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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ५१ एक आयागपट्टपर लेख अंकित है। उसके अनुसार 'लवणशोभिका नामक एक वेश्याकी लड़की वसुने यह आयागपट्ट दानमें दिया था। इसपर एक स्तूप तथा वेदिकाओं सहित तोरणद्वार बना हुआ है । यह आयागपट्ट ईसाकी पहली-दूसरी शताब्दीका अनुमान किया जाता है। कंकाली टीलासे प्राप्त एक शिलापट्टपर संवत् ७२ का ब्राह्मी लेख खुदा है। इसके अनुसार स्वामी महाक्षत्रप शोडास ( ई. पू. ८०-५७ ) के राज्य-कालमें जैन मुनिकी शिष्या अमोहिनीने एक जैन आयागपट्टकी स्थापना की। इसके अतिरिक्त गौतीपुत्रकी स्त्री कौशिक कुलोद्भूत शिवमित्रा, फल्गुयश नर्तककी पत्नी शिवयशा, मथुरा निवासी लवाड़की पत्नी, कौशिकी पुत्र सिंहनन्दिक, मद्रनन्दीकी पत्नी अचला, और त्रैवणिक नन्दी घोषने भी आयागपट्टोंकी स्थापना करायी थी। - कुषाणकालमें तीर्थंकर प्रतिमाओंका एक नवीन रूप विकसित हुआ। एक पाषाणके चारों ओर चार तीर्थंकर प्रतिमाएं बनी रहती हैं। इन प्रतिमाओंको सर्वतोभद्र प्रतिमा कहा जाता है। यहाँपर ऐसी दो सर्वतोभद्रं प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। ये दोनों ही कुषाणकाल की हैं। एक प्रतिमाके लेखके अनुसार मुनि जयभूतिकी प्रशिष्या वसुलाके कहनेपर वेणी नामक सेठकी प्रथम पत्नी कुमारमिताके द्वारा यह दान की गयी थी। दूसरी प्रतिमामें सर्पफण-मण्डप है। वह प्रतिमा १. १-नमो आरहतो वधमानस दण्दाये गणिका २-ये लेणशोभिकाये धितु शमणसाविकाये ३-नादाये गणिकाये वासये आरहता देविकुला ४-आयगसभा प्रपा शीलापटा पतिष्ठापितं निगमा५-ना अरहतायतने स (ह) मातरे भगिनिये धितरे पुत्रेण ६-सविन च परिजनेन अरहत पुजाये । ___ अर्थ-अर्हत् वर्धमानको नमस्कार हो। श्रमणोंकी उपासिका ( श्राविका ) गणिका नादा, गणिका दन्दाकी बेटी वासा, लेणशोभिकाने अरहन्तोंकी पूजाके लिए व्यापारियोंके अहंत मन्दिरमें अपनी माँ, अपनी बहन, अपनी पुत्री, अपने लड़केके साथ और अपने सारे परिजनोंके साथ मिलकर एक वेदी, एक पूजागृह, एक कुण्ड, और पाषाणासन बनवाये । -जैनशिलालेख संग्रह, भाग २, पृ. १५ २. १. नम अरहतो वर्धमानस २. स्व (!) मिस महक्षत्रपस शोडासस संवत्सरे ४० (?) २ हेमन्त मासे २ दिवसे ९ हरितिपुत्रस पालस ___ भयाये समसाविकाये ३. कोछिये अमोहिनिये सहा पुत्रेहि पालघोषन पोठ घोषन धनघोन आयवती प्रतियापिता प्राय-(भ) ४. आर्यवती अरहत पुजाये - -जैनशिलालेख संग्रह, भाग २, पृ. १२ अर्थात् अर्हत् वर्धमानको नमस्कार हो। स्वामी महाक्षत्रप शोडासके ४२ वें (?) वर्षको शीत ऋतुके दूसरे महीनेके नौवें दिन हरिति (हरिती या हारिती माता) के पुत्र पालकी स्त्री तथा श्रमणोंकी श्राविका कोछि ( कोत्सी ) अमोहिनी के द्वारा अपने पुत्रों-पालघोष, पोठघोष और धनघोषके साथ आयवती ( आर्यवती ) की स्थापना की गयी। ३. (१) अ-........सं. १० ५ गृ ३ दि १ अस्या पूर्व (1) य ब-....हिकातो कुलातो अर्यजयभूति....
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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