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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ वर्तमान स्थिति
यह मन्दिर लगभग २० फूट ऊँची चौकीपर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए लगभग तीस सीढ़ियाँ चढ़ना पड़ता है। सीढ़ियाँ दोनों ओर हैं। सीढ़ियोंके बाद मण्डप है। अन्दर जानेपर तीन
ओर विशाल बरामदे और बीचमें एक लम्बा-चौड़ा सहन है। दायीं ओरके बरामदे में क्षेत्रपाल विराजमान हैं। मन्दिरमें बड़े-बड़े और डबल पाषाण-स्तम्भोंका प्रयोग किया गया है। गर्भगृह काफी बड़ा है। गर्भगृहके चारों ओर प्रदक्षिणा-पथ है। एक प्रदक्षिणा-पथ मन्दिरके बाहर, सीढ़ियोंके बगलसे भी है। मन्दिरके ऊपर शिखर है।
मुख्य वेदी भगवान् अजितनाथकी है। लगभग ३ फुट ऊंची चौकीपर तीन कटनीदार गन्धकुटीमें अजितनाथ तीर्थंकरकी तीन फूट ऊँची श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। सिंहासन-पीठपर मध्यमें हाथीका लांछन है और उसके दोनों ओर धर्मचक्र बने हुए हैं। इसके तीन ओर अभिलेख है। अभिलेखके अनुसार इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा संवत् १४१४ वैशाख सुदी १० बुधवारको काष्ठासंघ मथुरान्वय पूष्करगच्छके भट्रारक श्री यशकीर्ति, तच्छिष्य भट्टारक सहस्रकीर्ति, उनके पट्टधर भट्टारक गुणकीति और उनके पट्टधर सुकर्मने गोपाचल दुर्गपर तोमरवंशी राजा गणपतिदेव, उनके पुत्र महाराज डूंगरसिंहके राज्यकालमें करायी थी। इस प्रतिमा की विरागरंजित मुसकान अत्यन्त प्रभावोत्पादक है। इस वेदीके सामने इसी वेदीकी चौकीपर जम्बूस्वामीके चरण विराजमान हैं। चरण अति प्राचीन हैं। चरणचौकीपर लेख भी उत्कीर्ण है, किन्तु वह काफी घिस गया है, अतः पढ़ने में नहीं आता।
इस वेदीकी चौकीके सामने एक पक्का चबूतरा है जो भट्टारकीय युगका प्रतीक है।
इस मख्य वेदीके पीछेकी वेदीमें भगवान पार्श्वनाथकी प्रतिमा विराजमान है। यह कृष्ण पाषाणकी सवा फुट अवगाहनावाली फणमण्डित प्रतिमा है। यह प्रतिमा मथुरा-वृन्दावनके बीच घौरैरा गाँवके समीपवर्ती अक्रूर घाटके पास दि. १९-६-१९६६ को भूगर्भसे प्राप्त हुई थी। इसके पीठासनपर संवत् १८९ अंकित है, जो इसका प्रतिष्ठाकाल है। यह प्रतिमा शक-कुषाणकालकी है। इस दृष्टिसे इसका विशेष महत्त्व है। इस वेदीमें एक प्रतिमा श्वेतवर्णकी सं. १५४८ की है।
इस वेदीके पीछे डेढ़ फुट ऊँचे पाषाण-फलकपर नन्दीश्वर द्वीपकी रचना है, जिसमें ५२ कोष्ठकों ( चैत्यालयों ) में मूर्तियाँ बनी हुई हैं। पाषाण हलके कत्थई रंगका है।
इस प्रतिमाके दायीं ओरकी वेदीमें भगवान् पार्श्वनाथकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है। यह सर्पफणसे मण्डित है और अवगाहना पौने दो फुट है। इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा विजयादित्यके राज्यमें संवत् ११६८ में लम्बकंचुक जातीय बुढेले गोत्रके धन्नू और प्रभावतीके प्रपौत्र बनवारीने करायी थी। इस वेदीमें पद्मप्रभ भगवान्की सवा फूट अवगाहनाकी एक रक्त वर्णवाली पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह संवत् १४५१ में प्रतिष्ठित हई थी। दो प्रतिमाएँ भगवान् चन्द्रप्रभु और अजितनाथकी संवत् १५४८ की हैं। ये श्वेत वर्ण हैं। ये इसी वेदीमें विराजमान हैं।
बायीं ओरकी वेदीमें भगवान पार्श्वनाथकी श्वेत वर्ण पाषाण प्रतिमा है। इसके आगे खड्गासनमें सात साधु मूर्तियाँ हैं। ये मन्वादि सप्तर्षि हैं, जिनके प्रभावसे मरी रोग दूर हो गया था।
___ इस मन्दिरमें ९ वेदियाँ और एक चरण-युगल है। प्रतिमाओंकी कुल संख्या ६८ है। इनमें २० पाषाण-प्रतिमाएँ और शेष धातु-प्रतिमाएँ हैं।