SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कुछ विभिन्न स्थानोंपर गुटकोंमें मिलती हैं। सन् १५९४ में उन्होंने अपनी आगरा-यात्राका पद्यबद्ध विवरण लिखा था, जिसका नाम है 'अर्गलपुर जिनवन्दना'। इस रचनामें कुल २१ छन्द हैं और प्रत्येक छन्दमें १२ पंक्तियाँ हैं । यह रचना पं. परमानन्दजी शास्त्रीको अजमेरके एक शास्त्र-भण्डारके एक गुटकेमें प्राप्त हुई थी और वह अब तक अप्रकाशित है। इस रचनामें शाहजहाँ बादशाहके कालमें आगराके जैनमन्दिरों, मन्दिर-निर्माताओं, प्रमख विद्वानों और विदुषी स्त्रियोंका वर्णन है। आगराके इन धार्मिक आयतनों आदिका इतना प्रामाणिक विवरण सम्भवतः अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। उन्होंने जिन ४८ जैनमन्दिरोंके दर्शन किये थे, उनका नाम और उनके बनवानेवाले धार्मिकजनों एवं उनमें पूजापाठ करनेवाले पाण्डे और पण्डितोंके नाम दिये हैं । कविके अनुसार उस समय यहाँपर निम्नलिखित मन्दिर थे शहजादी मण्डी, नूरगंज, सुल्तानपुर, शाहगंज, कल्याणपुर, साहिल साहूका मन्दिर, प्रतापुरा, मंडई ( सम्भवतः भाण्डई ) असमपुरा, नौतनदेरा, सहस्रकीति भट्टारकका मन्दिर, इतवारीखाँका कटरा, नाईकी मण्डी, फूटा दरवाजा, खवासखाँकी मण्डी ( खवासपुरा), संगही अभैराजका मन्दिर, नूरी दरवाजा, केसोशाहका मन्दिर, मेघा साहुका जिनालय, तिहुणा साहुका देवालय, नगरके मध्यमें खासा साहका देउरा, मुनि रत्नकीतिका मन्दिर, हजरतकी मण्डी, नालेकी मण्डी, दलपतरायका मन्दिर, बसई, मदार दरवाजा, नूपपुर, बाजारका देवालय, दीनाशाहका मन्दिर, पद्मावती पुरवाल मन्दिर, विजयसेनका मन्दिर, कालीदास खण्डेलवालका मन्दिर, अमीपालका मन्दिर, टोडरसाहूका मन्दिर, साह नरायनीका मन्दिर, धर्मदास जैसवालका मन्दिर, भीकाकी मण्डी, खिडकी और मुल्तानी टोला। इन मन्दिरोंके अतिरिक्त कविने शुभकीति और जगतभूषण भट्टारकोंका भी वर्णन किया है। शुभकीर्ति भट्टारक तिहुणा साहूके चैत्यालयमें रहते थे और जगतभूषण भट्टारक साहू नरायनीके मन्दिरमें रहते थे। जिन व्यक्तियोंने आगरामें मन्दिरोंका निर्माण कराया था, उनके कुछ नाम भी इस रचनामें दिये गये हैं जैसे-सोहिल साहू, सहस्रकीति भट्टारक, पुण्यसागर यति, संघपति अभयराज, केशोशाह, मेघासाह, तिहणा साह, खासा साह, रत्नकीति भट्टारक, उगरु साह, दलपतराय, दीना साह, विजयसेन, कालिदास खण्डेलवाल, टोडर साहू, अमीपाल, साहू नरायनी। उस कालमें कुछ स्त्रियाँ बड़ी विदुषी थीं और मन्दिरोंमें रहकर अपना साधनामय जीवन व्यतीत करती थीं। ऐसी स्त्रियोंमें तेजमती बाई, परिमलबाई, साहमती, ननरीबाई, भानमती, कमलाबाई, हमीरीबाई मुख्य थीं। सुल्तानपुरा मुहल्ले में चिन्तामणि पार्श्वनाथकी एक सातिशय प्रतिमा विराजमान थी। कविवर बनारसीदासजीका भी बहुत वर्षों तक आगरेसे सम्बन्ध रहा था। उन्होंने 'अर्धकथानक' में अपने वैविध्यपूर्ण जीवनका वर्णन किया है। उनके जीवनकी एक बहुत ही रोचक घटना है-उनके पिता खरगसेनने सं. १६६७ में ( कविवरकी २४ वर्षकी आयुमें ) बनारसीदासको गृहभार सौंप दिया और कुछ जवाहरात, बीस मन घी, दो कुप्पे तेल, दो सौ रुपयेका कपड़ा और कुछ नकद रुपया व्यापारके लिए दिया। बनारसीदास सब सामान लेकर व्यापार करने आगरा पहुँचे। किन्तु व्यापारमें अनाड़ीपनके कारण, और कुछ दूसरों द्वारा ठगे जानेके कारण भी व्यापारमें हानि हुई। जवाहरात और रुपयोंका भी ऐसा ही किस्सा हुआ। कहीं गिर गये, कहीं चूहे खींच ले गये। तब हालत यह हो गयी
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy