________________
४२
भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
हरिवंशपुराण, आदिपुराण ग्रन्थोंके अनुसार कृतयुगके प्रारम्भमें भगवान् ऋषभदेवने ५२ जनपदोंकी स्थापना की थी। उनमें एक शूरसेन जनपद भी था। शत्रुघ्नके प्रतापी पुत्र शूरसेनके कारण यह अधिक प्रसिद्ध हो गया। इसके पश्चात् जनपदका नाम शूरसेन और उनके प्रमुख नगर या राजधानीका नाम मथुरा शताब्दियों तक चलता रहा। किन्तु ईसाकी प्रथम शताब्दीसे शूरसेन नाम अप्रचलित हो गया और अपनी प्रसिद्धिके कारण मथुरा एक नगरकी तरह एक जनपदके रूपमें भी प्रयुक्त होने लगा। यही बादमें ब्रज कहलाने लगा।
बीसवें तीर्थंकर भगवान् मुनि सुव्रतनाथके तीर्थमें और उन्हींके वंशमें सत्यवादी राजा वसु हुआ। एक बार झूठका समर्थन करनेके कारण उसे नरककी यातनाएँ भोगनी पड़ी। वसुके दस पुत्र थे, जिनमें से आठ क्रमशः राजगद्दीपर बैठे। किन्तु वे थोड़े ही दिनोंमें मृत्युको प्राप्त हो गये। इस विभीषिकासे आतंकित होकर सुवसू नागपुर जाकर रहने लगा और बहद्ध्वज मथुरामें जा बसा। सुवसुके वंशमें आगे चलकर राजगृहमें जरासन्ध हुआ, जो नौवाँ प्रतिनारायण था। बृहद्ध्वजके सुबाहु, उसके दीर्घबाहु, उसके बज्रबाहु, उसके लब्धाभिमान आदि सन्तानें हुई। बृहद्ध्वजके वंशमें आगे चलकर मिथिलापुरीमें इक्कीसवें तीर्थंकर नमिनाथ हुए।
हरिवंशमें यदु नामका एक प्रतापी राजा हुआ । उसीसे यादव वंश चला । यदुका पुत्र नरपति हुआ। नरपतिके दो पुत्र हुए-शूर और सुवीर। शूर कुशद्य देशमें शौरीपुर नगर बसाकर रहने लगा। सुवीरको मथुराका राज्य मिला। श्रसे अन्धकवृष्णि आदि अनेक वीर पुत्र उत्पन्न हुए। मथुरा नरेश सुवीरसे भोजकवृष्णि आदि हुए। अन्धकवृष्णिकी रानी सुभद्रासे दस पुत्र, दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं-समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव । कुन्ती और मद्री दो पुत्रियाँ थीं। समुद्रविजयके पुत्र बाईसवें तीर्थंकर भगवान् नेमिनाथ हए। शौर वसूदेवके नौवें नारायण श्रीकृष्ण और नौवें बलभद्र बलराम उत्पन्न हए। कुन्ती और मद्री हस्तिनापुरके राजा पाण्डुके साथ ब्याही गयीं, जिनसे पाँच पाण्डव उत्पन्न हुए।
मथुराके राजा भोजकवृष्णिकी रानी पद्मावतीसे उग्रसेन, महासेन तथा देवसेन नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए। उग्रसेनके कंस नामक पुत्र और देवकी एवं राजमती नामकी पुत्रियाँ थीं। कंस जब गर्भमें था, तभीसे वह उग्र प्रकृतिका था। उसकी उग्रतासे भयभीत होकर माता-पिताने उसे कांसकी मंजुषामें बन्द करके तथा साथमें उसके नामकी मुद्रिका और पत्र रखकर यमनामें बहा दिया। उस मंजूषाको कौशाम्बीमें मंजोदरी नामक मदिरा बनाने वाली एक स्त्रीने नदीसे निकाल लिया। वह बालकका लालन-पालन करने लगी। कंस ज्यों-ज्यों बड़ा होता गया, उसके उपद्रव बढ़ते गये। अतः मंजोदरीने उसे घरसे निकाल दिया। ___ वह घूमते-फिरते. शौरीपुर आया। वहाँ कुमार वसुदेव कुछ शिष्योंको शस्त्र-संचालनका शिक्षण देते थे। कंस भी उनसे शस्त्र-विद्या सीखने लगा। एक दिन राजगृहके सम्राट जरासन्धने घोषणा की-'सिंहपुर नरेश सिंहरथ बड़ा उद्दण्ड है। जो मनुष्य उसे जीवित पकड़कर मेरे समक्ष उपस्थित करेगा, उसे राजकीय सम्मानके साथ अपनी सुन्दरी पुत्री जीवद्यशा भी दूंगा।'
यह घोषणा सुनकर कुमार वसदेव कंस आदि शिष्योंको लेकर राजगह पहुँचे। वहाँसे विद्यानिर्मित सिंहोंके रथपर आरूढ़ होकर सिंहपुर पहुँचे। पताका कंसको थमायी और सिंहरथ नरेशसे युद्ध किया। अवसर मिलते ही कंसने गुरुकी आज्ञासे सिंहरथको बाँध लिया और राज
१. हरिवंश पुराण सर्ग १८ ।