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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ज्येष्ठ शुक्ला ९ संवत् १९७९ को यहाँ भारी मेला हुआ। इसके बाद संवत् १९८९ में यहाँ समारोहपूर्वक शिखरकी प्रतिष्ठा हुई। ____ जिस स्थानपर खुदाई की गयी थी, वहां एक पक्का कुआँ बना दिया गया। कुआँ १८ फीट गहरा है। इस कुएँका जल अत्यन्त शीतल, स्वादिष्ठ और स्वास्थ्यवर्धक था। इसके जलसे अनेक रोग दूर हो जाते थे। धीरे-धीरे इस कुएँकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी और यहाँ बहुत-से रोगी आने लगे। इतना ही नहीं, इस कुएँका जल कनस्तरोंमें रेल द्वारा बाहर जाने लगा। प्रत्यक्षदर्शियोंका कहना है कि खेकड़ाके स्टेशनपर प्रतिदिन १००-२०० कनस्तर जाते थे। वहाँसे उन्हें बाहर भेजा जाता था। अब इसके जलमें वह विशेषता नहीं रह गयी है। ___ मन्दिरमें मनौती मनानेवाले जैन और अजैन बन्धु अब भी आते हैं। जिनके जानवर बीमार पड़ जाते हैं, वे भी यहाँ मनौती मनाने आते हैं। वर्तमान स्थिति यह मन्दिर शिखरबन्द है। शिखर विशाल है। उसका निचला भाग कमलाकार है। मन्दिरमें केवल एक हालनुमा मोहनगृह है। हालके बीचोंबीच तीन कटनीवाली गन्धकुटी है। गन्धकुटी एक पक्के चबूतरेपर बनी हुई है । वेदीमें मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथकी श्वेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना १ हाथके लगभग है। प्रतिमा सौम्य और चित्ताकर्षक है। इसकी प्रतिष्ठा वैशाख सुदी ३ संवत् १५४७ में भट्टारक जिनचन्द्रने की थी। इस प्रतिमाके अतिरिक्त एक पीतलकी प्रतिमा इस वेदीमें विराजमान है। मन्दिरके चारों ओर बरामदा बना हुआ है। बरामदेके चारों कोनोंपर शिखरबन्द मन्दरियाँ बनी हुई हैं। पूर्वकी वेदीमें ऋषभनाथ भगवानकी मटमैले रंगकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना डेढ़ हाथकी है। यह प्रतिमा १५वीं शताब्दीकी है तथा यह भूगर्भसे निकली थी। दक्षिणकी वेदीमें मूलनायक भगवान् विमलनाथकी भूरे पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा है। नीचेके हाथकी उँगलियाँ खण्डित हैं। इसका लांछन मिट गया है किन्तु परम्परागत मान्यताके अनुसार इसे विमलनाथकी मूर्ति कहा जाता है। मूतिके नीचे इतना लेख स्पष्ट पढ़नेमें आया है 'संवत् ११२७ माघ सुदी १३ श्रीशं लभेथे' इसी वेदीमें भगवान् पार्श्वनाथकी एक कृष्ण पाषाणकी मूर्ति है। यह पद्मासन है। अवगाहना १ फुट है। हाथ खण्डित हैं। इसपर कोई लेख नहीं है। पालिश कहीं-कहीं उतर गयी है। यह मूर्ति भी विमलनाथकी प्रतिमाके समकालीन लगती है। ये दोनों भूगर्भसे निकली थीं। पश्चिमकी वेदीमें भगवान् पार्श्वनाथकी श्वेत पाषाणकी एक हाथ अवगाहनावाली पद्मासन प्रतिमा है। पीतलकी एक ६ इंची वेदीमें चारों दिशाओंमें पीतलकी चार खड्गासन चतुर्मुखी प्रतिमाएँ हैं। पीतलकी दो प्रतिमाएँ और हैं जो क्रमशः सवा दो इंची और डेढ़ इंची हैं। ये सभी भूगर्भसे निकली थीं। - ___ उत्तरकी वेदीमें भगवान् महावीरकी मटमैले रंगकी पद्मासन प्रतिमा है। इसकी अवगाहना डेढ़ हाथ है। यह पूर्वकी वेदीके भगवान् ऋषभनाथकी प्रतिमाके समकालीन है तथा दोनोंका पाषाण भी एक ही है। यह भी भूगर्भसे प्राप्त हुई थी। ___ इन प्रतिमाओंके अतिरिक्त सभी वेदियोंमें पीतलकी एक-एक प्रतिमा और यन्त्र हैं, जो सभी आधुनिक हैं।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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