगरा किलेके जलद्वारके बाहर, किले और यमुना नदीके बीचमें काले पाषाणके कुछ स्तम्भ खुदाईमें प्राप्त हुए थे और एक काले पाषागकी कलापूर्ण बहुत विशाल मूर्ति, जो जैनोंके बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतनाथकी थी, खुदाईमें मिली थी। इसपर कुटिला लिपिमें संवत् १०६३ खुदा हुआ था। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि ये स्तम्भ किसी प्राचीन जैनमन्दिरके उस द्वारके थे जो नदीकी ओर था और जब किला बनाया गया था, उस समय वह शायद गिरा दिया या नष्ट कर दिया गया था।" १. Archeological Survey of India, Report for the Year 1871-72, Vol. IV, by ____A.C. L. Carlleyle, pp. 207-8. २. Archeological Survey of India, Report for the Year 1873-74, pp. 221, 247. ___Monumental antiquities and inscriptions N. W. P. and Oudh, Vol. II, 1891, p. 76. ३. Its original text is as following : The ancient remains at Agra of the pre-moselman period are very few. Outside the watergate of the fort of Agra, between the fort and river, several square pillars of black basalt have been unearthed, as well as a
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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