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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं समय मथुरापर रावणके दामाद मधुका शासन था । वह बड़ा प्रतापी नरेश था । चमरेन्द्रने प्रसन्न होकर उसे शूलरत्न नामक शस्त्र दिया था, जिससे वह अपनेआपको अजेय समझता था । उसका पुत्र लवणार्णव भी बड़ा महारथी था । ४० जब रावणपर विजय प्राप्त कर मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र और लक्ष्मण अपने मित्र राजाओंके साथ अयोध्या लौटे तो उन्होंने राक्षसवंशी, वानरवंशी और ऋक्षवंशी मित्र राजाओं को विभिन्न देशों के राज्य दिये, अपने लघु भ्राता शत्रुघ्नको उसकी इच्छानुसार मथुराका राज्य दिया । शत्रुघ्नने सेना लेकर मथुरापर चढ़ाई कर दी। इस युद्धमें मधुका पुत्र लवण काम आया । यहाँ मधु युद्ध विरत हो मुनिदीक्षा ले ली। राज्य पर शत्रुघ्नका अधिकार हो गया। और वह अयोध्या लौट गया । शूलरत्न शस्त्र के अधिष्ठाता चमरेन्द्रको जब इस घटनाका पता चला तो उसने क्रुद्ध होकर मथुरा नगर में महामारी फैला दी । रोग इतने भयानक वेगसे फैला कि उससे नगर में त्राहि-त्राहि मच गयी। मनुष्य कीड़े-मकोड़ोंकी तरह मरने लगे । एक दिन चातुर्मास प्रारम्भ होने से पूर्व सप्तर्षि आकाशमार्ग से मथुरा पधारे और नगरके समीप एक वटवृक्षके नीचे वर्षायोगका नियम लेकर विराजमान हो गये । ये सातों ऋषि प्रभापुरनरेश श्रीनन्दनके पुत्र थे जिन्होंने प्रीतिंकर केवलीके निकट जाकर मुनिदीक्षा ग्रहण की और तपश्चरण द्वारा अनेक ऋद्धियाँ प्राप्त कर ली थीं । उनके ऋद्धि-प्रभाव से महामारीका प्रकोप शान्त हो गया । मथुराकी जनता सप्तर्षियोंके इस चामत्कारिक प्रभावसे उनकी भक्त बन गयी । शत्रुघ्न भी सप्तर्षियोंके दर्शन करनेके लिए अयोध्यासे मथुरा आये । उन्होंने सप्तर्षियों की पूजा की। सप्तर्षियोंके उपदेशसे शत्रुघ्नने और नगरवासियोंने नगरमें अनेक जिन मन्दिर बनवाये और उनमें जिन प्रतिमाएँ स्थापित करायीं । उन्होंने मन्दिरोंमें उन सप्तर्षियोंकी भी प्रतिमाएँ विराजमान करवायीं । सप्तर्षि जिस स्थानपर ठहरे थे, उस स्थानपर भी जिनमन्दिरका निर्माण कराया । कालान्तरमें वह मन्दिर नष्ट हो गया और वहाँ टीला बन गया । वह स्थान सप्तर्षिटीला कहलाने लगा । युद्ध और महामारीके कारण नगरकी सुन्दरता नष्ट हो गयी थी । अतः शत्रुघ्नने नये नगरका निर्माण कराया । इस नगरके चारों ओर कोट और परिखा थी । यह नगर तीन कोस में फैला हुआ था । मथुरा नगरी सम्बन्धित कतिपय अन्य पौराणिक घटनाएँ भी महत्त्वपूर्ण हैं । नौवें नाराश्रीकृष्णका जन्म यहीं हुआ । वे आगामी कालमें तीर्थंकर होंगे । उत्तरपुराण में एक रोचक घटनाका वर्णन है जिसके अनुसार भगवान् महावीर पहले एक भवमें विश्वनन्दी राजकुमार थे । वे राजगृहके राजा विश्वभूतिके पुत्र थे । उनके शरीरमें अतुल बल था । उन्होंने अपने चचेरे भाई विशाखनन्दके समक्ष मुक्कोंसे पाषाणका खम्भा तोड़ दिया था । १. नयाँ बहिरन्तश्च शत्रुघ्नः प्रतिमास्ततः । अतिष्ठिपज्जिनेन्द्राणां प्रतिमारहितात्मनाम् ॥ ९२।८१ सप्तर्षिप्रतिमाश्चापि काष्ठासु चतसृष्वपि । अस्थापयन्मनोज्ञाङ्गा सर्वेतिकृतवारणाः ॥ ९२ ८२ पद्मपुराण |
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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