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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ धर्मायतनों और कलाका विनाश पाँचवीं शताब्दीके अन्तिम दिनोंकी बात है। मथुरानगर उन दिनों अत्यन्त समृद्ध था। नगरमें जैन, हिन्दू और बौद्धोंके स्तुप, कलापूर्ण मन्दिर, भव्य मूर्तियाँ और संघाराम विद्यमान थे। शेठियोंकी अनगिनत हर्म्य और ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ थीं। हूणोंने वि. सं.५८० के लगभग आकर उन कलायतनों और कलाका विध्वंस कर दिया। एक भी मन्दिर और मूर्ति साबुत नहीं बची। इमारतोंमें आग लगा दी। नगर बरबाद कर दिया। इस विध्वंस-लीला में कंकाली टीला, सप्तर्षि टीला और चौरासी ( जम्बू टीला ) के मन्दिर, मूर्ति और स्तूप नहीं बच पाये । सब नष्ट हो गये। सत्ता और धर्मके उन्मादका जो नग्न ताण्डव नृत्य उस समय मथुरामें हुआ, उसमें श्रद्धा और कलाके ये आगार नष्ट-भ्रष्ट हो गये। बड़े-बड़े गगनचुम्बी स्तूप और मन्दिर मलवेके टीले बन गये, अनेक मूर्तियाँ खण्डित हो गयीं। इन हूणोंका नेतृत्व सरदार मिहिरकुल कर रहा था। इन हूणोंको सम्राट् स्कन्दगुप्तने भारतसे खदेड़ दिया और लगभग पाँच सौ वर्ष तक मथुरापर कोई बड़ा विदेशी आक्रमण नहीं हआ। इस अन्तरालमें पूनः धर्मश्रद्धालुओंने वहाँ अनेक मन्दिरों, मूर्तियों और स्तूपोंका निर्माण कर लिया। किन्तु ग्यारहवीं शताब्दीके आरम्भमें भारतपर उत्तर-पश्चिम सीमाकी ओरसे आक्रमण प्रारम्भ हो गये । गजनीका सुलतान महमूद गजनवी सत्रह बार भारतपर चढ़कर आया। अपना नौवाँ आक्रमण सन् १०१७ में उसने मथुरापर किया। महमूदके मीर मुंशी अलउत्वी कृत 'तारीखे यामिनी' के अनुसार इस शहरमें सुलतानने निहायत उम्दा ढंगकी बनी हुई एक इमारत देखी, जिसे स्थानीय लोगोंने मनुष्योंकी रचना न बताकर देवताओंकी कृति बताया। शहरके बीच में बने हुए एक सुन्दर मन्दिरके बारेमें खुद सुलतानने लिखा कि यदि कोई व्यक्ति इस प्रकारकी इमारत बनवाना चाहे तो उसे दस करोड़ दीनारसे कम नहीं खर्चने पड़ेंगे और उसके निर्माणमें दो सौ वर्ष लगेंगे। यह लूट और बरबादी लगातार बीस दिनों तक होती रही। लोगोंने जिस इमारतको देवताओंकी कृति बताया था, वह अवश्य ही वह स्तूप होगा, जो देवनिर्मित स्तुपके रूपमें प्रसिद्ध था। इस बरबादीकी पैशाचिक लीलामें शायद वह न बच पाया। मूर्तियाँ तोड़ डालीं, मन्दिरोंमें आग लगा दी, स्वर्ण-रत्न और चाँदीको सौ ऊँटोंपर लाद-लादकर गजनी भेज दिया। इसके पश्चात् तो बरबादीका यह क्रम महम्मद गोरीसे लेकर लोदीवंश तक बराबर चलता रहा। इसमें भी सिकन्दर लोदी ( सन् १४८८ से १५१६ तक ) ने तो विध्वंस-लीलाका ऐसा आयोजन किया जिसमें तारीखे दाऊदीके लेखक अब्दुल्लाके अनुसार मथुरामें मन्दिर पूरी तरह नष्ट कर दिये गये। इन सब आक्रमणोंको मात देनेवालोंमें बादमें औरंगजेब और अहमदशाह अब्दाली हुए, जिन्होंने रहे-सहे, बचे हुए मन्दिरोंको विस्मार कर दिया। ___इस बरबादीके बाद जैनोंका एक भी बड़ा मन्दिर नहीं बच पाया। इस विनाशकालमें भक्तोंने मूर्तियोंको बचानेके लिए कहीं कुओं या जमुना नदीमें डाल दिया, कहीं जमीन में गाड़ दिया। ऐसे समयमें भक्तोंने चौरासीमें जम्बू स्वामीके चरणोंको एक छतरीमें विराजमान कर दिया। किन्तु यह छतरी भी प्रकृतिका प्रकोप अधिक दिनों तक न सह सकी। वह छतरी टूट-फूट गयी और धीरे-धीरे चरण मिट्टीमें दब गये। उसके ऊपर बेर आदिकी झाड़ियाँ उग आयीं। उस संकट कालमें सुरक्षाके लिए जिन मूर्तियोंको कुओंमें, नदीमें या जमीनमें छिपा दिया गया था, वे अब कभी-कभी मिल जाती हैं। मुसलमान बादशाहोंके बर्बर और धर्मान्धतापूर्ण १. ब्रजका इतिहास-लेखक श्रीकृष्णदत्त वाजपेयी, पृ. १३१-३२ ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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