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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कवि कुंवरपाल-समकित बत्तीसी। जगजीवन-एकीभाव स्तोत्र, अनेक पद। पं. हीरानन्द-पंचास्तिकाय टीका, द्रव्यसंग्रह भाषा, समवसरण स्तोत्र, एकीभाव स्तोत्र । कविवर द्यानतराय-धर्मविलास, पूजा-स्तोत्र और आरती साहित्य। भैया भगवतीदास-ब्रह्मविलास। बुलाकीदास-वचनकोष, प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, पाण्डवपुराण, जैन चौबीसी। बिहारीदास-सम्बोध पंचासिका, जखडी, जिनेन्द्र स्तुति, आरती। भूधरदास-जैन शतक, भूधरविलास, पदसंग्रह, परमार्थ जखड़ी, गुरुस्तुति, बारह भावना, जिनेन्द्र स्तुति, पार्श्वनाथ स्तोत्र, एकीभाव स्तोत्र, पार्श्व पुराण । आगराके कुछ वर्तमान विशिष्ट जैन मन्दिर । ___इस समय आगरामें मन्दिर और चैत्यालयोंकी कुल संख्या ३६ है। पं. भगवतीदासने 'अर्गलपुर जिनवन्दना' में जिन ४८ जिन-मन्दिरोंका उल्लेख किया है, उनमेंसे कुछ रहे नहीं, कुछ नये बन गये। किन्तु इन मन्दिरोंमें-से यहाँ तीन मन्दिरोंका उल्लेख करना अप्रासंगिक न होगा, जो मूर्तियों की प्राचीनता और अतिशयके कारण अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। इनमें एक है ताजगंजके मन्दिरकी चिन्तामणि पार्श्वनाथकी प्रतिमा। दूसरी शीतलनाथ भगवान्की भुवन मो और तीसरा है मोतीकटराका पंचायती बड़ा मन्दिर। ताजगंज पं. भगवतीदासने सुल्तानपूरेकी जिस चिन्तामणि पार्श्वनाथकी प्रतिमाका उल्लेख किया है, विश्वास किया जाता है कि वह प्रतिमा ताजगंजके मन्दिरमें विराजमान है । यह मूलनायक है। पालिशदार कृष्ण पाषाणकी इस प्रतिमाकी अवगाहना सवा दो फुट है। यह पद्मासन मुद्रामें है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १६७७ फागुन सुदी ३ बुधवारको की गयी थी। पं. बनारसीदास, पं. भूधरदास आदि प्रतिदिन इसकी पूजा उपासना करते थे। उस कालमें इसकी बड़ी ख्याति थी और लोग मनोकामना पूर्तिके लिए इसके दर्शनको आते थे। कविवर बनारसीदासने कई स्थानोंपर इस प्रतिमाके माहात्म्यका वर्णन किया है। उन्होंने चिन्तामणि पार्श्वनाथकी एक स्तुतिकी भी रचना की है जो इस प्रकार है चिन्तामणि स्वामी साँचा साहिब मेरा। शोक हरै तिहुँ लोक को उठ लीजउ नाम सवेरा ।.... विम्ब विराजत आगरे थिर थान थयो शुभ बेरा। ध्यान धरै विनती करै बनारसि बन्दा तेरा ।। इससे ज्ञात होता है कि बनारसीदास जैसे अध्यात्मरसिक व्यक्ति भी जिस प्रतिमाको तीनों लोकोंका शोक हरनेवाली बताते हैं, वह कितनी चमत्कारपूर्ण होगी। कविवर भूधरदासने भी इस चिन्तामणि पार्श्वनाथकी प्रतिमाकी एक स्तुति रची है। उसमें वे कहते हैं सुख करता जिनराज आजलों हिय न आये। अब मुझ माथे भाग चरन चिन्तामणि पाये ।। श्रीपार्सदेवके पदकमल हिये धरत विनसै विघन । छटै अनादि बन्धन बंधे कौन कथा विनसै विधन ।।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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