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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ गृह पहुँचकर सम्राट् जरासन्धके समक्ष उसे उपस्थित कर दिया। सम्राट अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने वसुदेव और कंसका राजकीय सम्मान किया। सम्राट्ने कंसके वंशादिका परिचय पूछा तो उसने स्पष्ट कह दिया कि मैं मदिरा बनानेवाली एक स्त्रीका पुत्र हूँ। किन्तु सम्राट्को कंसके शौर्य, तेज आदिको देखकर विश्वास नहीं आया। उसने राज्याधिकारी भेजकर कौशाम्बीसे मंजोदरी को बुलवाया। मंजोदरीने सम्पूर्ण सत्य घटना सुना दी तथा प्रमाणस्वरूप मुद्रिका और पत्र भी उपस्थित कर दिया। सम्राट् जरासन्धने अपनी पुत्रीका विवाह कंसके साथ कर दिया। . कुछ समय पश्चात् सम्राट्के पूछनेपर कंसने मथुराका राज्य माँगा, सम्राट्ने अपनी स्वीकृति दे दी। तब कंस सेना सजाकर मथुरा जा पहुँचा। उस समय मथुराके ऊपर राजा उग्रसेन शासन कर रहे थे। कंसने अपने पिता उग्रसेनको युद्धमें पराजित करके बन्दी बना लिया और उनका अपमान करनेके उद्देश्यसे नगरके मुख्य द्वारके ऊपर उन्हें कैद कर दिया। इस प्रकार वह मथुराका राजा बन गया।
कंस अपने गुरु वसुदेवके प्रति अत्यन्त कृतज्ञ था। उन्हींकी बदौलत वह सम्राट् जरासन्धकी पुत्री जीवद्यशा जैसे स्त्री-रत्नको प्राप्त कर सका। अतः कृतज्ञतास्वरूप उसने अपनी बहन देवकीका विवाह कुमार वसुदेवके साथ कर दिया। पश्चात् कंसके आग्रहसे वसुदेव और देवकी मथुरामें ही रहने लगे। एक अवधिज्ञानी मुनिसे जब यह ज्ञात हुआ कि देवकीके गर्भसे उत्पन्न होनेवाला पुत्र ही कंस और जरासन्धका मारनेवाला होगा, तब उसने कुमार वसुदेवसे यह वचन ले लिया कि जब भी अवसर आवेगा, बहन देवकीकी प्रसूति मथुराके मेरे महलोंमें ही होगी। वसुदेवको इस बारेमें कुछ पता नहीं था। अतः उन्होंने वचन दे दिया। किन्तु बादमे जब ज्ञात हुआ तो उन्हे बड़ा दुःख हुआ।
देवकीके क्रमशः तीन युगल पुत्र उत्पन्न हुए। इन्द्रकी आज्ञासे सुनैगम देवने उत्पन्न होते ही उन पुत्रोंको लेकर सुमद्रिल नगरके सेठ सुदृष्टिकी स्त्री अलकाके यहाँ पहुँचा दिया और सद्यःजात मृत पुत्रोंको लाकर देवकीके पास सुला दिया। कंसने आकर उन मृत पुत्रोंको पैरोंसे पकड़कर शिलापर पछाड़ दिया। ये छहों पुत्र अलका सेठानीके यहाँ शुक्ल पक्षके चन्द्रमाकी भाँति बढ़ने लगे। उनके नाम थे-नृपदत्त, देवपाल, अनीकदत्त, अनीकपाल, शत्रुघ्न और जितशत्रु ।
देवकीके सातवें पुत्र नारायण कृष्ण उत्पन्न हुए। वे सातवें माहमें उत्पन्न हुए थे। उस समय घनघोर वर्षा हो रही थी। उस अन्धकारमें बलदेव और वसुदेव नवजात शिशुको लेकर चल दिये। बरसातकी यमुना समुद्र बनी हुई थी। किन्तु नारायणके पुण्य प्रतापसे वे नदीसे पार हो गये। उन्होंने जाकर नन्द और यशोदाको शिशु सौंप दिया और यशोदाकी नवजात कन्याको ले आये। लाकर उन्होंने उसे देवकीके बगल में सुला दिया। कंसको प्रसूतिका पता चला। उसने कन्याको मारा तो नहीं, सिर्फ दबाकर उसकी नाक चपटी कर दी।
नारायण श्रीकृष्णके हाथ-पैरोंमें गदा, खड्ग, चक्र, अंकुश, शंख और पद्मके चिह्न थे। वे महान् पुण्य लेकर उत्पन्न हुए थे। वे धीरे-धीरे नन्दके घरमें बढ़ने लगे। किसी दिन किसी निमित्तज्ञानीने कंसको बताया कि तेरा शत्रु कहीं आसपासमें बढ़ रहा है। यह सुनकर वह बड़ी चिन्तामें पड़ गया। जब उसे श्रीकृष्णके सम्बन्धमें विश्वास हो गया कि यही मेरा शत्रु है तो उसने उन्हें मारनेके अनेक उपाय किये, किन्तु वे सब व्यर्थ हो गये।
___एक दिन कंसने कृष्ण सहित समस्त गोपोंको मल्लयुद्धके लिए आमन्त्रित किया। वसुदेवने आशंकित होकर शौरीपुरसे अपने भाइयोंको बुला लिया। अखाड़ेमें चाणूर और मुष्टिक मल्लोंको