SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थं ६३ वस्तुतः यह प्रतिमा इतनी मनोरम है कि इसके दर्शन करने मात्रसे मनमें भक्तिकी तरंगें आन्दोलित होने लगती हैं । मन्दिर शीतलनाथजी भगवान् शीतलनाथ स्वामीकी यह प्रतिमा जामामसजिद के पास रोशन मुहल्लेके जैन मन्दिरमें विराजमान है। यह कृष्णवर्ण है और लगभग साढ़े चार फुट अवगाहनाकी पद्मासन मुद्रामें आसीन है । ऐसी भुवनमोहन रूप वाली प्रतिमा अन्यत्र मिलना कठिन है । इसका सौन्दर्य अनिन्द्य है । वीतरागता प्रभावोत्पादक है । इसके अतिशयोंकी अनेक किंवदन्तियाँ बहु प्रचलित हैं । जैन नहीं, अनेक अजैन भी मनोकामनाएँ लेकर इसके दर्शनको आते हैं । अनेक व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जिनका प्रातः काल छह बजे भगवान्‌के अभिषेकके समय उनकी मोहनी छविके दर्शन करने और शामको आरती करके दीपक चढ़ानेका नियम है। अष्टमी, चतुर्दशी और पर्वके दिनों में मन्दिरमें प्रातः और सन्ध्याके समय दर्शनार्थियोंकी भारी भीड़ रहती है । इस मन्दिर में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंकी प्रतिमाएँ विराजमान हैं । दिगम्बर प्रतिमा तो केवल एक है शीतलनाथ स्वामीकी । किन्तु श्वेताम्बर प्रतिमाएँ और वेदियाँ कई हैं । शीतलनाथ भगवान्का पूजा-प्रक्षाल दोनों ही सम्प्रदायवाले अपनी ही आम्नायके अनुसार करते हैं । शीतलनाथजीके मन्दिरमें गर्भगृहके दायीं ओर दीवालपर लाल पाषाणका २ x १।। फुटका एक शिलालेख श्वेताम्बरोंने कुछ वर्ष पहले लगा दिया है, जिसमें सात श्लोक संस्कृतके हैं तथा हिन्दी के दो सवैया हैं । सवैयाकी प्रथम दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं प्रथम वसन्त सिरी सीतल जु देवहुकी प्रतिमा नगन गुन दस दोय भरी है । आगरे सुजन साँचे अठारह से दस आठ माह सुदी दस च्यार बुध पुष धरी है ॥ यह शिलालेख कुल १८ पंक्तियोंमें है । इसके आगे चार यन्त्र बने हुए हैं । 1 मोतीकटराका पंचायती दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर यह आगराका बड़ा मन्दिर कहलाता है । यह मन्दिर जैसा ऊपर बना है इसका भोयरा ( तलघर ) भी हूबहू वैसा ही बना हुआ है । यहाँ तक कि वेदी भी वैसी ही बनी है । संकटकालमें प्रतिमाएँ नीचे पहुँचा दी जाती थीं । इसमें मूल 'वेदी भगवान् सम्भवनाथकी है । गन्धकुटी में कमलासनपर विराजमान सम्भवनाथ भगवान्की प्रतिमा श्वेत पाषाणकी एक फुटकी है । भगवान् पद्मासनमें विराजमान हैं । नीचे घोड़ेका लांछन है । मूर्ति लेखके अनुसार इस प्रतिमाकी प्रतिष्ठा संवत् १९४७ माघ मास की शुक्ला पंचमी गुरुवार को हुई थी । इस प्रतिमा में बड़े अतिशय हैं । देवलोग रात्रिमें इसकी पूजा के लिए आते हैं, इस प्रकार प्रत्यक्षदर्शियोंने मुझसे कहा । बायीं ओरकी पहली वेदीमें भगवान् पार्श्वनाथकी सवा तीन फुट अवगाहना, पद्मासन मुद्रा, श्वेत पाषाणकी फणमण्डित प्रतिमा है । यह सं. १२७२ माघ सुदी ५ को प्रतिष्ठित हुई थी ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy